अंकिता भंडारी को मिला इंसाफ! तीन साल बाद दोषी करार, रिजॉर्ट मालिक समेत तीनों गुनहगार

तीन साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कोटद्वार अदालत ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला। वानांत्रा रिजॉर्ट के मालिक पुलकित आर्य समेत तीनों आरोपियों को दोषी करार देकर दी उम्रकैद। जानिए इस केस की अंदरूनी कहानी, राजनीतिक दबाव, SIT की जांच और पीड़िता की मां का भावुक बयान।

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Written byRohit Kumar

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अंकिता भंडारी को मिला इंसाफ! तीन साल बाद दोषी करार, रिजॉर्ट मालिक समेत तीनों गुनहगार
अंकिता भंडारी को मिला इंसाफ! तीन साल बाद दोषी करार, रिजॉर्ट मालिक समेत तीनों गुनहगार

अंकिता भंडारी हत्याकांड (Ankita Bhandari Murder Case) में आखिरकार 30 मई 2025 को न्याय की उम्मीदें पूरी हुईं। कोटद्वार की अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश रीना नेगी की अदालत ने इस बहुचर्चित मामले में मुख्य आरोपी पुलकित आर्य सहित तीनों आरोपियों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। दोषियों में पुलकित आर्य के अलावा सौरभ भास्कर और अंकित गुप्ता शामिल हैं। तीनों को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 354 (महिला की गरिमा भंग करने का प्रयास) और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत दोषी पाया गया। अदालत ने प्रत्येक दोषी पर 50,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है।

सितंबर 2022 में शुरू हुई थी यह दर्दनाक कहानी

यह मामला सितंबर 2022 में तब सामने आया जब ऋषिकेश के पास वानांत्रा रिजॉर्ट (Vanantara Resort) में काम करने वाली 19 वर्षीय रिसेप्शनिस्ट अंकिता भंडारी अचानक लापता हो गई थीं। परिवार की शिकायत पर जब जांच शुरू हुई, तो मामला हाई-प्रोफाइल होता चला गया। छह दिन की गहन खोजबीन के बाद 24 सितंबर 2022 को अंकिता का शव चिल्ला नहर से बरामद हुआ। जांच में सामने आया कि रिजॉर्ट के मालिक पुलकित आर्य, जो निष्कासित बीजेपी नेता विनोद आर्य के बेटे हैं, ने अपने दो कर्मचारियों के साथ मिलकर अंकिता को नहर में धकेल कर मार डाला।

विशेष जांच दल (SIT) ने निभाई अहम भूमिका

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मामले की गंभीरता और राजनीतिक कनेक्शन को देखते हुए उत्तराखंड सरकार ने विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया। इस जांच दल का नेतृत्व पुलिस उपमहानिरीक्षक पी. रेनुका देवी ने किया। SIT ने इस मामले में 500 पन्नों की विस्तृत चार्जशीट दाखिल की, जिसमें कुल 97 गवाहों के बयान दर्ज किए गए। इनमें से 47 महत्वपूर्ण गवाहों की अदालत में गवाही कराई गई। इस गहन जांच ने न्यायिक प्रक्रिया को मजबूत आधार दिया और अदालत में सबूतों की स्पष्टता लाई।

अदालत परिसर बना सुरक्षा का किला

फैसले के दिन कोटद्वार अदालत परिसर में सुरक्षा के बेहद कड़े इंतजाम किए गए थे। पौड़ी जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक लोकेश्वर सिंह ने अदालत परिसर के 100 मीटर के दायरे को ‘जीरो जोन’ घोषित कर दिया, जहां सिर्फ सरकारी कर्मियों और अदालत से जुड़े लोगों को ही प्रवेश की अनुमति थी। यह सुरक्षा व्यवस्था इस बात का संकेत थी कि मामला कितना संवेदनशील और जनभावनाओं से जुड़ा हुआ था।

पीड़िता की मां ने कहा, “फांसी ही न्याय है”

अदालत के फैसले के बाद अंकिता की मां सोनी देवी ने कहा कि वह अदालत के फैसले से संतुष्ट हैं, लेकिन उन्होंने दोषियों के लिए मृत्युदंड की मांग की। उनका कहना था कि ऐसे अपराधियों को जीने का कोई हक नहीं है और फांसी ही उनके लिए सच्चा न्याय होगा। उनका यह बयान पूरे देश में गूंजता रहा और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता को उजागर करता रहा।

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राजनीतिक दबाव और जनाक्रोश

चूंकि मुख्य आरोपी पुलकित आर्य एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से ताल्लुक रखते थे, इसीलिए इस मामले में राजनीतिक दबाव और हस्तक्षेप के आरोप भी लगातार लगते रहे। लेकिन जब मामला जनता के आक्रोश का विषय बना, तो उत्तराखंड सरकार को कार्रवाई करनी पड़ी। जनदबाव के चलते पुलकित के पिता विनोद आर्य और भाई अंकित आर्य को बीजेपी से निष्कासित कर दिया गया। इस फैसले से सरकार ने यह संकेत देने की कोशिश की कि वह निष्पक्ष जांच और न्याय के पक्ष में है।

दो साल आठ महीने की लंबी सुनवाई

जनवरी 2023 में अदालत में सुनवाई की प्रक्रिया शुरू हुई, जो लगभग दो साल और आठ महीने तक चली। इस दौरान अभियोजन पक्ष ने गवाहों और सबूतों के दम पर अदालत को विश्वास दिलाया कि हत्या सुनियोजित और निर्मम थी। हालांकि, जांच के दौरान कई चुनौतियाँ भी सामने आईं, जैसे कि कुछ सबूतों का नष्ट हो जाना और राजनीतिक हस्तक्षेप के आरोप। फिर भी न्यायिक प्रक्रिया ने अंततः पीड़िता के पक्ष में न्याय सुनिश्चित किया।

समाज में उठे गहरे सवाल

अंकिता भंडारी की हत्या ने पूरे देश में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता पैदा कर दी। यह मामला सिर्फ एक लड़की की हत्या नहीं था, बल्कि यह एक सिस्टम की संवेदनहीनता, राजनीतिक हस्तक्षेप और महिला अधिकारों पर सवाल उठाने वाला उदाहरण बन गया। इसने न्यायिक प्रणाली की पारदर्शिता, पुलिस की भूमिका और सामाजिक सोच पर भी गहरी बहस को जन्म दिया।

निष्कर्ष: समाज और सरकार को साथ आना होगा

कोटद्वार अदालत का यह ऐतिहासिक फैसला एक तरफ जहां अंकिता भंडारी के परिवार के लिए न्याय का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर यह समाज के लिए एक चेतावनी है कि महिलाओं की सुरक्षा अब प्राथमिकता बननी चाहिए। केवल सजा सुनाना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि ऐसे अपराधों को रोकने के लिए सामाजिक सोच, पुलिस व्यवस्था और राजनीतिक इच्छाशक्ति—तीनों का एकजुट होना अनिवार्य है।

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