
राजस्व महाभियान के दौरान कई ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें रैयत या जमाबंदीदार की मृत्यु कई वर्ष पहले हो चुकी है, लेकिन उनके मृत्यु प्रमाण पत्र (Death Certificate) उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे मामलों में राजस्व विभाग नें एक व्यावहारिक समाधान पेश किया है, जिसके तहत मृत व्यक्ति के उत्तराधिकारी (Legal Heir) को अब सफ़ेद कागज पर स्व-घोषणा पत्र (Self-Declaration) देना होगा। इस घोषणा पत्र पर पंचायत के मुखिया या सरपंच के हस्ताक्षर आवश्यक होंगे, जिससे मृतक के उत्तराधिकारी की आधिकारिक पहचान हो सकेगी।
पंजीकरण और रिकॉर्ड अद्यतन में आ रही थी समस्या
राजस्व महाअभियान का उद्देश्य भूमि संबंधी सभी अभिलेखों को सटीक और अद्यतन करना है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में कई जमाबंदीदार या रैयत के निधन हो चुके हैं, जिनकी जानकारी रिकॉर्ड में अपडेट नहीं हो पाई। मृत्यु प्रमाण पत्र के अभाव में वारिसों के नाम चढ़ाने या भूमि स्वामित्व स्थानांतरण में अड़चनें आ रही थीं।
इन मामलों में, मृत्यु के समय का दस्तावेजी सबूत न होने के कारण न तो Mutation प्रक्रिया पूरी हो पा रही थी और न ही भूमि संबंधी विवादों का समाधान संभव हो रहा था।
स्व-घोषणा पत्र से मिलेगी प्रक्रिया को गति
राजस्व विभाग का यह नया निर्देश प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाने के उद्देश्य से जारी किया गया है। इसके तहत, यदि किसी रैयत या जमाबंदीदार की मृत्यु प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं है, तो उनके उत्तराधिकारी को सफेद कागज पर यह लिखित घोषणा करनी होगी कि वे ही कानूनी वारिस हैं।
यह स्व-घोषणा पत्र स्थानीय पंचायत के मुखिया या सरपंच के हस्ताक्षर और मुहर से प्रमाणित होना चाहिए। इस प्रमाणन के बाद राजस्व कर्मचारी संबंधित रिकॉर्ड में बदलाव कर सकेंगे, जिससे भूमि के सही मालिक का नाम दर्ज हो सकेगा।
जमीनी विवादों में कमी आने की उम्मीद
राजस्व महाअभियान का यह प्रावधान उन ग्रामीण इलाकों के लिए विशेष रूप से लाभकारी होगा, जहां दस्तावेजीकरण की परंपरा कमजोर रही है। कई परिवारों के पास न तो पुराने प्रमाण पत्र हैं और न ही समय पर मृत्यु पंजीकरण की आदत।
स्व-घोषणा पत्र के माध्यम से, बिना अनावश्यक कानूनी प्रक्रिया में फंसे, वारिस के नाम चढ़ाए जा सकेंगे। इससे न केवल भूमि रिकॉर्ड स्पष्ट होंगे, बल्कि भविष्य में उत्तराधिकार और स्वामित्व से जुड़े विवाद भी काफी हद तक कम हो सकते हैं।
प्रशासन ने जारी की सख्त गाइडलाइन
राजस्व विभाग ने स्पष्ट किया है कि स्व-घोषणा पत्र का दुरुपयोग रोकने के लिए पंचायत स्तर पर सत्यापन अनिवार्य रहेगा। पंचायत के मुखिया या सरपंच से प्रमाणन तभी मिलेगा, जब वे व्यक्तिगत रूप से उस व्यक्ति को मृतक का वास्तविक वारिस मानते हों।
साथ ही, झूठी घोषणा देने पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई की जाएगी। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल वास्तविक वारिस ही भूमि अधिकार प्राप्त कर सकें।
ग्रामीण विकास और भूमि सुधार में अहम कदम
राजस्व महाअभियान के तहत यह नई पहल न केवल प्रशासनिक दक्षता बढ़ाएगी बल्कि ग्रामीण विकास (Rural Development) और भूमि सुधार (Land Reforms) की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।
जहां पहले मृत्यु प्रमाण पत्र के अभाव में वर्षों तक नामांतरण लंबित रहते थे, वहीं अब यह प्रक्रिया हफ्तों में पूरी हो सकेगी। इससे सरकार की योजनाओं का लाभ भी समय पर और सही व्यक्ति तक पहुंच पाएगा।
कानूनी और सामाजिक असर
कानूनी दृष्टि से देखा जाए तो स्व-घोषणा पत्र एक महत्वपूर्ण शपथपत्र की तरह माना जाएगा, जिसे गलत साबित होने पर गवाह और घोषणाकर्ता दोनों जिम्मेदार होंगे। सामाजिक रूप से, यह कदम ग्रामीण समुदाय में विश्वास और सहयोग की भावना को भी मजबूत करेगा, क्योंकि पंचायत प्रतिनिधि प्रत्यक्ष रूप से इस प्रक्रिया में शामिल होंगे।
यह मॉडल अन्य राज्यों में भी अपनाया जा सकता है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां मृत्यु प्रमाण पत्र की उपलब्धता एक आम समस्या है।