क्या सरकार जबरन ले सकती है आपकी प्राइवेट प्रॉपर्टी? सुप्रीम कोर्ट में गरमाई बहस, जानें फैसला!

सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्तियों के संबंध में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है, जिसमें कहा गया है कि सरकार लोक कल्याण के लिए संपत्तियों पर अधिकार जता सकती है। संविधान के अनुच्छेद 39बी के तहत संपत्ति का उपयोग समाज के व्यापक हित में किया जा सकता है। यह मामला महाराष्ट्र सरकार के MHADA अधिनियम से जुड़ा है और इस पर अभी अंतिम फैसला आना बाकी है।

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Written byRohit Kumar

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क्या सरकार जबरन ले सकती है आपकी प्राइवेट प्रॉपर्टी? सुप्रीम कोर्ट में गरमाई बहस, जानें फैसला!
प्राइवेट प्रॉपर्टी

देश में निजी संपत्ति और उसके स्वामित्व को लेकर चल रही बहस के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में नौ जजों की संवैधानिक बेंच ने कहा कि यह कहना खतरनाक होगा कि किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति पर किसी संगठन या सरकार का कोई अधिकार नहीं है। इसी तरह, यह भी कहना खतरनाक होगा कि लोक कल्याण के लिए सरकार इसे अपने अधिकार में नहीं ले सकती। न्यायालय ने जोर देते हुए कहा कि संविधान का उद्देश्य सामाजिक बदलाव लाना है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

संविधान के अनुच्छेद 39बी और 31सी की व्याख्या

इस मामले की सुनवाई के दौरान, मुंबई प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (POA) समेत कई याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि संविधान के अनुच्छेद 39बी और 31सी की आड़ में सरकार निजी संपत्ति पर कब्जा नहीं कर सकती। सुप्रीम कोर्ट इस महत्वपूर्ण पहलू पर विचार कर रहा है कि निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39बी के तहत सामुदायिक संसाधन माना जा सकता है या नहीं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह मानना गलत होगा कि समुदाय के भौतिक संसाधन केवल सार्वजनिक संपत्तियों तक सीमित हैं और इसमें निजी संपत्ति शामिल नहीं हो सकती।

संपत्ति के अधिकार और समाजवादी अवधारणा

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न्यायालय ने संपत्ति के समाजवादी दृष्टिकोण पर विचार करते हुए कहा कि समाजवादी अवधारणा किसी भी संपत्ति को पूरी तरह निजी नहीं मानती, बल्कि इसे समाज के व्यापक हित में उपयोग करने की वकालत करती है। हालांकि, भारतीय समाज में संपत्ति को पीढ़ी दर पीढ़ी सुरक्षित रखने की परंपरा रही है, लेकिन इस संपत्ति का उपयोग समुदाय के विकास के लिए भी किया जाना चाहिए। इसी सोच के आधार पर अनुच्छेद 39बी संविधान में शामिल किया गया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सामाजिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण सार्वजनिक हित में रहे।

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महाराष्ट्र सरकार का 1976 का कानून और विवाद

यह विवाद महाराष्ट्र सरकार द्वारा 1976 में पारित महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (MHADA) अधिनियम से जुड़ा है। इस अधिनियम के तहत सरकार को किसी भी पुरानी या जर्जर इमारत को अपने अधिकार में लेने का अधिकार दिया गया है। इस कानून को चुनौती देते हुए 1992 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी और तब से यह मामला विचाराधीन है। कोर्ट ने इस अधिनियम की वैधता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि यह मामला अलग से तय किया जाएगा, लेकिन मुख्य सवाल यह है कि क्या कोई निजी संपत्ति भी संविधान के अनुच्छेद 39बी के दायरे में आ सकती है?

सुप्रीम कोर्ट का रुख

न्यायालय ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 39बी के तहत सरकार के नीति-निर्माण के अधिकार को सीमित नहीं किया जा सकता। संपत्ति का सामुदायिक उपयोग सुनिश्चित करना सरकार का कर्तव्य है और इसके लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि 1950 के दशक में संविधान निर्माताओं का मुख्य उद्देश्य समाज में आर्थिक और सामाजिक बदलाव लाना था, इसलिए संपत्ति के अधिकारों को पूरी तरह निजी मान लेना उचित नहीं होगा।

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