अमेरिका ने सैकड़ों छात्रों का वीज़ा रद्द किया! सेल्फ-डिपोर्ट का अल्टीमेटम, कई भारतीय छात्र भी निशाने पर

सिर्फ एक मीम या पोस्ट पर लाइक करना अब अमेरिका में पढ़ रहे विदेशी छात्रों को भारी पड़ रहा है। एफ-1 वीजा रद्द, देश छोड़ने का फरमान और AI से हो रही निगरानी ने मचाई है हड़कंप। क्या आपकी सोशल मीडिया एक्टिविटी भी बन सकती है वजह निर्वासन की? पूरी कहानी चौंका देगी

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Written byRohit Kumar

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अमेरिका ने सैकड़ों छात्रों का वीज़ा रद्द किया! सेल्फ-डिपोर्ट का अल्टीमेटम, कई भारतीय छात्र भी निशाने पर
अमेरिका ने सैकड़ों छात्रों का वीज़ा रद्द किया! सेल्फ-डिपोर्ट का अल्टीमेटम, कई भारतीय छात्र भी निशाने पर

अमेरिका में पढ़ाई कर रहे सैकड़ों अंतरराष्ट्रीय छात्रों को हाल ही में एक चौंकाने वाला ईमेल प्राप्त हुआ है, जिसमें उन्हें अमेरिका छोड़ने और “सेल्फ-डिपोर्ट” (Self-Deport) करने का निर्देश दिया गया है। इस आदेश की वजह छात्रों की सोशल मीडिया गतिविधियां और कैंपस में उनकी भागीदारी बताई जा रही है, जिसे अमेरिकी विदेश विभाग ने एंटी-नेशनल गतिविधियों से जोड़कर देखा है।

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अमेरिका में F-1 वीजा पर पढ़ाई कर रहे छात्रों के लिए यह एक बड़ा झटका है। सोशल मीडिया पर की गई गतिविधियां अब केवल ऑनलाइन अभिव्यक्ति नहीं रह गई हैं, बल्कि वे छात्रों के शैक्षणिक भविष्य, कैरियर और निवास स्थिति को भी प्रभावित कर सकती हैं।

छात्रों की सोशल मीडिया गतिविधियों पर एआई से नजर

विदेश विभाग द्वारा यह कार्रवाई उन छात्रों पर की जा रही है जिन्होंने सीधे विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा नहीं लिया, बल्कि केवल सोशल मीडिया पर राजनीतिक मीम्स पोस्ट किए, किसी विरोध से संबंधित सामग्री को लाइक या कमेंट किया। यहां तक कि ऐसे छात्र भी निशाने पर हैं जिन्होंने केवल संवेदनशील मुद्दों पर राय प्रकट की थी।

इस पूरे अभियान में एक नया AI आधारित ऐप “Catch And Revoke” इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसे अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो (Marco Rubio) ने लॉन्च किया है। यह ऐप छात्रों की ऑनलाइन गतिविधियों की निगरानी करता है और यदि किसी छात्र की पोस्ट को आतंकवादी संगठनों के प्रति सहानुभूति या समर्थन के रूप में देखा जाता है, तो उसके F-1 वीजा को तुरंत रद्द कर दिया जाता है।

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एफ-1 वीजा (F-1 Visa) क्या है?

एफ-1 वीजा एक नॉन-इमिग्रेंट वीजा (Non-Immigrant Visa) होता है जो अंतरराष्ट्रीय छात्रों को अमेरिका में पढ़ाई करने की अनुमति देता है। इसके लिए छात्र को किसी मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थान में फुल-टाइम कोर्स में दाखिला लेना होता है। साथ ही, यह भी प्रमाणित करना होता है कि छात्र के पास पढ़ाई और जीवन-यापन के लिए पर्याप्त आर्थिक संसाधन मौजूद हैं।

क्या था वह चौंकाने वाला ईमेल?

विदेश विभाग की ओर से भेजे गए ईमेल में छात्रों को सूचित किया गया कि उनका F-1 वीजा अब यूएस इमिग्रेशन एंड नेशनलिटी एक्ट की धारा 221(i) के अंतर्गत रद्द कर दिया गया है।

ईमेल में स्पष्ट चेतावनी दी गई है कि अगर छात्र अमेरिका में बिना वैध वीजा के रहते हैं तो उन्हें जुर्माना, हिरासत में लिया जाना, या निर्वासन (Deportation) जैसी कार्रवाई झेलनी पड़ सकती है। साथ ही, उन्हें निर्देश दिया गया है कि वे अपने पासपोर्ट अमेरिकी दूतावास में जमा करें और रद्द किए गए वीजा का किसी भी रूप में उपयोग न करें।

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अमेरिका का कड़ा रुख और सरकार का पक्ष

विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने इस मुद्दे पर बयान देते हुए कहा, “वीजा कोई जन्मसिद्ध अधिकार नहीं है। अमेरिका के पास यह अधिकार है कि वह तय करे कि कौन उसके देश में आएगा और कौन नहीं।” उन्होंने आगे कहा कि नियमों का उल्लंघन करने वालों को अमेरिका छोड़ना ही होगा।

उनका यह भी कहना है कि सोशल मीडिया पर अमेरिका विरोधी विचार, हिंसक संगठनों के प्रति सहानुभूति, या किसी भी प्रकार की देशविरोधी गतिविधियों में भागीदारी, चाहे वह वर्चुअल ही क्यों न हो, अब नजरअंदाज नहीं की जाएगी।

छात्रों में बढ़ती चिंता और आक्रोश

इस निर्णय ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों के बीच भय और असुरक्षा की लहर पैदा कर दी है। कई छात्रों ने सोशल मीडिया पर अपनी निराशा जाहिर करते हुए लिखा कि उन्होंने केवल राजनीतिक मीम्स या विचार साझा किए थे, लेकिन अब उनका F-1 वीजा रद्द कर दिया गया है।

एक छात्र ने पोस्ट किया, “क्या सिर्फ किसी पोस्ट को लाइक करना, मेरी पढ़ाई और भविष्य को खतरे में डालने के लिए काफी है?”

छात्रों का कहना है कि सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि किन गतिविधियों को नियमों का उल्लंघन माना जा रहा है और क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी अब खतरे में है।

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अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया

हालांकि अब तक कोई आधिकारिक अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन छात्र संगठनों और मानवाधिकार समूहों ने इस मुद्दे को गंभीर मानते हुए अमेरिका से निष्पक्ष जांच और स्पष्ट नीति की मांग की है।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम शैक्षणिक स्वतंत्रता और डिजिटल अभिव्यक्ति के अधिकारों पर हमला है, खासकर तब जब छात्र किसी कानूनी कार्रवाई में शामिल नहीं थे।

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