
भारत में लंबे समय से क्रिप्टोकरेंसी-Cryptocurrency को लेकर स्पष्ट नीति की कमी को लेकर चिंता जताई जाती रही है। अब इस दिशा में बड़ा कदम उठता दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले की सुनवाई के दौरान की गई सख्त टिप्पणी के बाद केंद्र सरकार क्रिप्टोकरेंसी पर ठोस कानून लाने की प्रक्रिया में तेजी लाने जा रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, सरकार जून में क्रिप्टो एसेट्स को लेकर एक प्रस्तावित दस्तावेज (consultation paper) जारी कर सकती है, जिसमें इस डिजिटल संपत्ति के नियमन से जुड़े संभावित विकल्पों और कानूनी ढांचे पर दिशानिर्देश होंगे।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से बढ़ा दबाव
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से की जा रही एक मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दौरान केंद्र सरकार से सवाल किया कि अभी तक क्रिप्टोकरेंसी को लेकर कोई स्पष्ट और ठोस कानून क्यों नहीं बनाया गया है। अदालत का यह रुख साफ संकेत देता है कि देश में डिजिटल करेंसी से जुड़ी बढ़ती गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए एक समर्पित कानूनी ढांचा समय की मांग बन चुका है। कोर्ट ने हालांकि यह भी कहा कि कानून बनाना उसका कार्य नहीं, बल्कि यह पूरी तरह से सरकार की जिम्मेदारी है। इसके साथ ही अदालत ने यह भी जोड़ा कि यदि किसी को शिकायत है, तो वह सरकार के सामने अपनी बात रख सकता है।
वित्त मंत्रालय की तैयारी, जून में आएगा दस्तावेज
सूत्रों की मानें तो वित्त मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला आर्थिक मामलों का विभाग (DEA) इस प्रस्तावित दस्तावेज पर काम कर रहा है। यह दस्तावेज सार्वजनिक परामर्श के लिए जारी किया जाएगा ताकि निवेशक, एक्सपर्ट और अन्य हितधारक अपनी राय दे सकें। इसके बाद सरकार सभी पक्षों के विचारों को ध्यान में रखते हुए क्रिप्टोकरेंसी पर एक विस्तृत कानून का खाका तैयार करेगी।
इससे यह उम्मीद जताई जा रही है कि आने वाले महीनों में भारत को क्रिप्टो से जुड़ा पहला औपचारिक और स्वतंत्र कानून मिल सकता है। यह दस्तावेज सरकार की ओर से क्रिप्टो रेगुलेशन के लिए एक रोडमैप होगा, जो आगे चलकर एक मजबूत कानूनी ढांचे का आधार बनेगा।
मौजूदा स्थिति में किन कानूनों के तहत होती है कार्रवाई
फिलहाल भारत में क्रिप्टोकरेंसी को लेकर कोई अलग कानून मौजूद नहीं है। क्रिप्टो से जुड़े मामलों में मौजूदा कानूनी प्रावधान जैसे इनकम टैक्स कानून, मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक कानून (PMLA) और FEMA के तहत कार्रवाई की जाती है। हालांकि, ये कानून डिजिटल एसेट्स की प्रकृति और जोखिम को ध्यान में रखते हुए बनाए नहीं गए हैं, जिस कारण कई बार इनकी सीमाएं स्पष्ट हो जाती हैं।
क्रिप्टो के निवेशकों की संख्या भारत में लाखों में है और तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में धोखाधड़ी, टैक्स चोरी और आर्थिक अस्थिरता जैसे जोखिमों को ध्यान में रखते हुए एक अलग और स्पष्ट कानून की जरूरत महसूस की जा रही है।
वैश्विक स्तर पर सहमति की कोशिशें
सरकार पहले ही अंतरराष्ट्रीय मंचों जैसे G20 के माध्यम से क्रिप्टोकरेंसी के नियमन पर वैश्विक सहमति बनाने की दिशा में प्रयास कर रही है। भारत का मानना है कि डिजिटल करेंसी जैसी सीमाहीन तकनीक पर यदि सिर्फ एक देश कानून बनाए, तो उसकी प्रभावशीलता सीमित हो सकती है। इसलिए एक अंतरराष्ट्रीय सहमति की आवश्यकता है ताकि क्रॉस-बॉर्डर फ्रॉड और मनी लॉन्ड्रिंग को रोका जा सके।
निवेशकों की सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए जरूरी है कानून
क्रिप्टोकरेंसी बाजार में भारी अस्थिरता के चलते कई निवेशक पहले ही नुकसान उठा चुके हैं। बिना रेगुलेशन के काम कर रही क्रिप्टो एक्सचेंज और टोकन स्कीमें कई बार निवेशकों को धोखा देती हैं। इसी को देखते हुए निवेशकों की सुरक्षा और देश की आर्थिक स्थिरता बनाए रखने के लिए एक ठोस कानून बनाना जरूरी है।
इसके साथ ही यह कानून टैक्स व्यवस्था को भी स्पष्ट करेगा, जिससे सरकार को रेवेन्यू की हानि भी नहीं होगी। फिलहाल क्रिप्टो पर लागू टैक्स नियम भी अस्पष्टता और भ्रम की स्थिति पैदा करते हैं।
जनता और विशेषज्ञों की मांग भी बनी दबाव का कारण
सिर्फ अदालत ही नहीं, बल्कि आम जनता और एक्सपर्ट्स की ओर से भी सरकार पर दबाव रहा है कि वह क्रिप्टोकरेंसी पर कानून बनाए। सुप्रीम कोर्ट में कुछ याचिकाएं भी दायर की गई थीं, जिनमें मांग की गई थी कि सरकार को क्रिप्टो रेगुलेशन के लिए जल्द से जल्द कदम उठाना चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने बताया कि नियमों की गैरमौजूदगी में कई लोग आर्थिक नुकसान झेल रहे हैं।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि कानून बनाना उसका कार्यक्षेत्र नहीं है, लेकिन इस टिप्पणी ने सरकार पर नैतिक और राजनीतिक दबाव जरूर बना दिया है, जिसका असर अब दिखाई दे रहा है।
जून का प्रस्तावित दस्तावेज: पहली ठोस पहल
सरकार की ओर से जून में जो पेपर लाया जा रहा है, उसे क्रिप्टो रेगुलेशन की दिशा में भारत की पहली ठोस और संगठित पहल माना जा रहा है। यह दस्तावेज न केवल डिजिटल एसेट्स की परिभाषा को स्पष्ट करेगा, बल्कि यह बताएगा कि किस ढांचे के तहत इन पर निगरानी रखी जाएगी, कैसे टैक्स लगाया जाएगा, और निवेशकों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाएगी।
यह कदम न केवल भारत के डिजिटल अर्थव्यवस्था में भरोसा बढ़ाएगा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के लिए भी भारत को एक सुरक्षित और स्पष्ट रेगुलेटेड मार्केट के रूप में स्थापित करेगा।