
Property Registry Rules के तहत जब आप किसी नई ज़मीन या प्रॉपर्टी की खरीदारी करते हैं, तो उसके बाद रजिस्ट्री कराना अनिवार्य हो जाता है। रजिस्ट्री के दौरान विक्रेता और खरीदार के बीच सम्पत्ति का क़ानूनी ट्रांसफर होता है, जो इ प्रमाण पत्र की तरह कार्य करता है कि अब यह सम्पत्ति विक्रेता से खरीदार के पास जा चुकी है। लेकिन रजिस्ट्री होने के बाद भी आपको संपत्ति का असली मालिकाना हक़ नहीं मिल जाता। इसके लिए एक और महत्वपूर्ण कदम है, जिसे म्युटेशन (Mutations) कहा जाता है। यदि प्रक्रिया नहीं की जाती है, तो आप भविष्य में संपत्ति विवादों का शिकार हो सकते हैं और संपत्ति पर आपका मालिकाना हक़ नहीं बन पाता।
जमीन रजिस्ट्री के बाद म्युटेशन का महत्व
जब भी आप किसी संपत्ति की रजिस्ट्री करते हैं, तो यह केवल एक दस्तावेजी प्रक्रिया होती है, जिसके द्वारा संपत्ति का अधिकार विक्रेता से खरीदार के नाम ट्रांसफर किया जाता है। मगर रजिस्ट्री के बाद म्यूटेशन या दाखिल ख़ारिज की प्रक्रिया जरूरी होती है, जिससे कि भूमि रिकॉर्ड में आपके नाम दर्ज किया जाए। अगर यह प्रक्रिया पूरी नहीं की जाती है, तो पुराना मालिक जमीन या संपत्ति का दावा कर सकता है। इसके अलावा अगर म्यूटेशन नहीं कराया गया, तो संपत्ति पर दूसरे विवाद भी उत्पन्न हो सकते हैं, जैसे कि जमीन का पुनः बिक्री या लोन लिया जाना।
संपत्ति विवादों का कारण
कई बार यह देखने को मिलता है कि एक ही संपत्ति को एक से अधिक बार बेचा जाता है, जिससे विवाद पैदा होते हैं। ऐसा तब होता है जब रजिस्ट्री के बाद खरीदार म्यूटेशन की प्रक्रिया पूरी नहीं करता। परिणामस्वरूप, पुराने मालिक का नाम खतौनी (land record) में बना रहता है, जिससे उसे संपत्ति पर अधिकार बना रहता है। इसके बाद विक्रेता उस संपत्ति को फिर से बेच सकता है, और नए खरीदार को यह नहीं पता चलता कि पहले ही किसी ने उस संपत्ति की रजिस्ट्री करवा दी है। ऐसे में नए खरीदार को अपनी संपत्ति पर मालिकाना हक हासिल करने में समस्या हो सकती है और उन्हें कानूनी विवादों का सामना करना पड़ सकता है।
रजिस्ट्री करवाने के बाद नाम बदलवाने की प्रक्रिया
भारतीय रजिस्ट्रेशन एक्ट के अनुसार, यदि संपत्ति की कीमत ₹100 से अधिक है, तो उसे रजिस्टर्ड करना जरूरी होता है। रजिस्ट्री के बाद, खरीदार को भूमि के रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराना आवश्यक होता है। इसे नामांतरण या म्यूटेशन कहते हैं। इस प्रक्रिया को रजिस्ट्री के दो से तीन महीने के भीतर पूरा कर लेना चाहिए, ताकि भूमि रिकॉर्ड में बदलाव किया जा सके और आपकी संपत्ति पर वैध मालिकाना हक स्थापित किया जा सके। म्यूटेशन के बिना, यदि भविष्य में कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो आप अपने हक को साबित नहीं कर पाएंगे, क्योंकि भूमि रिकॉर्ड में पुराने मालिक का नाम हो सकता है।
फर्जीवाड़े से बचने के उपाय
रजिस्ट्री के बाद म्यूटेशन की प्रक्रिया न कराने के कारण बहुत से लोग फर्जीवाड़े का शिकार हो जाते हैं। यह तब होता है जब विक्रेता, पहले खरीदार से जमीन की रजिस्ट्री करवा कर उसका नाम खतौनी में दर्ज नहीं कराता, और फिर उसी जमीन को एक अन्य खरीदार को बेच देता है। इस दौरान एक या अधिक बार जमीन की रजिस्ट्री हो सकती है, लेकिन यदि म्यूटेशन नहीं किया गया हो तो यह फर्जीवाड़ा संभव हो सकता है। ऐसे में खरीदार को पूरी तरह से कानूनी अधिकार नहीं मिल पाता है। इसलिए, रजिस्ट्री करने के बाद, आपको तुरंत म्यूटेशन की प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए ताकि जमीन पर केवल आपका नाम दर्ज हो और आप किसी भी विवाद से बच सकें।
प्रॉपर्टी खरीदने से पहले क्या करें
जब आप किसी प्रॉपर्टी की खरीदारी करें, तो सबसे पहले उसका गाटा संख्या और खतौनी जरूर चेक करें। गाटा संख्या के माध्यम से आप यह जान सकते हैं कि जिस जमीन या संपत्ति को आप खरीदने जा रहे हैं, वह पहले से किसी अन्य के नाम तो नहीं है। पहले यह जांचें कि क्या वह जमीन पहले किसी और को बेची गई है या नहीं, और क्या उसका नाम खतौनी में दर्ज है। साथ ही, रजिस्ट्री ऑफिस से यह भी सुनिश्चित करें कि उस प्रॉपर्टी पर कोई बकाया कर्जा तो नहीं है।
रजिस्ट्री के बाद म्यूटेशन करवाना क्यों है जरूरी
रजिस्ट्री के बाद म्यूटेशन की प्रक्रिया संपत्ति के सही मालिक के रूप में आपकी पहचान स्थापित करने के लिए जरूरी होती है। जब आप रजिस्ट्री कराते हैं, तो आपको लगता है कि अब आप संपत्ति के मालिक बन गए हैं, लेकिन यह भ्रमपूर्ण हो सकता है। केवल रजिस्ट्री से आपको संपत्ति का वास्तविक मालिकाना हक नहीं मिलता है। इसलिए, रजिस्ट्री के बाद म्यूटेशन का काम तत्काल करना चाहिए। म्यूटेशन की प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही आपके नाम को खतौनी में दर्ज किया जाएगा, और इससे आपको कानूनी रूप से संपत्ति का मालिक माना जाएगा।