पायजामे का नाड़ा खोलना, ब्रेस्ट पकड़ना रेप नहीं……. सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख! इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित फैसले पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा की गई असंवेदनशील टिप्पणी पर कड़ी आपत्ति जताई। इस फैसले ने पूरे देश में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के बारे में एक नई बहस को जन्म दिया जानिए इस विवाद के पीछे की पूरी कहानी और सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण कदम!

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Written byRohit Kumar

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पायजामे का नाड़ा खोलना, ब्रेस्ट पकड़ना रेप नहीं……. सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख! इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित फैसले पर लगाई रोक
पायजामे का नाड़ा खोलना, ब्रेस्ट पकड़ना रेप नहीं……. सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख! इलाहाबाद हाईकोर्ट के विवादित फैसले पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा दुष्कर्म मामले में की गई असंवेदनशील टिप्पणियों पर रोक लगा दी है। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 17 मार्च 2025 को अपने एक फैसले में कहा था कि ‘वक्ष स्पर्श करना और पायजामे का नाड़ा खोलना रेप नहीं है’। यह बयान सामने आने के बाद पूरे देश में इस पर विवाद शुरू हो गया था, और इसने न केवल महिला आयोग बल्कि समाज के अन्य हिस्सों में भी प्रतिक्रिया पैदा की।

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर स्वत: संज्ञान लिया और इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर गंभीर आपत्ति जताई। न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि यह मामला गंभीर है, और यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह टिप्पणी पूरी तरह से असंवेदनशील थी। कोर्ट ने इस टिप्पणी को महिला अधिकारों के प्रति अत्यधिक लापरवाह और असंवेदनशील माना। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट का विवादास्पद बयान

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इलाहाबाद हाई कोर्ट का यह बयान एक याचिका पर सुनवाई के दौरान आया था, जिसमें एक नाबालिग महिला ने दुष्कर्म का मामला दायर किया था। कोर्ट ने कहा कि केवल वक्ष स्पर्श करना और पायजामे का नाड़ा खोलना बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता है। हाई कोर्ट ने इसे किसी महिला के खिलाफ हमले या आपराधिक बल के प्रयोग के रूप में माना, जिसका उद्देश्य महिला को निर्वस्त्र करना या नग्न होने के लिए मजबूर करना था।

यह टिप्पणी विशेष रूप से विवादित हो गई थी क्योंकि इसमें बलात्कार की परिभाषा को सही ढंग से समझने में कमी दिखी थी। न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा ने यह आदेश दिया, जो बाद में गंभीर आलोचनाओं का कारण बना। महिला आयोग ने इस पर अपनी आपत्ति जताई और इसे महिला विरोधी टिप्पणी के रूप में देखा।

महिला आयोग और अन्य की प्रतिक्रिया

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान महिला आयोग ने भी इस बयान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। रेखा शर्मा, जो कि राष्ट्रीय महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष हैं, ने भी इस पर आपत्ति जताई और इसे असंवेदनशील करार दिया। इसके अलावा, कई महिला अधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस टिप्पणी को महिला अधिकारों के प्रति असम्मानजनक और गलत ठहराया।

सुप्रीम कोर्ट का रुख

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले की गंभीरता को समझा और इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बलात्कार एक गंभीर अपराध है और इसे हल्के में नहीं लिया जा सकता। न्यायमूर्ति गवई ने यह भी कहा कि यह टिप्पणी संवेदनशीलता और जिम्मेदारी के अभाव का परिणाम है, जो एक न्यायाधीश से उम्मीद नहीं की जाती है।

इस निर्णय के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार से इस मुद्दे पर जवाब मांगा है, और यह भी कहा कि मामले की गंभीरता को देखते हुए इस पर तुरंत विचार किया जाएगा।

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क्या था मामला?

यह मामला एक नाबालिग लड़की से जुड़ा था, जिसने अपने खिलाफ हुए दुष्कर्म की शिकायत दर्ज कराई थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए यह विवादास्पद टिप्पणी की कि सिर्फ वक्ष स्पर्श और पायजामे का नाड़ा खोलना बलात्कार के दायरे में नहीं आता है। अदालत ने इस तरह की टिप्पणियों को बलात्कार के कानूनी परिभाषा से बाहर रखने की कोशिश की, जिसके बाद यह एक बड़ा विवाद बन गया।

उच्चतम न्यायालय का संज्ञान

सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को लेकर तुरंत कार्रवाई की और उच्च न्यायालय के निर्णय को गलत ठहराया। कोर्ट ने कहा कि यह फैसला महिला अधिकारों के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी माना कि यह टिप्पणी न्यायिक प्रक्रिया में गंभीर खामी को उजागर करती है, जिसे तुरंत सही किया जाना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि देश में महिलाओं के अधिकारों को लेकर संवेदनशीलता और जिम्मेदारी बनाए रखना अत्यंत आवश्यक है। कोर्ट ने यह संदेश भी दिया कि कानून में बदलाव के लिए न्यायिक विवेक और संवेदनशीलता दोनों महत्वपूर्ण हैं।

अब क्या होगा?

अब इस मामले में आगे की सुनवाई होगी, और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट को अपनी टिप्पणी पर पुनर्विचार करना पड़ेगा। इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर से महिला अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायिक प्रणाली की भूमिका और उसकी संवेदनशीलता पर सवाल खड़े किए हैं।

यह मामला इस बात का भी संकेत है कि महिला अधिकारों के मामलों में न्यायालयों को अधिक जिम्मेदारी से काम लेना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसी भी तरह की असंवेदनशील टिप्पणी न की जाए, जो समाज में गलत संदेश भेजे।

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