
आज के दौर में जहां महंगाई तेजी से बढ़ रही है और फाइनेंशियल प्लानिंग पहले से कहीं ज्यादा जरूरी हो गई है, वहां अगर कोई निवेशक ₹1.5 करोड़ की रकम 15 साल में जुटाना चाहता है और इस दौरान ₹35 लाख भी बीच में निकालना चाहता है, तो उसके लिए सटीक कैलकुलेशन बेहद अहम है।
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निवेश की जरूरत और सही रणनीति
₹1.5 करोड़ का लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं होता, खासकर जब बीच में ₹35 लाख भी निकालने हों। इस स्थिति में निवेशक को दो मुख्य लक्ष्य बनाने होंगे – पहला ₹1.5 करोड़ का और दूसरा ₹35 लाख का जो कि इस अवधि में बीच में निकाले जाएंगे। इसका मतलब है कि आपकी कुल इन्वेस्टमेंट स्ट्रेटेजी को इस तरह डिजाइन करना होगा कि ₹1.5 करोड़ की फाइनल रकम और ₹35 लाख का मिड-टर्म लक्ष्य दोनों पूरे हो सकें।
इसके लिए सबसे पहले जरूरी है कि आप अपने इन्वेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट्स का चयन सावधानी से करें। म्यूचुअल फंड-Mutual Fund, इक्विटी-Equity, डेट इंस्ट्रूमेंट्स-Debt Instruments और रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy जैसे सेक्टर्स में डायवर्सिफिकेशन आपकी स्ट्रेटेजी का अहम हिस्सा हो सकते हैं।
SIP (सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) से बनेगा बड़ा फंड
अगर आप मंथली ₹1.5 करोड़ के लक्ष्य के लिए SIP शुरू करना चाहते हैं तो 15 साल की अवधि को ध्यान में रखते हुए आपको अनुमानित 12% सालाना रिटर्न मानना होगा। इस हिसाब से आपको हर महीने करीब ₹35,000-₹40,000 की SIP करनी होगी। यह कैलकुलेशन कंपाउंडिंग के सिद्धांत पर आधारित है, जिसमें समय के साथ आपके निवेश पर ब्याज बढ़ता रहता है।
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लेकिन यदि आप ₹35 लाख की रकम 7 या 8 साल के भीतर निकालना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको अलग SIP करनी होगी या आपके टोटल SIP अमाउंट को कुछ इस तरह से बढ़ाना होगा कि बीच में निकासी करने के बाद भी आपका फाइनल लक्ष्य ₹1.5 करोड़ प्रभावित न हो।
मिड-टर्म विदड्रॉल का असर और प्लानिंग
₹35 लाख की मिड-टर्म विदड्रॉल आपके पोर्टफोलियो पर असर डाल सकती है। जब आप इतनी बड़ी रकम बीच में निकालते हैं, तो आपके बचे हुए फंड्स पर कंपाउंडिंग का प्रभाव कम हो जाता है। इसका मतलब है कि ₹1.5 करोड़ के लक्ष्य को हासिल करने के लिए या तो आपकी मंथली SIP बढ़ानी होगी या फिर ज्यादा हाई रिटर्न वाले निवेश विकल्प चुनने होंगे।
ऐसे में निवेशक को यह तय करना होगा कि मिड-टर्म विदड्रॉल के बाद बाकी बचे 7-8 साल में अपनी SIP को बढ़ाकर ₹50,000-₹60,000 तक करना होगा, जिससे ₹1.5 करोड़ का लक्ष्य बिना किसी रुकावट के पूरा हो सके।
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निवेश विकल्प और रिस्क
इस तरह के लॉन्ग टर्म और मिड-टर्म फाइनेंशियल गोल्स के लिए डायवर्सिफिकेशन जरूरी है। म्यूचुअल फंड-Mutual Fund में इक्विटी फंड्स, बैलेंस्ड फंड्स और डेट फंड्स का मिश्रण आपको स्थिर और बेहतर रिटर्न दिला सकता है। अगर आपका रिस्क प्रोफाइल थोड़ा हाई है, तो आप रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy, आईपीओ-IPO जैसे विकल्पों पर भी विचार कर सकते हैं।
हालांकि, ध्यान देना होगा कि ऐसे हाई-रिस्क विकल्प आपके पोर्टफोलियो को अस्थिर भी कर सकते हैं, इसलिए पोर्टफोलियो में बैलेंस बनाए रखना जरूरी है।
कर लाभ और टैक्स की भूमिका
लंबी अवधि के निवेश पर आपको टैक्स में भी लाभ मिल सकता है। इक्विटी म्यूचुअल फंड्स पर लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन टैक्स (LTCG) 10% होता है जो ₹1 लाख तक के लाभ पर लागू नहीं होता। इसके अलावा, टैक्स सेविंग इंस्ट्रूमेंट्स जैसे ELSS (इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम) से आप धारा 80C के तहत ₹1.5 लाख तक की टैक्स छूट ले सकते हैं।
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मिड-टर्म निकासी पर टैक्स का असर भी ध्यान में रखना जरूरी है। अगर आपने 3 साल से कम अवधि में निवेश से निकासी की है, तो शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन टैक्स (STCG) लागू होगा, जो आपकी टैक्सेबल इनकम के हिसाब से लगेगा।
फाइनेंशियल प्लानर की मदद जरूरी
अगर आप ₹1.5 करोड़ का लक्ष्य 15 साल में और ₹35 लाख का मिड-टर्म विदड्रॉल करना चाहते हैं, तो एक प्रोफेशनल फाइनेंशियल प्लानर से सलाह लेना फायदेमंद रहेगा। प्लानर आपकी इनकम, रिस्क प्रोफाइल, निवेश क्षमताओं और टैक्स इफेक्ट को ध्यान में रखते हुए आपके लिए बेस्ट स्ट्रेटेजी बना सकता है।