
नई दिल्ली, 19 मई 2025: ‘One Rank, One Pension’ (वन रैंक, वन पेंशन) सिद्धांत को अब न्यायपालिका में भी लागू कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में यह आदेश पारित किया है कि सभी रिटायर्ड हाईकोर्ट जजों को अब समान पेंशन और सेवानिवृत्ति लाभ मिलेंगे, चाहे उनकी नियुक्ति का स्रोत, कार्यकाल या सेवा अवधि कुछ भी रही हो। यह फैसला भारतीय न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और गरिमा को बनाए रखने की दिशा में एक मील का पत्थर माना जा रहा है।
सभी रिटायर्ड हाईकोर्ट जजों को मिलेगा ₹13.5 लाख वार्षिक पेंशन लाभ
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया है कि अब सभी रिटायर्ड हाईकोर्ट जजों को ₹13.5 लाख प्रति वर्ष की पेंशन मिलेगी। वहीं, जो जज मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं, उन्हें ₹15 लाख प्रति वर्ष की पेंशन दी जाएगी। यह फैसला सभी प्रकार की नियुक्तियों को कवर करेगा — स्थायी, अस्थायी या अतिरिक्त जज।
इस निर्णय के तहत वे जज भी पेंशन के समान लाभ के पात्र होंगे जो अतिरिक्त जज के रूप में सेवा करके रिटायर हुए थे। यह पेंशन संरचना जजों की नियुक्ति तिथि या उनकी कुल सेवा अवधि को नजरअंदाज करके दी जाएगी, जो कि अब तक पेंशन निर्धारण का प्रमुख आधार हुआ करता था।
सेवा में अंतराल होने पर भी नहीं कटेगा पेंशन लाभ
एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू यह है कि वे जज जिन्होंने पहले जिला न्यायपालिका में सेवा की और बाद में हाईकोर्ट में नियुक्त हुए, उन्हें भी पूरी पेंशन मिलेगी। यहां तक कि यदि उनकी सेवा के बीच में कोई अंतराल रहा हो, तब भी उनकी पेंशन पर इसका कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। यह प्रावधान न्यायाधीशों के पूरे करियर को समग्र रूप से मूल्यांकित करते हुए न्यायिक सेवाओं का सम्मान करता है।
NPS के तहत आए जजों को मिलेगा ब्याज सहित योगदान वापसी
इस फैसले के अंतर्गत उन जजों का भी ध्यान रखा गया है जो नई पेंशन योजना-NPS (New Pension Scheme) के तहत सेवा में आए थे। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है कि राज्य सरकारें उनके द्वारा एनपीएस में किए गए अंशदान को ब्याज सहित वापस करेंगी। इससे यह सुनिश्चित होगा कि कोई भी जज वित्तीय नुकसान में न रहे, चाहे वह पुरानी पेंशन स्कीम के तहत आया हो या नई स्कीम के तहत।
सेवा के दौरान निधन होने पर भी परिवारों को मिलेगा पूरा लाभ
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया है कि यदि कोई हाईकोर्ट जज सेवा के दौरान निधन हो जाए, तो उनके परिवार को भी पेंशन और ग्रेच्युटी का पूरा लाभ मिलेगा। यह लाभ उस स्थिति में भी मिलेगा जब जज की सेवा न्यूनतम निर्धारित अवधि तक नहीं पहुंची हो। यह आदेश जजों के परिवारों को न्याय और सुरक्षा का भरोसा देता है।
संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता की पुष्टि
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस फैसले को संविधान के अनुच्छेद 14 — जो समानता के अधिकार की गारंटी देता है — के अनुरूप ठहराया। उन्होंने स्पष्ट किया कि जब सेवा में रहते हुए सभी हाईकोर्ट जजों को समान वेतन और सुविधाएं दी जाती हैं, तो सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें भिन्न-भिन्न मानकों पर पेंशन देना अन्यायपूर्ण है। यह भेदभाव न्यायपालिका की गरिमा और स्वतंत्रता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।
न्यायपालिका में ‘One Rank, One Pension’ सिद्धांत का विस्तार
अब तक ‘One Rank, One Pension‘ सिद्धांत मुख्यतः सशस्त्र बलों (Armed Forces) में लागू किया गया था, जहां एक ही रैंक पर सेवानिवृत्त हुए सैनिकों को समान पेंशन दी जाती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद यह सिद्धांत न्यायपालिका में भी प्रभावी रूप से लागू कर दिया गया है। इससे न्यायिक सेवा में निष्पक्षता और समानता को और अधिक मजबूती मिलेगी।
न्यायिक स्वतंत्रता और सामाजिक सम्मान की दिशा में कदम
यह फैसला न केवल एक वित्तीय सुधार है, बल्कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता, गरिमा और निष्पक्षता को मजबूत करने की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। यह सुनिश्चित करता है कि सेवानिवृत्त जजों को उनके सेवाकाल के बाद भी समान स्तर की गरिमा और वित्तीय स्थिरता मिलती रहे। इससे नई पीढ़ी के न्यायाधीशों को भी यह संदेश जाएगा कि न्यायिक सेवा में कोई वर्ग भेद नहीं होगा।