हर साल नौकरी बदलते हैं? तो सतर्क हो जाएं! गिर सकती है टैक्स विभाग की गाज

करियर में ग्रोथ के साथ टैक्स की गड़बड़ी भी ना हो जाए! जानिए नौकरी बदलने पर ITR फाइल करते समय किन जरूरी बातों का ध्यान रखना है EPF, PPF, फॉर्म 16 से लेकर टैक्स क्रेडिट तक पूरी डिटेल में समझिए ये नियम, वरना हो सकती है Income Tax की बड़ी कार्रवाई!

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Written byRohit Kumar

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हर साल नौकरी बदलते हैं? तो सतर्क हो जाएं! गिर सकती है टैक्स विभाग की गाज
हर साल नौकरी बदलते हैं? तो सतर्क हो जाएं! गिर सकती है टैक्स विभाग की गाज

आज के समय में करियर ग्रोथ और बेहतर सैलरी के अवसरों की तलाश में हर साल नौकरी बदलना आम बात हो गई है। खासकर युवा प्रोफेशनल्स एक ही फाइनेंशियल ईयर में एक से ज्यादा कंपनियों में काम करते हैं। हालांकि, ऐसा करने से जहां नए अवसर मिलते हैं, वहीं Income Tax Return (ITR) फाइल करते समय कुछ गंभीर बातों का ध्यान न देने पर भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। नौकरी बदलने पर टैक्स डिडक्शन, सैलरी डिक्लेरेशन और इन्वेस्टमेंट क्लेम्स को लेकर कई बार गलतियां हो जाती हैं, जो बाद में Income Tax विभाग की तरफ से नोटिस तक पहुंचा सकती हैं।

फॉर्म 16 लेना है जरूरी, सभी नियोक्ताओं से लें

अगर आपने एक ही वित्तीय वर्ष में दो या उससे अधिक कंपनियों में काम किया है, तो आपको हर नियोक्ता से अलग-अलग Form 16 लेना जरूरी है। Form 16 में आपकी सैलरी की जानकारी के साथ-साथ उस पर कटे गए टैक्स यानि TDS की भी पूरी डिटेल दी होती है। यह दस्तावेज ITR फाइल करते समय आपके कुल टैक्स कैलकुलेशन में अहम भूमिका निभाता है। कई बार पुराने नियोक्ता से Form 16 लेना भूल जाते हैं, जिससे बाद में इनकम मैच करने में दिक्कत होती है।

एक ही इन्वेस्टमेंट पर दो बार क्लेम न करें

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नौकरी बदलते समय आमतौर पर नई कंपनी में जॉइन करते वक्त आपसे Investment Declaration लिया जाता है। ऐसे में पहले नियोक्ता को दिए गए इन्वेस्टमेंट प्रूफ (जैसे EPF, PPF, ELSS, Mediclaim) को नई कंपनी में दोबारा डिक्लेयर करना सामान्य बात होती है। लेकिन कई बार लोग एक ही निवेश पर दो बार Deduction क्लेम कर देते हैं, जिससे टैक्स कैलकुलेशन में अंतर आ जाता है और बाद में ITR प्रोसेसिंग के दौरान दिक्कत होती है। इस गलती से बचने के लिए दोनों कंपनियों में किए गए इन्वेस्टमेंट को एक बार ही सही तरीके से जोड़कर ITR में दिखाएं।

टैक्स क्रेडिट क्लेम करने से पहले फॉर्म 26AS चेक करें

Form 26AS एक ऐसा दस्तावेज है जिसमें आपकी सैलरी से कटे गए TDS की पूरी जानकारी होती है। अगर आपने एक ही कंपनी में पांच साल से ज्यादा काम किया है और नौकरी छोड़ी है तो आपको Gratuity मिलती है, जो कि 20 लाख रुपये तक टैक्स फ्री होती है। इसी तरह Leave Encashment पर भी टैक्सेशन नियम लागू होते हैं। ITR फाइल करते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि आपने पहले ही कितना टैक्स दे दिया है और कितना बकाया है। इसके लिए फॉर्म 26AS को चेक करना जरूरी है ताकि टैक्स क्रेडिट क्लेम करते समय कोई गलती न हो।

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पुरानी नौकरी की सैलरी रिपोर्ट करना न भूलें

नौकरी बदलने के बाद कई लोग नई नौकरी की सैलरी को तो ITR में रिपोर्ट कर देते हैं, लेकिन पुरानी नौकरी से मिली सैलरी की जानकारी देना भूल जाते हैं। इससे Income Tax विभाग के पास आपकी कुल इनकम का मिसमैच दिखाई देता है और आपको नोटिस मिल सकता है। यह मिसमैच फॉर्म 26AS और AIS (Annual Information Statement) के डेटा के आधार पर ट्रैक किया जा सकता है। इसलिए जरूरी है कि ITR फाइल करते समय पुरानी और नई दोनों नौकरियों से प्राप्त सैलरी को जोड़कर कुल इनकम रिपोर्ट करें।

कुल टैक्सेबल इनकम की सही गणना करें

एक से ज्यादा नौकरी में काम करने पर आपके कुल सालाना इनकम में इजाफा होता है, जिससे आपकी टैक्सेबल इनकम भी बढ़ जाती है। कई बार ऐसा होता है कि हर कंपनी अपने हिस्से का टैक्स काटती है लेकिन वे कुल इनकम को ध्यान में नहीं रखते। इससे अंत में टैक्स की बकाया राशि रह जाती है, जिसका भुगतान आपको ITR फाइल करते समय करना पड़ता है। अगर आपने एडवांस टैक्स या सेल्फ असेसमेंट टैक्स समय पर नहीं भरा, तो आप पर ब्याज भी लग सकता है।

प्रोविडेंट फंड (EPF) और ग्रेच्युटी की सही जानकारी दें

EPF अकाउंट आमतौर पर नौकरी बदलने के बाद भी एक ही रहता है, लेकिन कुछ मामलों में नया अकाउंट भी खुल सकता है। आपको यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आपने पुरानी कंपनी के EPF को नई कंपनी में ट्रांसफर किया है या नहीं। अगर आपने निकासी की है तो उस पर टैक्स लागू हो सकता है (अगर सेवा 5 साल से कम है)। इसी तरह ग्रेच्युटी की राशि पर टैक्स छूट की सीमा और पात्रता की सही जानकारी होना जरूरी है।

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