नजूल जमीन पर लगा ब्रेक! फ्री होल्ड पर रोक से हज़ारों परिवारों को बड़ा झटका

राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश के बाद नजूल भूमि पर फ्री होल्ड की प्रक्रिया पर पूरी तरह रोक लगा दी है। क्या अब 1.5 लाख लोगों को अपनी ज़मीन से हाथ धोना पड़ेगा? जानिए पूरी सच्चाई और अगला बड़ा कदम।

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Written byRohit Kumar

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नजूल जमीन पर लगा ब्रेक! फ्री होल्ड पर रोक से हज़ारों परिवारों को बड़ा झटका
नजूल जमीन पर लगा ब्रेक! फ्री होल्ड पर रोक से हज़ारों परिवारों को बड़ा झटका

उत्तराखंड (Uttarakhand) में नजूल भूमि (Nazul Land) को लेकर एक बार फिर से बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। राज्य सरकार ने नजूल भूमि के फ्री होल्ड (Freehold) पर पूरी तरह से रोक लगाने का आदेश जारी कर दिया है। यह फैसला नैनीताल हाईकोर्ट (Nainital High Court) की ओर से 16 अप्रैल 2025 को दिए गए आदेश के बाद लिया गया है। इस रोक के चलते प्रदेश के करीब डेढ़ लाख लोगों को सीधा असर पड़ेगा, जिनमें से हजारों लोग पहले ही इस जमीन पर फ्री होल्ड का दावा कर चुके हैं।

हाईकोर्ट के आदेश के बाद शासन की कार्रवाई

16 अप्रैल 2025 को नैनीताल हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने नजूल भूमि पर फ्री होल्ड की प्रक्रिया पर रोक लगाने का निर्देश दिया। इसके तुरंत बाद राज्य सरकार ने आदेश जारी कर इस प्रक्रिया पर विराम लगा दिया है। सचिव आवास आर. मीनाक्षी सुंदरम ने इस आदेश की पुष्टि करते हुए कहा कि अब भविष्य में नजूल नीति (Nazul Policy) के अंतर्गत फ्री होल्ड की अनुमति नहीं दी जाएगी।

क्या है नजूल भूमि और क्यों है विवाद?

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नजूल भूमि वह सरकारी ज़मीन होती है, जो अंग्रेजों ने स्वतंत्रता से पहले भारतीय रियासतों से अपने नियंत्रण में ली थी। स्वतंत्रता के बाद यह भूमि राज्य सरकारों के पास आ गई, जिसे लीज़ (Lease) के माध्यम से आम लोगों को आवास के लिए दिया गया। वर्षों से कई परिवार इस भूमि पर रह रहे हैं और बाद में उन्होंने इसे फ्री होल्ड में बदलवाने की प्रक्रिया शुरू की।

राज्य सरकार ने इन कब्जाधारियों को जमीन पर स्वामित्व देने के लिए एक नियत शुल्क के बदले फ्री होल्ड की सुविधा दी, जिससे वे इस ज़मीन के वैध मालिक बन सकें। इसके लिए पहले 2009 में और फिर 2021 में नजूल नीति लाई गई।

नजूल नीति 2009 और 2021 की कहानी

नजूल नीति 2009 के तहत हजारों लोगों ने राज्य सरकार को शुल्क देकर ज़मीन का स्वामित्व प्राप्त किया। लेकिन इस नीति को हाईकोर्ट ने जून 2018 में असंवैधानिक घोषित कर दिया। कोर्ट का कहना था कि सरकार की भूमि को इस प्रकार कब्जाधारियों को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।

इस निर्णय से लगभग 8000 परिवारों को बड़ा झटका लगा, जिन्होंने कानूनी प्रक्रिया के तहत फ्री होल्ड कराया था। मामला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंचा और 31 दिसंबर 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर स्टे लगा दिया।

इसके बावजूद राज्य सरकार ने नजूल नीति 2021 को लागू किया और फ्री होल्ड प्रक्रिया फिर शुरू की गई। यह नीति एक वर्ष के लिए लागू रही, जिसे बाद में 10 दिसंबर 2023 तक के लिए बढ़ाया गया।

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कोर्ट के ताजा आदेश से फिर खड़ा हुआ संकट

हाल ही में 16 अप्रैल 2025 को नैनीताल हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने फ्री होल्ड की इस प्रक्रिया को फिर से रोक दिया। इसके बाद राज्य सरकार को भी इस पर तत्काल रोक लगानी पड़ी। अब नजूल भूमि के फ्री होल्ड की प्रक्रिया पूरी तरह से बंद हो गई है।

इस फैसले से सबसे ज्यादा असर मैदानी जिलों – देहरादून, उधम सिंह नगर और नैनीताल में रह रहे उन लोगों पर पड़ेगा, जो लंबे समय से नजूल भूमि पर काबिज हैं और जमीन को फ्री होल्ड कराने की प्रक्रिया में लगे हुए थे।

लाखों लोगों पर संकट, क्या है अगला कदम?

वर्तमान में उत्तराखंड में नजूल भूमि पर लगभग 1.5 लाख लोग बसे हुए हैं। कई कॉलोनियां और बस्तियां इन जमीनों पर दशकों से मौजूद हैं। हालांकि अब शासन के इस निर्णय के बाद इन बस्तियों के नियमितीकरण और स्वामित्व को लेकर बड़ा सवाल खड़ा हो गया है।

राज्य सरकार अब सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय का इंतजार कर रही है, जिससे आगे की दिशा तय होगी।

सरकार की ओर से स्थिति स्पष्ट

सचिव आवास आर. मीनाक्षी सुंदरम ने कहा है कि कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए फ्री होल्ड की प्रक्रिया फिलहाल स्थगित कर दी गई है। यह मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है, और अगला निर्णय वहां से आने के बाद ही होगा।

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