
देश में कई बार आर्थिक अस्थिरता, कुप्रबंधन या अन्य वित्तीय कारणों के चलते बैंक हमेशा के लिए बंद हो जाते हैं. बैंक बंद होने से सबसे ज्यादा असर उस बैंक के ग्राहकों पर पड़ता है, जिनकी जमा पूंजी बैंक के बंद होते ही फंस जाती है. हालांकि तकनीकी रूप से यह सरकार का प्रत्यक्ष नुकसान नहीं होता, लेकिन जनभावनाओं और राजनीतिक दबाव की वजह से सरकार को भी संकट झेलना पड़ता है।
आखिर बैंक क्यों होते हैं बंद?
भारत में सभी बैंकों का नियंत्रण और निगरानी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) के अंतर्गत होती है. यही संस्था सभी बैंकों को लाइसेंस जारी करती है और उन पर निगरानी रखती है. लेकिन जब किसी बैंक की वित्तीय स्थिति बेहद कमजोर हो जाती है, या उसके कामकाज में गंभीर गड़बड़ियाँ पाई जाती हैं, तो RBI उस बैंक का लाइसेंस रद्द कर देता है. ऐसे मामलों में बैंक का संचालन तुरंत रोक दिया जाता है और उसे बंद करने के आदेश जारी कर दिए जाते हैं।
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कई बार बैंकों के पास ग्राहकों की जमा राशि का सही-सही रिकॉर्ड नहीं होता, या फिर उनके पास इतनी परिसंपत्तियाँ नहीं होतीं कि वे जमाकर्ताओं को भुगतान कर सकें. ऐसे में बैंक को बंद करना ही आखिरी विकल्प रह जाता है।
बैंक बंद होने से किसे होता है सबसे बड़ा नुकसान?
जब भी कोई बैंक बंद होता है, तो उसका सबसे सीधा और बड़ा असर आम लोगों पर पड़ता है. जिन ग्राहकों ने बैंक में अपनी मेहनत की कमाई जमा कर रखी होती है, वे अचानक अनिश्चितता में फंस जाते हैं. बैंक बंद होने का मतलब होता है कि खाताधारक अपने ही पैसे तक नहीं पहुंच सकते।
सरकार का इस स्थिति में प्रत्यक्ष नुकसान नहीं होता, लेकिन अगर किसी बैंक में लाखों लोगों की जमा राशि फंसी हो, तो सरकार पर उन पैसों को दिलवाने का भारी सामाजिक और राजनीतिक दबाव बनता है. विशेष रूप से चुनावी समय में या राज्य स्तर पर ऐसी घटनाएँ सरकार के लिए संकट खड़ा कर सकती हैं. कई बार तो बैंकों की विफलता की वजह से किसी राज्य की सरकार पर अस्थिरता का संकट तक मंडराने लगता है।
जमाकर्ताओं को कैसे मिलता है पैसा वापस?
यहाँ DICGC यानी डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन का रोल अहम हो जाता है. DICGC, जो कि RBI की ही एक शाखा है, DICGC Act, 1961 के अंतर्गत जमाकर्ताओं की सुरक्षा करती है।
इस कानून की धारा 16(1) के अनुसार, अगर कोई बैंक बंद हो जाता है, तो DICGC हर एक खाताधारक को उसकी जमा राशि लौटाने की जिम्मेदारी लेती है. हालांकि यह राशि अधिकतम 5 लाख रुपये तक ही सीमित होती है. इसका मतलब है कि चाहे आपके खाते में 10 लाख रुपये हों या 50 लाख, DICGC आपको अधिकतम 5 लाख रुपये ही लौटाएगा।
इसमें आपकी मूलधन (Principal) और उस पर मिले ब्याज (Interest) दोनों का सम्मिलित मूल्य शामिल होता है. DICGC इंश्योरेंस की यह सीमा प्रति जमाकर्ता प्रति बैंक के आधार पर लागू होती है, न कि प्रति खाते के आधार पर।
बैंक बंद होने पर ग्राहक को क्या करना चाहिए?
जैसे ही किसी बैंक के बंद होने की घोषणा होती है, जमाकर्ता को सबसे पहले अपनी बैंक शाखा से संपर्क करना चाहिए. बैंक की ओर से आम तौर पर परिसमापन की प्रक्रिया (Liquidation Process) शुरू कर दी जाती है. यदि आपकी राशि 5 लाख रुपये से अधिक है, तो आपको परिसमापक द्वारा जारी नोटिसों का पालन करना होगा और दावा पत्र जमा करना होगा।
इसके बाद परिसमापक बैंक की संपत्तियों को बेचकर जमा राशि लौटाने की प्रक्रिया शुरू करता है, जिसमें समय लग सकता है. ऐसे मामलों में ग्राहकों को धैर्य और सजगता बनाए रखनी चाहिए, और समय-समय पर अपडेट लेते रहना चाहिए।
बैंक बंद होने के क्या होते हैं व्यापक आर्थिक और राजनीतिक प्रभाव?
जब कोई बैंक बंद होता है, तो उसका असर केवल ग्राहकों तक सीमित नहीं रहता. इससे देश की बैंकिंग प्रणाली की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठने लगते हैं. निवेशक और आम नागरिक बैंकिंग संस्थाओं पर से भरोसा खो सकते हैं, जिससे नकद निकासी और वित्तीय अस्थिरता का खतरा बढ़ जाता है।
राजनीतिक दृष्टिकोण से भी यह एक संवेदनशील विषय है. अगर किसी क्षेत्र में कोई सहकारी बैंक (Cooperative Bank) या ग्रामीण बैंक बंद होता है, तो वहाँ की जनता सीधा सरकार से सवाल पूछने लगती है. इससे सरकार पर राजनीतिक दबाव बढ़ता है और कई बार यह मसला संसद तक पहुँच जाता है।
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सरकार और RBI क्या कदम उठाते हैं?
ऐसे हालात से निपटने के लिए सरकार और RBI कई बार प्रभावित बैंक का किसी दूसरे मजबूत बैंक में विलय (Merger) कर देती है. जैसे कि PMC बैंक का विलय Unity Small Finance Bank में किया गया था. इससे खाताधारकों को राहत मिलती है और बैंकिंग सिस्टम की स्थिरता बनी रहती है।
इसके अलावा RBI ने अब बैंकों की निगरानी प्रणाली को और सख्त कर दिया है ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाएं कम हों. बैंकों के वित्तीय प्रदर्शन, NPA (Non-Performing Assets), और ग्राहक सेवा पर लगातार नजर रखी जाती है।