यदि माता-पिता को लगता है कि उनकी संतान उचित व्यवहार नहीं कर रही है या उन्हें परेशान कर रही है, तो वे अपनी स्व-अर्जित संपत्ति से संतान को बेदखल करने के लिए आवेदन कर सकते हैं। कानून के अनुसार, मां-बाप अपनी मेहनत से अर्जित प्रॉपर्टी पर पूरी तरह से अधिकार रखते हैं, और इस अधिकार का उपयोग करते हुए वे अपने नालायक बच्चों को संपत्ति से बेदखल कर सकते हैं।
पैतृक प्रॉपर्टी में संतान का अधिकार
हालांकि, पैतृक संपत्ति पर बच्चों का अधिकार संविधान द्वारा सुरक्षित है। पैतृक संपत्ति वह होती है जो पीढ़ियों से एक परिवार में चली आ रही हो और पिता या दादा द्वारा स्व-अर्जित न हो। माता-पिता अपनी संतान को पैतृक संपत्ति से बाहर नहीं कर सकते हैं। यदि वे ऐसा करते हैं, तो संतान को कोर्ट में जाकर अपने अधिकार के लिए लड़ने का हक होता है।
पैतृक प्रॉपर्टी का विभाजन और हिस्सेदारी
पैतृक प्रॉपर्टी में हर पीढ़ी के साथ बदलाव होता है और जैसे-जैसे परिवार बढ़ता है, हिस्सेदारी घटती जाती है। परिवार के सदस्यों की संतान संख्या के अनुसार यह संपत्ति बंट जाती है, जिससे सभी को समान अधिकार मिलता है। कानून के तहत पैतृक संपत्ति का अधिकार 1956 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत आता है, जो इस संपत्ति से संबंधित विवादों को नियंत्रित करता है।
माता-पिता अपनी कमाई से अर्जित संपत्ति पर संपूर्ण नियंत्रण रखते हैं, लेकिन पैतृक संपत्ति में बच्चों का अधिकार पूरी तरह सुरक्षित है, चाहे माता-पिता उनकी वसीयत से उन्हें बाहर करने का निर्णय क्यों न लें।