
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सरकार ने वीजा प्राप्ति के नियमों को और सख्त कर दिया है। इससे उन लोगों पर सीधा असर पड़ेगा जो अमेरिका में उच्च शिक्षा प्राप्त करने, काम करने या अन्य कारणों से यात्रा करना चाहते हैं। ट्रंप प्रशासन ने विशेषकर H-1B वीजा और अन्य कार्य वीजा के नियमों को कड़ा करने की घोषणा की है। यह कदम अमेरिका में विदेशी श्रमिकों की संख्या को कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है। इससे खासतौर पर भारतीय पेशेवरों और छात्रों पर गहरा असर पड़ेगा, जिनका मुख्य वीजा इस श्रेणी में आता है।
यह भी देखें: Airtel का सबसे सस्ता 5G प्लान! सिर्फ ₹379 में पाएं सुपरफास्ट इंटरनेट, कॉलिंग, SMS और OTT का फुल मजा
ट्रंप सरकार की नई नीति
अमेरिका में काम करने वाले विदेशी श्रमिकों के लिए अब वीजा प्राप्त करना पहले से कहीं अधिक कठिन हो सकता है। ट्रंप प्रशासन ने H-1B वीजा के लिए आवेदन प्रक्रिया में कठोर बदलाव किए हैं। इसके तहत केवल उन श्रेणियों के लिए वीजा दिया जाएगा, जो उच्चतम कौशल वाले कार्यों में लगे होंगे। इसके अतिरिक्त, अब केवल वही वीजा आवेदन स्वीकार किए जाएंगे, जिनमें उम्मीदवार के कार्यस्थल पर एक निश्चित न्यूनतम वेतन का प्रावधान होगा। इससे उच्च वेतन वाले पेशेवरों को लाभ मिलेगा, जबकि सामान्य श्रेणी के कार्यों के लिए वीजा पाना कठिन हो जाएगा।
H-1B वीजा पर अब पहले से अधिक ध्यान केंद्रित किया जाएगा। ट्रंप प्रशासन का मानना है कि अमेरिका में विदेशी श्रमिकों की बढ़ती संख्या अमेरिकी कामकाजी नागरिकों के लिए नौकरियों की कमी का कारण बन रही है। इसके अलावा, प्रशासन ने यह भी घोषणा की है कि वीजा आवेदन की प्रक्रिया में पारदर्शिता और कठोरता बढ़ाई जाएगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल योग्य उम्मीदवारों को ही वीजा प्राप्त हो।
भारत के लिए संभावित प्रभाव
भारत के लिए यह नियम और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं क्योंकि भारत से हर साल हजारों छात्र और पेशेवर H-1B वीजा के तहत अमेरिका जाते हैं। ट्रंप प्रशासन के नए नियमों के तहत, विशेषकर भारतीय आईटी पेशेवरों और इंजीनियरों को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। भारत में अधिकांश वीजा आवेदक अमेरिकी कंपनियों में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, इंजीनियरिंग, चिकित्सा और अन्य उच्च तकनीकी क्षेत्रों में काम करते हैं। नए नियमों के कारण उन्हें वीजा प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है, खासकर यदि उनके काम के लिए न्यूनतम वेतन सीमा निर्धारित की जाती है।
यह भी देखें: 108MP कैमरा, दमदार फीचर्स! 15 से 20 हजार की रेंज में Samsung और OnePlus के टॉप स्मार्टफोन
इसके अलावा, भारतीय छात्रों के लिए F-1 छात्र वीजा पर भी असर पड़ सकता है। भारत से अमेरिका जाने वाले छात्र अब पहले से कहीं अधिक चयनात्मक प्रक्रिया का सामना करेंगे, जिससे उन्हें अमेरिका में अध्ययन करने का मौका कम हो सकता है। अमेरिकी विश्वविद्यालयों में अध्ययन करने के लिए एक स्थिर वीजा प्राप्त करने के लिए छात्रों को नए मानकों को पूरा करना होगा।
अन्य प्रभावित श्रेणियाँ
अमेरिका में काम करने वाले अन्य श्रेणियाँ भी प्रभावित हो सकती हैं, जिनमें L-1 वीजा, O-1 वीजा, और B-1/B-2 वीजा शामिल हैं। L-1 वीजा के तहत, कंपनियाँ अपने कर्मचारियों को अंतरराष्ट्रीय स्थानांतरण के लिए अमेरिका भेजती हैं। ट्रंप प्रशासन ने इस वीजा की प्रक्रिया को भी कड़ा कर दिया है, जिससे केवल उन कर्मचारियों को वीजा मिलेगा, जिनके पास विशिष्ट कौशल और अमेरिकी कंपनियों के साथ एक मजबूत संबंध होगा। इसके परिणामस्वरूप, कई कंपनियाँ अपनी अंतरराष्ट्रीय संचालन रणनीतियों को फिर से तय कर सकती हैं।
O-1 वीजा उन पेशेवरों के लिए है जिनके पास कला, विज्ञान, शिक्षा, व्यवसाय, या खेल के क्षेत्र में अत्यधिक विशिष्ट क्षमता है। ट्रंप प्रशासन के नियमों के तहत इस वीजा के लिए पात्रता के मानकों को और कठोर किया गया है, जिससे केवल सर्वोत्तम और सबसे योग्य पेशेवरों को ही वीजा मिल पाएगा।
यह भी देखें: Motorola का सस्ता फोल्डेबल फोन लॉन्च! कीमत ₹50,000 से कम, जानें पहली सेल की तारीख
आर्थिक प्रभाव
इस नए नीति के कारण अमेरिका में विदेशी श्रमिकों की संख्या में कमी आ सकती है, लेकिन इसका असर अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। कई अमेरिकी कंपनियाँ विदेशी श्रमिकों पर निर्भर हैं, खासकर तकनीकी और चिकित्सा क्षेत्रों में। यदि इन श्रमिकों की संख्या में कमी आती है, तो अमेरिकी कंपनियों को अपने संचालन में कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है। इससे कंपनियों को अपनी उत्पादन क्षमता और सेवा गुणवत्ता बनाए रखने में परेशानी हो सकती है।
क्यों किया गया यह कदम?
ट्रंप सरकार का मुख्य उद्देश्य अमेरिकी नागरिकों को रोजगार के अधिक अवसर प्रदान करना है। उनका मानना है कि विदेशी श्रमिकों की बढ़ती संख्या अमेरिकी श्रमिकों के लिए नौकरियों की कमी का कारण बन रही है। इसके साथ ही, वे चाहते हैं कि अमेरिका में केवल वही लोग काम करें जिनके पास विशिष्ट और उच्चतम स्तर का कौशल हो। इसका उद्देश्य अमेरिकी कार्यबल को अधिक प्रतिस्पर्धी और कुशल बनाना है।