
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में निजी सम्पत्ति के अधिग्रहण के मामले में अहम टिप्पणी की है। अदालत का कहना है कि अगर किसी निजी सम्पत्ति का अधिग्रहण करते वक्त नियमों का पालन नहीं किया गया तो इसे असंवैधानिक माना जाएगा। यह टिप्पणी एक मामले की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और अरविंद कुमार की पीठ ने की। कोलकाता नगर निगम की अपील को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह साफ कर दिया कि यदि राज्य सरकार अधिग्रहण के समय कानूनी नियमों का पालन नहीं करती है, तो मुआवजे का भुगतान भी वैध नहीं माना जाएगा। इस फैसले से निजी सम्पत्ति के मालिकों को बड़ी राहत मिल सकती है और यह सरकारी अधिग्रहण प्रक्रिया को पारदर्शी और उत्तरदायी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
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निजी सम्पत्ति के अधिग्रहण की कानूनी प्रक्रिया
भारत में निजी सम्पत्ति के अधिग्रहण से जुड़ी प्रक्रिया और नियमों में समय के साथ कई बदलाव आए हैं। जब भारत का संविधान लागू हुआ, तो इसमें सम्पत्ति के अधिकार को लेकर एक कानून था, जो सरकार को किसी की सम्पत्ति पर बिना कानूनी प्रक्रिया के अधिकार जताने से रोकता था। इसके बाद 44वें संविधान संशोधन (अमेंडमेंट) ने राइट टू प्रॉपर्टी को फंडामेंटल राइट से हटा कर संवैधानिक अधिकार बना दिया और आर्टिकल 301A को इस में जोड़ा गया, जिसमें कहा गया कि सरकार किसी भी प्रॉपर्टी को बिना कानूनी नियमों के अधिग्रहित नहीं कर सकती।
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2013 में यूपीए सरकार ने एक नया कानून पेश किया, जिसमें यह प्रावधान किया गया कि अगर सरकार किसी जमीन को जनहित के लिए अधिग्रहित करती है तो उसे पहले एक नोटिफिकेशन जारी करना होगा और इसके बाद जनसुनवाई भी अनिवार्य की गई है। इस कानून के तहत सरकार को यह बताना जरूरी है कि अधिग्रहण के लिए चुनी गई भूमि जनहित के उद्देश्य से है। इसके साथ ही पुनर्वास की जिम्मेदारी भी सरकार की होती है, और यह प्रक्रिया निर्धारित समय-सीमा में पूरी होनी चाहिए।
निजी सम्पत्ति के मालिक की रजामंदी की महत्व
जब सरकार किसी निजी सम्पत्ति को सार्वजनिक उपयोग के लिए अधिग्रहित करती है, तो इस मामले में संपत्ति के मालिकों की सहमति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अगर भूमि के अधिग्रहण में निजी उद्योग का कोई जुड़ाव नहीं है, तो 70 प्रतिशत संपत्ति मालिकों की रजामंदी जरूरी होती है। वहीं, यदि मामला पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) का है, तो इसमें 80 प्रतिशत संपत्ति मालिकों की सहमति आवश्यक होती है।
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पहले सरकार जब कहती थी कि वह भूमि जनहित के लिए ले रही है, तो मालिकों को मुआवजा मिलता था और वे इस पर कोई आपत्ति नहीं उठा सकते थे। अब स्थिति बदल गई है, और अब एक आधिकारिक नोटिफिकेशन जारी होता है। इसके बाद अधिग्रहण की प्रक्रिया को लेकर जांच होती है और फिर अधिग्रहण किया जाता है।
क्या अधिग्रहण के बाद सरकार जमीन को बेच सकती है?
अगर सरकार ने किसी भूमि को जनहित के लिए अधिग्रहित किया है, तो उसे बेचना या अन्य किसी निजी उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करना कानूनी नहीं है। अगर ऐसा होता है, तो भूमि के मालिक अदालत में चुनौती दे सकते हैं। हालांकि, कई राज्यों में इस प्रकार के मामले सामने आए हैं, जहां भूमि का अधिग्रहण कुछ और उद्देश्य से किया गया था, लेकिन बाद में उसका उपयोग किसी और काम के लिए किया गया। सामान्यत: सरकार अपनी अधिग्रहित भूमि को बेचती नहीं है, बल्कि उसे लीज पर देती है।
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क्या सरकार बिना नियमों के भूमि अधिग्रहित कर सकती है?
भारतीय संविधान और संबंधित कानूनों के तहत, सरकार को बिना कानूनी प्रक्रिया के किसी की भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार नहीं है। अगर सरकार ऐसा करती है, तो यह कानूनी चुनौती का कारण बन सकता है। संविधान के अनुच्छेद 300-A के तहत, सरकार को किसी भी भूमि को जनहित के लिए अधिग्रहित करने से पहले भूमि मालिक को सूचित करना होगा और उसकी आपत्तियों का समाधान करना होगा। साथ ही, सरकार को यह साबित करना होगा कि भूमि का अधिग्रहण जनहित में किया जा रहा है। अधिग्रहण के बाद पुनर्वास और मुआवजे की जिम्मेदारी भी सरकार की होती है।
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सम्पत्ति के अधिकार का संवैधानिक महत्व
भारत के संविधान में सम्पत्ति के अधिकार को लेकर कई महत्वपूर्ण प्रावधान हैं। 44वें संविधान संशोधन ने इसे फंडामेंटल राइट से संवैधानिक अधिकार में बदल दिया, जिससे यह सुनिश्चित किया गया कि सरकार किसी की भूमि को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के अधिग्रहित न कर सके। इसके अलावा, भूमि अधिग्रहण के बाद सरकार के लिए यह अनिवार्य किया गया कि वह भूमि मालिकों को उचित मुआवजा दे और अगर भूमि का गलत इस्तेमाल किया जाता है, तो मालिक कोर्ट में इसका विरोध कर सकते हैं।