
उत्तराखंड में भूमि खरीदना अब और कठिन हो गया है। Uttarakhand Land Law को सख्त बनाते हुए धामी सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है, जिसके तहत बाहरी व्यक्तियों द्वारा राज्य में भूमि खरीद की सीमा को नियंत्रित कर दिया गया है। नए नियमों के अनुसार, बाहरी व्यक्ति अब अधिकतम 250 वर्ग मीटर तक की भूमि ही खरीद सकते हैं। कृषि भूमि खरीदने के लिए जिलाधिकारी (DM) से अनुमति लेना अनिवार्य होगा। यह कदम उत्तराखंड में बढ़ती भूमि खरीद-फरोख्त को नियंत्रित करने और जनसांख्यिकी परिवर्तन को रोकने के उद्देश्य से उठाया गया है।
उत्तराखंड की भूमि और उसकी संवेदनशीलता
उत्तराखंड एक मध्य हिमालयी राज्य है, जिसकी 71.05 प्रतिशत भूमि वन क्षेत्र में आती है। इससे न केवल राज्य में बुनियादी सुविधाओं के विकास पर प्रभाव पड़ता है, बल्कि भू-कानूनों की जटिलता भी बढ़ जाती है। वन कानूनों की बाध्यता और मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण पहाड़ी क्षेत्रों से लगातार पलायन देखा जा रहा है। साथ ही, राज्य गठन के बाद तेजी से भूमि खरीद-फरोख्त बढ़ी, जिससे कुछ इलाकों में जनसांख्यिकी असंतुलन भी देखने को मिला।
उत्तराखंड में भू-कानून का इतिहास
जब उत्तराखंड वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश से अलग होकर एक नया राज्य बना, तब उत्तर प्रदेश का ही भू-कानून यहां लागू किया गया। उस समय भूमि की खरीद-फरोख्त पर कोई विशेष प्रतिबंध नहीं था, जिसके कारण रियल एस्टेट कारोबार में भारी उछाल आया। राज्य सरकार पर सख्त भू-कानून बनाने का लगातार दबाव बना, और समय-समय पर इसमें संशोधन किए गए।
धामी सरकार ने अब इसे और कठोर बना दिया है, जिससे भूमि की अत्यधिक बिक्री पर लगाम लग सके। समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने के बाद अब यह सख्त भू-कानून सरकार के एक और महत्वपूर्ण फैसले के रूप में देखा जा रहा है।
भू-कानून में बदलाव
- 2002: पहली निर्वाचित एनडी तिवारी सरकार ने भू-कानून को सख्त बनाने की प्रक्रिया शुरू की।
- 2003: बाहरी व्यक्तियों के लिए आवासीय उपयोग हेतु 500 वर्ग मीटर भूमि खरीदने की सीमा तय की गई। कृषि भूमि के लिए 12.5 एकड़ खरीदने की अनुमति दी गई, जिसके लिए DM से मंजूरी आवश्यक थी।
- 2007: बाहरी व्यक्तियों के लिए भूमि खरीद की सीमा घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दी गई।
- 2018: व्यावसायिक एवं औद्योगिक प्रयोजनों के लिए भूमि खरीद की सीमा को 30 एकड़ तक बढ़ाया गया।
- 2021: भू-कानून की समीक्षा के लिए पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई।
- 2022: समिति ने सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी।
संसदीय परंपराओं पर सवाल
भू-कानून को लेकर विपक्ष ने सरकार पर संसदीय परंपराओं का पालन न करने का आरोप लगाया है। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने इस विधेयक को कैबिनेट द्वारा स्वीकृत किए जाने और सार्वजनिक किए जाने पर आपत्ति जताई। उन्होंने इसे लोकतांत्रिक प्रक्रिया के विरुद्ध बताया और कहा कि इस कानून पर व्यापक चर्चा की जानी चाहिए थी।
भू-कानून का प्रभाव
इस नए भू-कानून का सीधा प्रभाव बाहरी निवेशकों और रियल एस्टेट सेक्टर पर पड़ेगा। यह नियम उत्तराखंड की पारिस्थितिक संरचना को बचाने और स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए लागू किया गया है। हालांकि, इससे प्रदेश में विकास परियोजनाओं की गति धीमी हो सकती है।