अब बैलों से खेती करने पर मिलेगा ₹30,000 हर साल! किसानों के लिए शुरू हुई राहत देने वाली योजना

खेती अब सिर्फ मेहनत नहीं, आमदनी का मौका भी है! अगर आप बैलों से खेती करते हैं, तो सरकार दे रही है, ₹30,000 हर साल की सीधी सहायता। जानिए कैसे आप इस योजना का लाभ उठा सकते हैं, और कौन कर सकता है, आवेदन, और क्या हैं जरूरी दस्तावेज पूरा फायदा उठाने के लिए पढ़िए पूरी जानकारी!

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Written byRohit Kumar

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बैलों से खेती करने वाले किसानों के लिए एक बड़ी राहत की खबर सामने आई है। Rajasthan सरकार ने बैलों से खेती (Oxen Farming) को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ₹30,000 की सब्सिडी देने की योजना की घोषणा की है। आधुनिक मशीनों और ट्रैक्टरों के कारण जहां बैलों का उपयोग कृषि कार्यों से लगभग समाप्त हो गया था, वहीं अब यह योजना पारंपरिक खेती को फिर से जीवित करने में अहम भूमिका निभाएगी।

अब बैलों से खेती करने पर मिलेगा ₹30,000 हर साल! किसानों के लिए शुरू हुई राहत देने वाली योजना
अब बैलों से खेती करने पर मिलेगा ₹30,000 हर साल! किसानों के लिए शुरू हुई राहत देने वाली योजना

राज्य की 2025-26 की बजट घोषणा के तहत यह अनुदान विशेष रूप से लघु और सीमांत किसानों के लिए है, जो आज भी खेतों में बैल की जोड़ी से खेती करते हैं। इस कदम से न केवल खेती की लागत में कमी आएगी, बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहेगी, और साथ ही रिन्यूएबल एनर्जी-Renewable Energy आधारित कृषि को भी बढ़ावा मिलेगा।

बैलों के संरक्षण और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की मजबूती

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राज्य सरकार की यह योजना बैलों को पुनः खेतों में लाकर न केवल पारंपरिक कृषि को संजीवनी देगी, बल्कि आवारा घूमते और उपेक्षित हो चुके बैलों को भी संरक्षण प्रदान करेगी। शहरों और गांवों की गलियों में आवारा घूमते बैल अब उपयोगी बनेंगे। सरकार की इस पहल से किसानों में गोपालन के प्रति रुचि भी बढ़ेगी, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा मिलेगी।

आज जहां ट्रैक्टर और अन्य कृषि यंत्रों का बोलबाला है, वहीं यह योजना पारंपरिक साधनों की उपयोगिता को फिर से स्थापित करने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकती है।

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हर साल ₹30,000 की प्रोत्साहन राशि

सरकार द्वारा घोषित योजना के अनुसार, जो किसान बैलों की जोड़ी से खेती करते हैं, उन्हें हर साल ₹30,000 की प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। यह राशि प्रति जोड़ी बैल पर आधारित होगी। इस राशि से किसान बैलों के चारे, देखभाल, बीमा और अन्य आवश्यक खर्चों को पूरा कर सकेंगे। इससे जहां खेती की लागत घटेगी, वहीं सस्टेनेबल एग्रीकल्चर की ओर भी एक मजबूत कदम बढ़ेगा।

ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया होगी सरल और पारदर्शी

इस योजना के तहत आवेदन की प्रक्रिया को पूरी तरह ऑनलाइन और पारदर्शी बनाया गया है। किसान राज किसान साथी पोर्टल के माध्यम से स्वयं या नजदीकी ई-मित्र केंद्र से आवेदन कर सकते हैं। आवेदन पत्र भरने के लिए किसानों को अपनी बैलों की जोड़ी की जानकारी, फोटो, बीमा और स्वास्थ्य प्रमाण पत्र जैसी जानकारियाँ अपलोड करनी होंगी।

राज्य कृषि आयुक्त चिन्मयी गोपाल द्वारा निर्देश दिए गए हैं, कि कृषि अधिकारी गांवों में जाकर किसानों से जानकारी एकत्र करें। बैलों को ट्रैक करने के लिए उन्हें Tracking ID दी जाएगी। योजना की स्थिति और स्वीकृति की जानकारी किसानों को SMS और पोर्टल के माध्यम से प्राप्त होगी।

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लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक शर्तें

इस योजना का लाभ उठाने के लिए कुछ आवश्यक शर्तों को पूरा करना अनिवार्य है। किसान के पास कम से कम एक जोड़ी बैल होना चाहिए और उनका उपयोग खेतों में किया जा रहा हो। साथ ही, केवल लघु एवं सीमांत किसान ही इस योजना के लिए पात्र होंगे। इसके लिए किसानों को तहसीलदार द्वारा प्रमाण पत्र, भूमि स्वामित्व दस्तावेज या अनधिकार पट्टा, बैलों की बीमा पॉलिसी, स्वास्थ्य प्रमाण पत्र और बैल की उम्र (15 महीने से 12 साल के बीच) का विवरण देना अनिवार्य होगा।

किसान को ₹100 के स्टाम्प पर शपथ पत्र, लघु या सीमांत श्रेणी का प्रमाण पत्र भी अपलोड करना होगा। आवेदन के बाद सरकार द्वारा 30 दिनों के भीतर स्क्रूटनी कर स्वीकृति दी जाएगी।

योजना से होने वाले बहुपक्षीय लाभ

यह योजना केवल आर्थिक सहायता तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके सामाजिक और पर्यावरणीय लाभ भी हैं। बैलों से खेती करने से मिट्टी की गुणवत्ता बनी रहती है, जिससे लंबे समय तक उर्वरता बनी रहती है। इसके साथ ही ट्रैक्टरों के उपयोग से होने वाले डीजल के खर्च और प्रदूषण में भी कमी आएगी।

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बैलों की उपयोगिता बढ़ने से पशुपालन, पारंपरिक ज्ञान और स्थानीय संसाधनों का उपयोग भी बढ़ेगा, जिससे गांवों में रोजगार और सामाजिक संतुलन में सुधार होगा। यह योजना आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य की दिशा में भी सहायक होगी।

सरकार की पहल से उम्मीद की नई किरण

राज्य सरकार की इस योजना ने उन किसानों में नई उम्मीद जगा दी है, जो आधुनिक साधनों के खर्च से जूझ रहे थे और पारंपरिक तरीकों से खेती करना चाहते हैं। अब न केवल उनकी खेती सस्ती होगी, बल्कि बैल जैसे पारंपरिक मित्र को भी फिर से सम्मान और उपयोगिता मिलेगी।

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