क्या बहू को मिलती है सास-ससुर की संपत्ति में हिस्सेदारी? जानिए भारतीय कानून क्या कहता है!

विवाह के बाद क्या बहू अपने ससुराल की संपत्ति की हकदार होती है? जानिए क्या कहता है भारतीय कानून, किस स्थिति में मिल सकता है अधिकार, और सुप्रीम कोर्ट ने क्या ऐतिहासिक फैसला दिया है जिससे बदल सकता है आपका नजरिया!

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Written byRohit Kumar

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क्या बहू को मिलती है सास-ससुर की संपत्ति में हिस्सेदारी? जानिए भारतीय कानून क्या कहता है!
क्या बहू को मिलती है सास-ससुर की संपत्ति में हिस्सेदारी? जानिए भारतीय कानून क्या कहता है!

भारतीय कानून में पारिवारिक संपत्ति को लेकर अक्सर कई सवाल उठते हैं, और उनमें से एक अहम सवाल यह है कि क्या बहू को सास-ससुर की प्रॉपर्टी में कोई हिस्सा मिलता है? विवाह के बाद महिलाएं अक्सर इस असमंजस में रहती हैं कि उन्हें अपने ससुराल की संपत्ति में अधिकार है या नहीं। खासकर जब पारिवारिक विवाद या पति-पत्नी के बीच अनबन हो जाती है, तब ये सवाल और भी गंभीर हो जाता है। इस लेख में हम इसी सवाल का जवाब विस्तार से समझाएंगे और बताएंगे कि भारतीय कानून बहू को सास-ससुर की प्रॉपर्टी में क्या अधिकार देता है।

महिलाओं को लेकर बनाए गए कानून

भारत में महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कई कानूनी प्रावधान बनाए गए हैं। इनमें घरेलू हिंसा अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम और विवाह अधिनियम जैसे कानून शामिल हैं, जो महिलाओं को विवाह के बाद सुरक्षा और सम्मान देने का प्रयास करते हैं। हालांकि, जब बात प्रॉपर्टी के अधिकार की आती है, खासकर सास-ससुर की संपत्ति में बहू के हक की, तो कानून की सीमाएं स्पष्ट हो जाती हैं।

सास-ससुर की प्रॉपर्टी पर बहू का कानूनी हक

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भारतीय संविधान के अनुसार बहू को ससुराल के घर में रहने का अधिकार तो है, लेकिन सास-ससुर की स्व-अर्जित संपत्ति पर वह कानूनी रूप से दावा नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने कई निर्णयों में स्पष्ट किया है कि जब तक विवाह संबंध कायम हैं, तब तक बहू को पति के घर यानी ससुराल में रहने का अधिकार है, लेकिन वह उस घर या प्रॉपर्टी की मालकिन नहीं बन सकती।

अगर सास-ससुर चाहते हैं कि बहू को संपत्ति में हिस्सा मिले, तो वे वसीयत (Will) बनाकर यह अधिकार दे सकते हैं। लेकिन अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया है, तो बहू को कानूनन कोई अधिकार नहीं होता कि वह जबरदस्ती उस प्रॉपर्टी में हिस्सा मांगे या दावा करे।

स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति में फर्क

यह समझना जरूरी है कि भारतीय कानून में स्व-अर्जित और पैतृक संपत्ति में बड़ा अंतर है। स्व-अर्जित संपत्ति वह होती है जो किसी व्यक्ति ने खुद के मेहनत से कमाई हो। इस तरह की संपत्ति पर मालिक की मर्जी से ही कोई अधिकार पा सकता है। वहीं, पैतृक संपत्ति वह होती है जो पूर्वजों से अगली पीढ़ी को मिलती है, जैसे पिता से बेटे को मिली ज़मीन या मकान।

यदि सास-ससुर की संपत्ति स्व-अर्जित है, तो बहू का उस पर कोई सीधा हक नहीं बनता। लेकिन अगर वह पैतृक संपत्ति है और उसका हिस्सा पति को मिला है, तो पति के जरिए बहू उस हिस्से पर間िप्रत्यक्ष रूप से अधिकार प्राप्त कर सकती है।

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पति के माध्यम से मिल सकता है हक

बहू को सास-ससुर की संपत्ति पर हक तभी मिल सकता है जब उसका पति उसे अपना हिस्सा ट्रांसफर करे या पति की मृत्यु हो जाने पर वह वैध उत्तराधिकारी के तौर पर सामने आए। अगर पति की मृत्यु हो चुकी है और बहू कामकाजी नहीं है, तब उसे Hindu Succession Act के तहत अपने पति के हिस्से की संपत्ति में कानूनी अधिकार मिल सकता है।

इस स्थिति में बहू को कोर्ट के माध्यम से यह साबित करना होता है कि वह अपने पति की विधवा है और उसका कोई अन्य सहारा नहीं है। इस आधार पर उसे पति की संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है, लेकिन यह अधिकार भी पति के हिस्से तक ही सीमित होता है, न कि पूरी सास-ससुर की संपत्ति पर।

कानून की सही जानकारी जरूरी

अक्सर देखा जाता है कि कई महिलाएं और परिवार इस कानूनी जानकारी के अभाव में या तो भावनात्मक रूप से निर्णय लेते हैं या फिर लंबी कानूनी लड़ाइयों में उलझ जाते हैं। इसलिए जरूरी है कि विवाह के बाद महिलाएं अपने कानूनी अधिकारों को समझें और यह जानें कि उन्हें कब और कैसे पारिवारिक संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है।

कानून में यह भी स्पष्ट है कि बहू को ससुराल में रहने से कोई नहीं रोक सकता जब तक कि वैवाहिक संबंध कायम हैं, लेकिन यह अधिकार सिर्फ रहने तक सीमित है, मालिकाना हक के तौर पर नहीं।

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