
भूमि अधिग्रहण (Land Acquisition) से जुड़े एक अहम मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) के फैसले को पलटते हुए स्पष्ट किया है कि अधिग्रहण के तुरंत बाद किसी प्राइवेट पार्टी के साथ सौदा कर जमीन वापस नहीं की जा सकती। कोर्ट ने इस प्रैक्टिस को गलत ठहराते हुए कहा कि सरकार द्वारा सार्वजनिक उद्देश्य से अधिग्रहित की गई भूमि को निजी हाथों में देने का यह तरीका कानून की भावना के विरुद्ध है।
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सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल भूमि अधिग्रहण कानून की व्याख्या करता है, बल्कि यह भी बताता है कि कैसे अधिग्रहित भूमि के गलत उपयोग को रोका जा सकता है। यह उन मूल भूमि मालिकों के लिए भी राहत भरा संदेश है, जिनकी जमीनें अधिग्रहित होकर निजी हाथों में चली जाती हैं।
क्या था पूरा मामला?
यह मामला दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा अधिग्रहित एक भूमि से जुड़ा था। हाई कोर्ट ने इससे पहले आदेश दिया था कि अधिग्रहण रद्द मानते हुए जमीन को मूल मालिक को वापस किया जाए क्योंकि बाद में उस जमीन का प्राइवेट डील के ज़रिए ट्रांसफर कर दिया गया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को खारिज करते हुए कहा कि एक बार जब भूमि अधिग्रहित हो जाती है, तो उसे किसी अन्य उद्देश्य या निजी हाथों में देना कानून का दुरुपयोग है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया किसी भी तरह की प्राइवेट डीलिंग के लिए नहीं है। यह एक संवेदनशील कानूनी प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य सार्वजनिक हित होता है — जैसे सड़कें, स्कूल, अस्पताल या रिन्यूएबल एनर्जी (Renewable Energy) प्रोजेक्ट्स के लिए भूमि उपलब्ध कराना। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर अधिग्रहण के तुरंत बाद कोई प्राइवेट पार्टी उस भूमि का लाभ उठाने लगती है, तो यह पूरे अधिग्रहण की मंशा पर सवाल खड़े करता है।
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भूमि अधिग्रहण कानून की मूल भावना
भूमि अधिग्रहण कानून (Land Acquisition Act) की मूल भावना यह है कि जब किसी भूमि को सरकार अधिग्रहित करती है, तो उसका उपयोग केवल सार्वजनिक कार्यों के लिए होना चाहिए। लेकिन हाल के वर्षों में कुछ मामले ऐसे भी सामने आए हैं, जहां सरकार ने अधिग्रहण के बाद उसे निजी कंपनियों को सौंप दिया। इससे मूल मालिकों के अधिकारों का हनन होता है और जनता के पैसे से अधिग्रहित की गई भूमि का उद्देश्य ही बदल जाता है।
निजी सौदों को लेकर सुप्रीम कोर्ट की सख्ती
कोर्ट ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि अधिग्रहण के तुरंत बाद प्राइवेट डेवलपर को भूमि सौंपी जाती है, तो इससे साबित होता है कि अधिग्रहण की मंशा शुरू से ही निजी लाभ की थी, न कि जनहित की। यह प्रक्रिया कानूनी रूप से गलत है और इसे मान्यता नहीं दी जा सकती।
भविष्य के लिए नज़ीर बनेगा यह फैसला
यह फैसला उन सभी मामलों पर प्रभाव डालेगा जहां भूमि अधिग्रहण के बाद निजी सौदेबाज़ी की गई है। इससे सरकारों को भी यह स्पष्ट संदेश गया है कि भूमि अधिग्रहण केवल सार्वजनिक उद्देश्य के लिए ही होना चाहिए और इसका दुरुपयोग बिल्कुल भी सहन नहीं किया जाएगा।
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भूमि अधिग्रहण और न्यायिक समीक्षा
भूमि अधिग्रहण कानून के तहत अगर किसी को लगता है कि उसके साथ अन्याय हुआ है, तो वह न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि यदि अधिग्रहण सही प्रक्रिया के तहत हुआ है और बाद में उसे प्राइवेट डील के ज़रिए ट्रांसफर कर दिया गया है, तो वह पूरी प्रक्रिया ही संदिग्ध हो जाती है।