
iPhone की मैन्युफैक्चरिंग अगर पूरी तरह से अमेरिका में शुरू होती है, तो इसकी कीमत में बेतहाशा वृद्धि हो सकती है। एक हालिया विश्लेषण के मुताबिक, इस स्थिति में iPhone की कीमत करीब ₹3 लाख तक पहुंच सकती है, जो मौजूदा कीमत से लगभग तीन गुना ज्यादा है। Apple को अगर अपनी पूरी प्रोडक्शन यूनिट अमेरिका शिफ्ट करनी पड़ी, तो उत्पादन लागत, लेबर चार्ज और सप्लाई चेन स्ट्रक्चर में बड़े बदलाव करने होंगे, जिनका सीधा असर ग्राहकों की जेब पर पड़ेगा।
अमेरिका में iPhone बनाना क्यों पड़ेगा भारी?
Apple अभी अपने ज्यादातर iPhone मॉडल्स का निर्माण चीन, भारत और वियतनाम जैसे लो-कॉस्ट देशों में करवाता है। ये देश सस्ती लेबर, सस्ते रॉ मैटेरियल और ढीले लेबर नियमों के लिए जाने जाते हैं, जिससे Apple को लागत नियंत्रण में रखने में मदद मिलती है। लेकिन अगर अमेरिका में प्रोडक्शन होता है, तो वहां के महंगे लेबर रेट्स, स्ट्रिक्ट लेबर लॉज और उच्च इंफ्रास्ट्रक्चर लागत के कारण iPhone बनाना बेहद महंगा पड़ सकता है।
विश्लेषण में कहा गया है कि सिर्फ लेबर कॉस्ट ही अमेरिका में चीन या भारत की तुलना में कई गुना ज्यादा है। इसके अलावा, अमेरिका में फैक्ट्री सेटअप, ऑपरेशनल लागत और सप्लाई चेन नेटवर्क खड़ा करने में भी भारी खर्च आएगा, जिसका सीधा असर प्रोडक्ट की फाइनल कीमत पर पड़ेगा।
क्यों उठ रहा है अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग का मुद्दा?
हाल के वर्षों में अमेरिका और चीन के बीच बढ़ते राजनीतिक और व्यापारिक तनावों के कारण कई अमेरिकी टेक कंपनियां अपने प्रोडक्शन यूनिट्स को चीन से बाहर ले जाने पर विचार कर रही हैं। इस बदलाव के पीछे मुख्य कारण हैं सप्लाई चेन सिक्योरिटी, जियोपॉलिटिकल स्थिरता और भविष्य की अनिश्चितताएं। कई रिपोर्ट्स में यह अनुमान भी लगाया गया है कि अमेरिका सरकार की ओर से Apple पर दबाव बनाया जा सकता है कि वह अपने डिवाइसेज को घरेलू स्तर पर मैन्युफैक्चर करे।
Apple पहले ही भारत और वियतनाम जैसे देशों में अपने कुछ प्रोडक्शन यूनिट्स ट्रांसफर कर चुका है। भारत में खासतौर पर iPhone 12, iPhone 13 और अब iPhone 15 सीरीज के कुछ मॉडल्स की असेंबली हो रही है। लेकिन अगर पूरी मैन्युफैक्चरिंग अमेरिका में होती है, तो कंपनी की लागत इतनी बढ़ सकती है कि प्रॉफिट मार्जिन बनाए रखना भी मुश्किल हो जाएगा।
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भारत में iPhone यूजर्स पर क्या असर होगा?
भारत में iPhone पहले से ही एक प्रीमियम स्मार्टफोन के तौर पर देखा जाता है, जिसकी कीमत आम भारतीय उपभोक्ता की पहुंच से बाहर होती है। अगर अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग की वजह से iPhone की कीमत ₹3 लाख तक पहुंचती है, तो यह प्रोडक्ट पूरी तरह से एक लग्जरी आइटम बन जाएगा। इस स्थिति में भारत जैसे मूल्य-संवेदनशील बाजार में Apple की बिक्री पर बुरा असर पड़ सकता है।
Apple फिलहाल भारत में iPhone असेंबल करवा रहा है ताकि उसे GST और इम्पोर्ट ड्यूटी में राहत मिल सके और वह अपने प्रोडक्ट की कीमतों को प्रतिस्पर्धात्मक बनाए रख सके। लेकिन अगर ग्लोबल लेवल पर मैन्युफैक्चरिंग अमेरिका में शिफ्ट होती है, तो भारत में बिकने वाले iPhone की कीमतें भी प्रभावित हो सकती हैं।
क्या Apple मुनाफे से समझौता करेगा?
Apple जैसी मुनाफा-केंद्रित कंपनी के लिए यह फैसला आसान नहीं होगा। उसे न केवल अपने प्रॉफिट मार्जिन को बनाए रखना है, बल्कि क्वालिटी, टाइमलाइन और सप्लाई चेन स्टेबिलिटी पर भी ध्यान देना है। अमेरिका में उत्पादन का अर्थ है महंगे ऑपरेशन और महंगी डिवाइस। ऐसी स्थिति में Apple के लिए ग्राहकों को बनाए रखना और नए ग्राहकों को जोड़ना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि Apple भविष्य में हाइब्रिड मैन्युफैक्चरिंग मॉडल की ओर बढ़ सकता है। इसमें हाई-एंड मॉडल्स जैसे iPhone Pro और Ultra अमेरिका में बनाए जा सकते हैं, जबकि स्टैंडर्ड और मिड-रेंज मॉडल्स की मैन्युफैक्चरिंग भारत जैसे देशों में जारी रह सकती है। इससे Apple को लागत पर कुछ हद तक नियंत्रण रखने और बाजार में संतुलन बनाए रखने में मदद मिल सकती है।
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भविष्य की रणनीति कैसी हो सकती है?
Apple पहले ही अपनी सप्लाई चेन को डाइवर्सिफाई करने की कोशिश कर रहा है। चीन पर निर्भरता घटाने के लिए वह भारत और वियतनाम जैसे देशों में उत्पादन बढ़ा रहा है। लेकिन अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग एक दीर्घकालिक रणनीतिक फैसला होगा, जिसे लेने से पहले कंपनी को कई आर्थिक और राजनीतिक पहलुओं का मूल्यांकन करना होगा।
अगर वास्तव में अमेरिका में मैन्युफैक्चरिंग होती है और iPhone की कीमत ₹3 लाख तक पहुंचती है, तो यह स्मार्टफोन केवल एक प्रीमियम ब्रांड नहीं बल्कि एक अल्ट्रा-लग्जरी ब्रांड बन जाएगा। इससे Apple की ब्रांड पोजिशनिंग तो मजबूत हो सकती है, लेकिन मार्केट शेयर पर इसका नकारात्मक असर भी हो सकता है, खासकर भारत जैसे उभरते हुए बाजारों में।