वसीहत में छोटी सी गलती… और जमीन पर हक किसी और का! जानिए लीगल लूपहोल

भारत में करोड़ों की संपत्तियों पर विवाद सिर्फ इसलिए हो जाते हैं क्योंकि वसीहत बनाते वक्त लोग छोटी-छोटी कानूनी बातों को नजरअंदाज कर देते हैं। एक मामूली लूपहोल आपकी सालों की कमाई किसी और की झोली में डाल सकता है। जानिए वो ज़रूरी लीगल पॉइंट्स जो हर वसीहत में होने चाहिए, वरना पछताना पड़ेगा!

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Written byRohit Kumar

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वसीहत में छोटी सी गलती… और जमीन पर हक किसी और का! जानिए लीगल लूपहोल
वसीहत में छोटी सी गलती… और जमीन पर हक किसी और का! जानिए लीगल लूपहोल

भारत में संपत्ति विवाद अब हर वर्ग में आम हो चुके हैं। खासतौर पर विवाहित बहन (Married Sister) के पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) में हक को लेकर कई तरह की गलतफहमियां फैली हुई हैं। यही वजह है कि लोग अक्सर यह सवाल करते हैं कि क्या शादी के बाद बहन अपने भाई की संपत्ति पर दावा कर सकती है? इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि भारत के कानून इस पर क्या कहते हैं और वसीयत (Will) का इसमें क्या रोल होता है।

विवाहित बहन और पैतृक संपत्ति का अधिकार

2005 में हुए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) में बदलाव ने बेटियों को उनके हक की ताकत दी। अब बेटी चाहे शादीशुदा हो या अविवाहित, अगर संपत्ति पैतृक है, यानी वह संपत्ति उनके पिता को उनके पूर्वजों से मिली है, तो उसपर बेटे और बेटी दोनों का बराबर का हक होता है। इसका सीधा मतलब यह है कि शादी के बाद भी बहन अपने मायके की पैतृक संपत्ति में बराबरी की हकदार होती है।

वसीयत का महत्व: गेम यहीं से शुरू होता है

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अगर किसी ने अपनी संपत्ति के लिए वसीयत (Will) बना रखी है, तो संपत्ति का बंटवारा उसी के अनुसार होगा। लेकिन अगर वसीयत नहीं है, तो हिंदू उत्तराधिकार कानून (Hindu Succession Law) लागू होता है। इस कानून के तहत पहले दर्जे के उत्तराधिकारियों (Class-I heirs) को प्राथमिकता मिलती है — जैसे कि पत्नी, बेटे और बेटियां।

जब भाई की संपत्ति में बहन का हक बनता है

सामान्यतः एक बहन को अपने भाई की संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता, लेकिन यह स्थिति तब बदल जाती है जब भाई की मौत हो जाती है और उसने कोई वसीयत नहीं बनाई होती। यदि भाई की कोई पत्नी, संतान या अन्य पहले दर्जे के वारिस मौजूद नहीं हैं, तो बहन को भी उस संपत्ति में हक मिल सकता है। इस स्थिति में बहन दूसरे दर्जे की उत्तराधिकारी (Class-II heir) के रूप में आती है, और कानून उसे संपत्ति में हिस्सा लेने का अधिकार देता है।

स्वयं अर्जित संपत्ति में मालिक की मर्जी चलती है

अगर माता-पिता या कोई अन्य सदस्य अपनी मेहनत से संपत्ति अर्जित करते हैं, तो वह स्वयं अर्जित संपत्ति (Self-acquired Property) कहलाती है। ऐसी संपत्ति पर मालिक को यह पूरा अधिकार होता है कि वह इसे अपनी मर्जी से किसी को भी दे सकते हैं — चाहे वह बेटा हो, बेटी हो या कोई और। यदि उन्होंने वसीयत के ज़रिए यह स्पष्ट कर दिया है, तो उसमें कोई कानूनी चुनौती नहीं दी जा सकती, जब तक वसीयत में कोई तकनीकी खामी न हो।

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शादी के बाद बहन का हक क्यों है ज़रूरी समझना?

अभी भी कई लोग यह मानते हैं कि शादी के बाद बहन का अपने मायके की संपत्ति से कोई लेना-देना नहीं रहता। यह सोच अब कानून के अनुसार गलत है। बेटियों को समान अधिकार देना लैंगिक समानता (Gender Equality) की दिशा में एक बड़ा कदम है। खासकर जब पारिवारिक विवाद अदालतों तक पहुंचते हैं, तो यह अधिकार बहनों के लिए सुरक्षा कवच बनकर सामने आता है।

पारिवारिक विवादों का मुख्य कारण: कानून की जानकारी की कमी

भारत में संपत्ति के अधिकतर विवादों की जड़ कानून की सही जानकारी का अभाव है। कई बार लोग अपने हक से अंजान रहते हैं या फिर भ्रमित हो जाते हैं कि वसीयत होनी चाहिए या नहीं। जब वसीयत नहीं होती और भाई की मृत्यु हो जाती है, तब बहन को भी संपत्ति में हक मिलता है, अगर कोई अन्य पात्र उत्तराधिकारी नहीं हो।

बहनों को उनका अधिकार दिलाने के लिए जागरूकता ज़रूरी

Renewable Energy और IPO जैसे विषयों की तरह अब Property Rights की जानकारी भी हर किसी के लिए आवश्यक होती जा रही है। विशेष रूप से बहनों को अपने अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए ताकि वे अपने हक की लड़ाई मजबूती से लड़ सकें।

वसीहत बनाए नहीं तो बहन भी बन सकती है जमीन की मालिक

समाज में बदलाव आ रहा है, और कानून बेटियों को उनका हक दे चुका है। ज़रूरत है कि लोग भी इसे समझें और कानून की जानकारी रखें। अगर कोई अपनी संपत्ति को लेकर स्पष्टता चाहता है, तो उसे वसीयत बनानी चाहिए। नहीं तो, परिस्थितियां ऐसी बन सकती हैं कि भाई की जमीन उसकी बहन को मिल जाए — और वो भी पूरे कानूनी अधिकार के साथ।

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