
बिहार में ज़मीन की लूट एक गंभीर और लगातार बढ़ती हुई समस्या बन चुकी है। खाता-खेसरा के रिकॉर्ड से छेड़छाड़ कर भू-माफिया (Land Mafia) करोड़ों की संपत्ति पर अवैध रूप से कब्जा कर रहे हैं। यह मामला सिर्फ निजी ज़मीनों तक सीमित नहीं है, बल्कि सरकारी और सार्वजनिक जमीनों को भी निशाना बनाया जा रहा है। सरकार द्वारा डिजिटलीकरण और भू-अभिलेख (Land Records) की पारदर्शिता बढ़ाने के दावे इन माफियाओं के सामने बौने साबित हो रहे हैं।
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डिजिटल रिकॉर्ड में छेड़छाड़ से बढ़ी ज़मीन कब्जाने की घटनाएं
सरकार ने भूमि रिकॉर्ड को ऑनलाइन कर पारदर्शिता लाने की कोशिश की, लेकिन इसका फायदा भी भू-माफियाओं ने उठा लिया। अब वे डिजिटल खाता-खेसरा रिकॉर्ड में गड़बड़ी कर फर्जी दस्तावेज तैयार करते हैं और वैध मालिकों को बेदखल कर जमीन पर कब्जा कर लेते हैं। इन फर्जीवाड़ों में पटवारी, अंचलाधिकारी और जमीन से जुड़े कई सरकारी कर्मचारी भी मिलीभगत के शक के दायरे में हैं।
कैसे होता है ज़मीन पर अवैध कब्जा
इस घोटाले का सबसे आम तरीका है किसी ज़मीन के खाता और खेसरा नंबर को डिजिटल प्रणाली में बदलकर फर्जी दस्तावेज बनाना। फिर इन दस्तावेजों के आधार पर न सिर्फ ज़मीन पर कब्जा किया जाता है, बल्कि कई बार उस ज़मीन को आगे बेच भी दिया जाता है। कई मामलों में एक ही ज़मीन कई बार बेची जाती है, जिससे वर्षों तक विवाद चलता है और मूल मालिक अदालतों के चक्कर काटते रह जाते हैं।
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करोड़ों की ज़मीन बनती है निशाना
रिपोर्ट के अनुसार, राजधानी पटना सहित गया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा और भागलपुर जैसे बड़े शहरों में यह रैकेट बेहद सक्रिय है। अकेले पटना जिले में बीते दो वर्षों में ऐसे 300 से अधिक मामले दर्ज हुए हैं जिनमें ज़मीन की कीमत 50 लाख से लेकर 5 करोड़ रुपये तक आंकी गई है। सरकारी आँकड़ों के अनुसार, केवल 2023 में बिहार में ज़मीन कब्जे के मामलों में 700 से अधिक एफआईआर दर्ज की गईं।
न्यायिक प्रक्रिया की धीमी चाल
भूमि विवादों को निपटाने की प्रक्रिया बेहद धीमी है। जमीन के असली मालिकों को न्याय पाने में सालों लग जाते हैं, जबकि भू-माफिया कब्जे का फायदा उठाकर संपत्ति का व्यावसायिक उपयोग या बिक्री कर चुके होते हैं। कोर्ट के आदेश के बावजूद, कई बार प्रशासन ज़मीन वापस दिलाने में विफल रहता है।
सरकार के प्रयास और उनकी सीमाएं
बिहार सरकार ने ‘अभिलेखों का पुनरीक्षण अभियान’ और ‘डिजिटल रेवेन्यू कोर्ट’ जैसी योजनाएं शुरू की हैं ताकि ज़मीन विवादों को तेजी से सुलझाया जा सके। इसके अलावा ई-रजिस्ट्रेशन और डिजिटल खेसरा प्लेटफॉर्म्स को लागू किया गया है। लेकिन जब तक इन प्रणालियों में सुरक्षा और पारदर्शिता नहीं लाई जाती, तब तक भू-माफिया अपने मंसूबों में कामयाब होते रहेंगे।
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पुलिस और प्रशासन की भूमिका संदिग्ध
भू-माफिया के बढ़ते हौसले के पीछे प्रशासन और पुलिस की निष्क्रियता भी एक बड़ा कारण है। कई बार पीड़ितों द्वारा थाने में शिकायत देने पर भी कार्रवाई नहीं होती। वहीं जिन मामलों में एफआईआर दर्ज होती है, उनमें भी जांच की गति बहुत धीमी होती है।
क्या है समाधान?
विशेष भूमि ट्रिब्यूनल की स्थापना, डिजिटल सुरक्षा में सुधार, ज़मीन की नियमित ऑडिटिंग, और दोषी अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई ऐसे कुछ समाधान हैं जो इस समस्या से निपटने में कारगर हो सकते हैं। साथ ही आम नागरिकों को भी ज़मीन खरीदने से पहले भू-अभिलेखों की गहराई से जांच करनी चाहिए।