संविदा कर्मचारियों को राहत मिलेगी? नियमितीकरण का मुद्दा सदन में उठा – सरकार ने दिया बड़ा जवाब

संविदा कर्मचारियों को राहत मिलेगी? नियमितीकरण का मुद्दा सदन में उठा – सरकार ने दिया बड़ा जवाब
संविदा कर्मचारियों को राहत मिलेगी? नियमितीकरण का मुद्दा सदन में उठा – सरकार ने दिया बड़ा जवाब
संविदा कर्मचारियों को राहत मिलेगी? नियमितीकरण का मुद्दा सदन में उठा – सरकार ने दिया बड़ा जवाब

मध्यप्रदेश सरकार के विभिन्न सरकारी विभागों में कर्मचारियों की भारी कमी देखने को मिल रही है। नियमित कर्मचारी बड़ी संख्या में रिटायर हो चुके हैं, लेकिन उनके स्थान पर नई भर्तियां नहीं की जा रही हैं। इस कारण प्रदेश का प्रशासनिक ढांचा डगमगाता नजर आ रहा है। विधानसभा में हाल ही में पेश की गई एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि राज्य में करीब तीन लाख नियमित पद खाली हैं और इन पदों को आउटसोर्स या संविदा कर्मचारियों के सहारे चलाया जा रहा है, जिससे न केवल कार्यों की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है, बल्कि भ्रष्टाचार और अनियमितताएं भी बढ़ी हैं।

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9 लाख स्वीकृत पद, केवल 6.06 लाख नियमित कर्मचारी

विधानसभा में प्रस्तुत रिपोर्ट के अनुसार, 31 मार्च 2024 की स्थिति में प्रदेश में कुल 9 लाख से अधिक स्वीकृत पद हैं, लेकिन इनमें से केवल 6 लाख 6 हजार पदों पर ही नियमित नियुक्तियां हुई हैं। इसका मतलब है कि करीब तीन लाख पद खाली पड़े हैं। यह स्थिति तब है जब पिछले नौ वर्षों से न तो कोई प्रमोशन हुआ है और न ही दिव्यांगों एवं आरक्षित वर्गों के लिए नियमित भर्तियां की गई हैं।

तृतीय और द्वितीय श्रेणी के पदों पर वर्कफोर्स की गंभीर कमी

प्रदेश के अधिकांश विभागों में विशेष रूप से तृतीय एवं द्वितीय श्रेणी के कर्मचारियों की भारी कमी है। मंत्रालय से लेकर जिला स्तर तक के सरकारी दफ्तर इस संकट से जूझ रहे हैं। इससे न केवल फाइलों की गति धीमी हुई है, बल्कि कई महत्वपूर्ण योजनाओं और कार्यों पर असर पड़ा है। संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों को गोपनीय कार्यों तक में लगाया जा रहा है, जिससे डाटा लीक और वित्तीय हानि की आशंका बनी रहती है।

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मुख्यमंत्री का निर्देश: जल्द होगी खाली पदों पर भर्ती

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने सभी विभागों को निर्देश दिए हैं कि वे अपने-अपने विभागों में खाली पदों की जानकारी एकत्र कर सामान्य प्रशासन विभाग को दें। इसके बाद एक व्यापक भर्ती अभियान चलाया जाएगा, जिसमें प्राथमिकता के आधार पर खाली पदों को भरा जाएगा। इससे न केवल वर्कफोर्स की कमी पूरी होगी बल्कि शासन की दक्षता में भी सुधार आएगा।

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आउटसोर्स कर्मचारी बन रहे भ्रष्टाचार का कारण

रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि 90 प्रतिशत गड़बड़ियां उन कार्यों में हुई हैं, जिन्हें आउटसोर्स कर्मचारियों द्वारा किया गया है। इससे साफ है कि आउटसोर्सिंग से जहां एक ओर काम चलता रहा है, वहीं दूसरी ओर गुणवत्ता और पारदर्शिता से समझौता करना पड़ा है। सरकारी खजाने को इससे करोड़ों रुपए की चपत लग चुकी है।

राज्य में कुल कितने सरकारी कर्मचारी?

वर्तमान में प्रदेश में 6 लाख 6 हजार नियमित कर्मचारी कार्यरत हैं। इसके अलावा सरकारी उपक्रमों में 33,942, नगरीय निकायों में 29,966, ग्रामीण निकायों में 5,422, विकास प्राधिकरणों में 582 और विश्वविद्यालयों में 4,490 कर्मचारी कार्यरत हैं। इस प्रकार कुल सरकारी कर्मचारी 6 लाख 81 हजार हैं। इनमें कार्यभारित, आकस्मिक निधि से वेतन प्राप्त, दैनिक वेतनभोगी, कोटवार और संविदा कर्मचारी शामिल नहीं हैं, जिनकी संख्या 2 लाख 37 हजार है।

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विपक्ष का आरोप, सरकार गुमराह कर रही है

विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा है कि प्रदेश में वर्कफोर्स की कमी के बावजूद सरकार केवल आंकड़ों की बाजीगरी कर रही है। विपक्ष का आरोप है कि सरकार खाली पदों को भरने में असफल रही है और आउटसोर्स कर्मचारियों के माध्यम से व्यवस्थाएं चलाकर आम जनता के साथ अन्याय कर रही है।

क्या नियमित होंगे संविदा और आउटसोर्स कर्मचारी?

इस सवाल का जवाब अभी स्पष्ट नहीं है। सरकार की ओर से आउटसोर्स कर्मचारियों को नियमित करने को लेकर कोई ठोस घोषणा नहीं की गई है। हालांकि समय-समय पर इस मुद्दे पर चर्चा होती रही है, लेकिन अभी तक कोई ठोस निर्णय सामने नहीं आया है।

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By Rohit Kumar

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