
India Caste Census की घोषणा के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सहयोगी दलों ने एक नई मांग को जोर-शोर से उठाया है—OBC और SC वर्गों के भीतर ‘कोटा के भीतर कोटा’ की व्यवस्था लागू की जाए। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्यों में NDA के घटक दल अब OBC Sub Categorisation और SC Sub Categorisation की पुरज़ोर वकालत कर रहे हैं। यह मांग सामाजिक न्याय और आरक्षण के समान वितरण की दिशा में एक बड़ा कदम मानी जा रही है।
जाति जनगणना के बाद राजनीतिक हलचल तेज
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने यह ऐलान किया कि अगली जनगणना में जातियों की भी गणना की जाएगी। इस Caste Census की घोषणा का भाजपा के लगभग सभी सहयोगियों ने स्वागत किया। लंबे समय से इस मांग को उठाने वाले ये दल अब इस निर्णय को ऐतिहासिक बता रहे हैं और आगे बढ़कर उप-वर्गीकरण की बात कर रहे हैं।
रोहिणी आयोग रिपोर्ट को लेकर बढ़ी सक्रियता
2017 में गठित रोहिणी आयोग (Rohini Commission) को ओबीसी के उप-वर्गीकरण की जिम्मेदारी दी गई थी, ताकि आरक्षण का लाभ उन सभी जातियों तक पहुंचे जिन्हें अभी तक अपेक्षाकृत कम लाभ मिला है। आयोग ने 2023 में अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी थी, लेकिन अभी तक यह रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई है।
अब BJP के सहयोगी दल इस रिपोर्ट को जल्द सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं ताकि उप-वर्गीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा सके। दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस जी. रोहिणी की अध्यक्षता में गठित इस आयोग की सिफारिशें सामाजिक संतुलन बनाने में अहम मानी जा रही हैं।
बिहार में ‘अति पिछड़ा’ और ‘महादलित’ को आरक्षण का मुद्दा
बिहार में NDA के प्रमुख सहयोगी उपेंद्र कुशवाहा ने स्पष्ट किया है कि जाति जनगणना के बाद अब OBC और SC में वर्गीकरण होना चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य में पहले से ही ‘अति पिछड़ा’ और ‘महादलित’ के लिए विशेष आरक्षण व्यवस्था है, जिसे अब केंद्रीय स्तर पर लागू किया जाना चाहिए।
उनका कहना है कि जातियों के भीतर भी असमानता है, और यह आवश्यक है कि जो जातियां आरक्षण का लाभ कम या नहीं ले पाई हैं, उन्हें आगे लाया जाए। इसके लिए रोहिणी आयोग की रिपोर्ट को तत्काल सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
निषाद पार्टी की आपत्तियाँ और सुझाव
उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार के मंत्री संजय निषाद ने कहा कि कई जातियाँ जो वर्तमान में OBC वर्ग में आती हैं, मूलतः SC की श्रेणी में होनी चाहिए थीं। उन्होंने जातियों के वर्गीकरण में त्रुटियों को सुधारने की मांग की और ‘कोटा के भीतर कोटा’ की व्यवस्था को ही इसका समाधान बताया।
उनके अनुसार, आरक्षण का समान और न्यायसंगत वितरण तभी संभव है जब लाभ प्राप्त कर रही और वंचित जातियों के बीच स्पष्ट वर्गीकरण किया जाए।
केंद्र का रुख अभी स्पष्ट नहीं
हालांकि अभी तक केंद्र सरकार ने OBC और SC उप-वर्गीकरण पर कोई औपचारिक निर्णय नहीं लिया है। लेकिन हाल ही में उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता और एसबीएसपी प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से इस मुद्दे पर मुलाकात की है।
अपना दल (एस) और लोजपा जैसे कुछ सहयोगी दलों की प्रतिक्रिया अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन माना जा रहा है कि इस मुद्दे पर NDA में आंतरिक चर्चाएँ तेज हो चुकी हैं।
पहले भी लागू हो चुका है ‘कोटा के भीतर कोटा’
यह पहली बार नहीं है जब Reservation in India में उप-वर्गीकरण की बात की जा रही है। भाजपा शासित हरियाणा और कर्नाटक में पहले ही OBC और SC में वर्गीकरण किया जा चुका है। उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की पिछली सरकार ने रिटायर्ड जस्टिस राघवेंद्र कुमार की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी।
इस समिति ने 2018 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें ओबीसी को ‘पिछड़े’, ‘अत्यंत पिछड़े’ और ‘सबसे अत्यंत पिछड़े’ वर्गों में और एससी को ‘दलित’, ‘अति दलित’ और ‘महादलित’ में विभाजित करने की सिफारिश की गई थी। यह मॉडल अब केंद्र सरकार के लिए एक रोडमैप साबित हो सकता है।
राजनीतिक लाभ की रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि उप-वर्गीकरण की यह रणनीति BJP के लिए राजनीतिक रूप से फायदेमंद हो सकती है। यादवों और जाटवों जैसे प्रभावशाली OBC और SC समूहों का समर्थन पहले ही सपा, RJD और BSP जैसे दलों को मिलता रहा है। BJP अब उन जातियों को साधने की कोशिश कर रही है जिन्हें अभी तक राजनीतिक और सामाजिक लाभ कम मिला है।
यदि ‘कोटा के भीतर कोटा’ की यह नीति लागू होती है, तो यह BJP को इन वंचित जातियों के बीच मजबूत पकड़ बनाने में मदद कर सकती है।