निर्विरोध जीतने पर भी चाहिए होंगे वोट, सुप्रीम कोर्ट ने दिया निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से कहा- बिना वोट जनता का समर्थन नहीं तो नहीं होगी जीत! जानिए कैसे बदल जाएगी निर्विरोध चुनावों की पूरी प्रक्रिया और क्या होगा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम पर असर।

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Written byRohit Kumar

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निर्विरोध जीतने पर भी चाहिए होंगे वोट, सुप्रीम कोर्ट ने दिया निर्देश
निर्विरोध जीतने पर भी चाहिए होंगे वोट, सुप्रीम कोर्ट ने दिया निर्देश

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में एक अहम टिप्पणी करते हुए केंद्र सरकार से कहा है कि वह चुनावों में निर्विरोध चुने जाने वाले उम्मीदवारों के लिए कुछ आवश्यक नियम बनाए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भविष्य में यदि कोई उम्मीदवार निर्विरोध जीतता है, तो भी उसे कम से कम तयशुदा न्यूनतम वोट प्राप्त करना अनिवार्य होना चाहिए। यह सुनवाई जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act) की धारा 53 (2) की वैधता पर हो रही थी।

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता और जनसमर्थन को और मजबूत बनाने के इरादे से आई है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ इस संवेदनशील मुद्दे पर सुनवाई कर रही है। कोर्ट ने कहा कि केवल नामांकन भरने से ही किसी उम्मीदवार को निर्विरोध विजयी घोषित करना उचित नहीं है जब तक कि जनता का न्यूनतम समर्थन उसे न मिला हो।

क्या है जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53 (2)

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जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 53 (2) के अनुसार यदि किसी निर्वाचन क्षेत्र में जितनी सीटें हैं उतने ही उम्मीदवार नामांकन करते हैं, तो बिना मतदान के ही उन्हें निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है। इसका अर्थ है कि यदि किसी विधानसभा या लोकसभा सीट पर केवल एक उम्मीदवार चुनाव लड़ रहा है, तो उसे सीधे विजयी घोषित कर दिया जाएगा।

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट इस व्यवस्था पर सवाल उठा रहा है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि इस प्रक्रिया को और अधिक लोकतांत्रिक बनाने के लिए नियम बनाए जाएं। जिससे निर्विरोध विजयी घोषित किए जाने से पहले उम्मीदवार को न्यूनतम प्रतिशत में मत प्राप्त करना आवश्यक हो।

निर्वाचन आयोग का पक्ष और अदालत का अवलोकन

सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग (Election Commission) ने अदालत को बताया कि अब तक संसदीय चुनावों में केवल नौ बार ही कोई उम्मीदवार निर्विरोध निर्वाचित हुआ है। यानी लोकसभा चुनावों में इस तरह के उदाहरण बहुत कम रहे हैं।

हालांकि याचिकाकर्ता संस्था ‘विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी’ (Vidhi Centre for Legal Policy) के वकील अरविंद दातार ने कोर्ट को बताया कि विधानसभा चुनावों (Assembly Elections) में निर्विरोध चुनाव के मामले अपेक्षाकृत अधिक होते हैं। इस तथ्य ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया और कोर्ट ने माना कि यह विषय व्यापक प्रभाव डाल सकता है।

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सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को क्या निर्देश दिए

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से इस पर गंभीरता से विचार करने को कहा है कि निर्विरोध निर्वाचन की मौजूदा व्यवस्था में सुधार कैसे किया जा सकता है। कोर्ट ने सुझाव दिया कि निर्विरोध विजेता बनने के लिए भी एक न्यूनतम वोट प्रतिशत तय किया जाए, ताकि उम्मीदवार के पास क्षेत्र की जनता का वास्तविक समर्थन हो।

कोर्ट का मानना है कि यदि ऐसा नियम बनाया जाता है तो इससे लोकतंत्र की गुणवत्ता में सुधार होगा और जनता का भरोसा भी मजबूत होगा। साथ ही उम्मीदवारों को जनता के बीच जाकर समर्थन जुटाने की आवश्यकता होगी, भले ही उनके खिलाफ कोई प्रतिद्वंदी न हो।

विधानसभा चुनावों में निर्विरोध चुनाव की बढ़ती प्रवृत्ति

वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि विधानसभा चुनावों में निर्विरोध निर्वाचन के मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं। इसका मतलब है कि छोटे निर्वाचन क्षेत्रों या कुछ विशेष परिस्थितियों में विरोधी उम्मीदवारों का अभाव आम होता जा रहा है।

यह स्थिति लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ मानी जा सकती है, जहां हर उम्मीदवार को जनता से अनुमोदन प्राप्त करने की आवश्यकता होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की यह पहल इसी सिद्धांत को और अधिक मजबूती देने का प्रयास है।

अब सबकी निगाहें केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग की अगली कार्रवाई पर टिकी हैं। अगर केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार नियम बनाती है, तो आने वाले समय में चुनावी प्रक्रियाओं में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है।

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