वसीयत मिलते ही बदला बेटे का रंग! बुजुर्ग ने की प्रॉपटी वापसी की गुहार, जानें ऐसे मामलों में कानूनी अधिकार

बेटे को गिफ्ट डीड से घर देना पड़ा भारी! बुजुर्ग नटवरलाल अब अदालत में न्याय की तलाश में हैं। क्या उन्हें उनका घर वापस मिलेगा? जानिए इस हाई-प्रोफाइल केस की पूरी कहानी और नया Senior Citizen Act बुजुर्गों को कैसे देगा सुरक्षा

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Written byRohit Kumar

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वसीयत मिलते ही बदला बेटे का रंग! बुजुर्ग ने की प्रॉपटी वापसी की गुहार, जानें ऐसे मामलों में कानूनी अधिकार
वसीयत मिलते ही बदला बेटे का रंग! बुजुर्ग ने की प्रॉपटी वापसी की गुहार, जानें ऐसे मामलों में कानूनी अधिकार

नई दिल्ली: गुजरात के 85 वर्षीय नटवरलाल फिचड़िया इन दिनों अपने ही घर को वापस पाने के लिए अदालत के चक्कर लगा रहे हैं। अहमदाबाद निवासी नटवरलाल ने अपने बेटे को गिफ्ट डीड (Gift Deed) के जरिए घर दिया था, लेकिन कुछ समय बाद ही बेटे और बहू का व्यवहार उनके प्रति बदल गया। अब बेटे की ओर से उन्हें घर से बेदखल करने की कोशिश की जा रही है।

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बेटे को गिफ्ट किया घर, अब पछता रहे बुजुर्ग

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नटवरलाल गुजरात राज्य कृषि विभाग के सेवानिवृत्त कर्मचारी हैं। वे अपने राजकोट स्थित घर के एक कमरे में प्राकृतिक चिकित्सा सेवाएं प्रदान करते हैं। कोविड-19 के दौरान उन्होंने अपने बेटे को अपने घर का 50% हिस्सा गिफ्ट डीड के जरिए दे दिया था। इसके बाद से ही बेटे और बहू का रवैया उनके प्रति बदल गया और उन्होंने पिता से बुरा व्यवहार शुरू कर दिया।

नटवरलाल का कहना है कि बेटे को घर देने का फैसला उनकी जिंदगी की सबसे बड़ी गलती थी। घर मिलने के कुछ समय बाद ही बेटे और बहू ने उनके साथ दुर्व्यवहार करना शुरू कर दिया और उन्हें घर से निकालने की कोशिश करने लगे।

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परिवार में कोई सहारा नहीं

नटवरलाल के चार बच्चे हैं—दो बेटे और दो बेटियां। दोनों बेटे अलग-अलग फ्लैटों में रहते हैं और बेटियों की शादी हो चुकी है। अगस्त 2021 में नटवरलाल ने अपनी पत्नी के साथ मिलकर घर का 50% हिस्सा बेटे को गिफ्ट कर दिया था। उनकी पत्नी के निधन के बाद उनके बाकी तीन बच्चों ने भी मां की संपत्ति का हिस्सा बड़े बेटे को सौंप दिया।

अब जब बेटा घर का पूर्ण मालिक बन चुका है, तो वह पिता को बाहर निकालने का प्रयास कर रहा है। इसके खिलाफ नटवरलाल ने डिप्टी कलेक्टर और कलेक्टर के पास शिकायत दर्ज कराई, लेकिन अधिकारियों ने गिफ्ट डीड को रद्द करने का आदेश नहीं दिया। हालांकि, उन्होंने दोनों बेटों को नटवरलाल को 2,000 रुपये मासिक भरण-पोषण देने का आदेश दिया। बेटे और बहू ने अधिकारियों को आश्वासन दिया कि वे उनकी देखभाल करेंगे, लेकिन नटवरलाल इस फैसले से संतुष्ट नहीं थे।

गुजरात हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया

नटवरलाल ने इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की। उनकी याचिका में कहा गया है कि उन्होंने अपने बेटे को यह घर इस विश्वास के साथ दिया था कि वह बुढ़ापे में उनकी देखभाल करेगा, लेकिन इसके विपरीत, बेटा उन्हें घर से बेदखल करने की कोशिश कर रहा है।

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गुजरात हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति अनिरुद्ध माई ने इस मामले की सुनवाई की और अधिकारियों तथा नटवरलाल के बच्चों को नोटिस जारी किया। अदालत ने 11 अप्रैल तक यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया है।

वरिष्ठ नागरिक कानून क्या कहता है?

भारत में माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 (Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करता है। इसके तहत यदि कोई बुजुर्ग अपनी संपत्ति अपने बच्चों को देता है और बदले में बच्चे उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं, तो गिफ्ट डीड को रद्द किया जा सकता है।

2019 में इस अधिनियम में संशोधन के लिए माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (संशोधन) विधेयक, 2019 पेश किया गया था। इस नए प्रस्तावित कानून में बुजुर्गों के हितों की रक्षा के लिए कई प्रावधान शामिल हैं, जैसे:

  • देशभर के हर जिले में वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा के लिए स्पेशल पुलिस सेल का गठन।
  • हर पुलिस थाने में एक नोडल अधिकारी (ASI रैंक) की नियुक्ति।
  • अकेले रहने वाले बुजुर्गों की सूची तैयार करना और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना।
  • बुजुर्गों की मदद के लिए 24×7 हेल्पलाइन की सुविधा।
  • भरण-पोषण की राशि तय करने के लिए बच्चों की आर्थिक स्थिति का मूल्यांकन।
  • शिकायतों को 90 दिनों के भीतर सुलझाने का प्रावधान।

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क्या नटवरलाल को मिलेगा इंसाफ?

नटवरलाल की लड़ाई न्यायिक प्रक्रिया में है, लेकिन मौजूदा कानून और हालिया अदालती फैसले उनके पक्ष में जा सकते हैं। जनवरी 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे ही मामले में फैसला सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 के तहत गठित न्यायाधिकरण संपत्ति के हस्तांतरण और बेदखली का आदेश दे सकते हैं।

अगर हाई कोर्ट में नटवरलाल की याचिका मंजूर होती है, तो संभव है कि गिफ्ट डीड को रद्द कर दिया जाए और उन्हें उनका घर वापस मिल जाए। यह मामला समाज के लिए एक बड़ा संदेश है कि बुजुर्गों की देखभाल केवल नैतिक जिम्मेदारी ही नहीं, बल्कि कानूनी बाध्यता भी है।

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