सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, दहेज नहीं मांगा फिर भी हो सकता है दहेज उत्पीड़न का केस

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि IPC की धारा 498A केवल दहेज की मांग तक सीमित नहीं है, बल्कि यह किसी भी प्रकार की शारीरिक या मानसिक प्रताड़ना को भी दंडनीय बनाती है। इस फैसले से घरेलू हिंसा और उत्पीड़न के खिलाफ महिलाओं की सुरक्षा को और मजबूत किया गया है।

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Written byRohit Kumar

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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, दहेज नहीं मांगा फिर भी हो सकता है दहेज उत्पीड़न का केस
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में स्पष्ट किया कि यदि किसी महिला का पति और ससुराल वाले दहेज की मांग नहीं करते, लेकिन उसे शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं, तो भी भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498A के तहत उन पर कानूनी कार्यवाही हो सकती है। यह निर्णय आम धारणा के विपरीत है, जिसमें यह समझा जाता था कि यह धारा केवल दहेज संबंधी उत्पीड़न तक सीमित है।

यह फैसला महिला सुरक्षा और घरेलू हिंसा से जुड़े मामलों में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। अदालत ने यह स्पष्ट किया कि इस धारा का उद्देश्य केवल दहेज की मांग से महिलाओं को बचाना नहीं, बल्कि उन्हें किसी भी तरह की क्रूरता और उत्पीड़न से सुरक्षा प्रदान करना है।

धारा 498A के तहत अपराध केवल दहेज की मांग तक सीमित नहीं

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न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि IPC की धारा 498A का मूल तत्व ‘क्रूरता’ है, और यह केवल दहेज की मांग तक सीमित नहीं है। यह धारा दो प्रकार की क्रूरता को मान्यता देती है—एक जो महिला को शारीरिक या मानसिक नुकसान पहुंचाती है और दूसरी, जो संपत्ति या मूल्यवान वस्तुओं की अवैध मांग के कारण उत्पन्न होती है।

अदालत के अनुसार, यदि कोई पति या उसके परिवार के सदस्य महिला को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं, तो इसे भी 498A के तहत अपराध माना जाएगा, भले ही प्रताड़ना दहेज की मांग से संबंधित न हो।

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शारीरिक या मानसिक नुकसान भी 498A के तहत अपराध

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, यह मामला आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के एक फैसले से जुड़ा था, जिसमें एक व्यक्ति के खिलाफ 498A के तहत कार्यवाही को रद्द कर दिया गया था। आरोप था कि उस व्यक्ति ने अपनी पत्नी को पीटा और उसे ससुराल से बाहर निकाल दिया। जब पत्नी ने वापस आने की कोशिश की, तो उसे घर में घुसने से रोका गया। पुलिस जांच के बाद व्यक्ति और उसकी मां के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया गया, लेकिन उच्च न्यायालय ने इस मामले को निरस्त कर दिया था।

इसके बाद पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की, जहां अदालत ने पाया कि पति और ससुराल द्वारा किया गया व्यवहार ‘क्रूरता’ की परिभाषा के अंतर्गत आता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 498A का दायरा व्यापक है और इसमें मानसिक व शारीरिक दोनों तरह की यातनाएँ शामिल हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने दिया धारा 498A का स्पष्टीकरण

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस धारणा को खारिज कर दिया कि IPC की धारा 498A केवल तभी लागू होगी जब महिला से दहेज की मांग की गई हो। अदालत ने स्पष्ट किया कि यदि किसी महिला के शरीर या मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाया जाता है, तो यह भी 498A के अंतर्गत अपराध होगा। इस फैसले से यह स्पष्ट हो गया कि घरेलू हिंसा और उत्पीड़न के मामलों में केवल दहेज की मांग का होना अनिवार्य नहीं है, बल्कि किसी भी तरह की प्रताड़ना इस धारा के तहत दंडनीय होगी।

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