
WhatsApp ने हाल ही में एक लंबे समय से चल रहे कानूनी मुकदमे में बड़ी जीत हासिल की है, जिसमें पेगासस स्पाइवेयर (Pegasus Spyware) से संबंधित जासूसी मामले को लेकर अदालत ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया है। इस मामले में WhatsApp को करीब 1400 करोड़ रुपये (लगभग 170 मिलियन डॉलर) का हर्जाना मिला है। यह मामला 2019 में सामने आए उस विवाद से जुड़ा है जिसमें भारत समेत कई देशों में पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और सरकारी अधिकारियों की जासूसी किए जाने के आरोप लगे थे।
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WhatsApp और Meta की इस कानूनी जीत ने यह साफ कर दिया है कि किसी भी टेक कंपनी के सुरक्षा ढांचे को भेदने की कोशिशें कानून की नजरों में अपराध हैं। पेगासस जैसे स्पाइवेयर का दुरुपयोग गंभीर परिणाम ला सकता है, और यह केस तकनीकी क्षेत्र में निजता और सुरक्षा की रक्षा के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।
क्या है Pegasus Spyware विवाद?
पेगासस एक खतरनाक स्पाइवेयर है जिसे इजरायली साइबर इंटेलिजेंस कंपनी NSO Group द्वारा विकसित किया गया है। इस स्पाइवेयर के जरिए किसी भी मोबाइल फोन में बिना जानकारी के घुसपैठ की जा सकती है और फोन के कैमरा, माइक्रोफोन, कॉल लॉग्स, मैसेज, और लोकेशन समेत तमाम निजी जानकारियों तक पहुंच बनाई जा सकती है। साल 2019 में WhatsApp ने आरोप लगाया था कि NSO ग्रुप ने पेगासस का इस्तेमाल करते हुए करीब 1400 यूजर्स के डिवाइस हैक किए थे।
कैसे शुरू हुआ मुकदमा?
अक्टूबर 2019 में WhatsApp ने अमेरिका के San Francisco Federal Court में NSO Group के खिलाफ मुकदमा दायर किया। कंपनी ने आरोप लगाया कि NSO ग्रुप ने उसके सर्वर का दुरुपयोग कर यूजर्स के फोन में पेगासस स्पाइवेयर इंस्टॉल किया, जिससे न केवल उनकी निजता का उल्लंघन हुआ बल्कि WhatsApp के सुरक्षा सिस्टम की भी छवि धूमिल हुई। इस मुकदमे में WhatsApp का साथ Facebook (अब Meta) ने भी दिया, क्योंकि यह उसकी स्वामित्व वाली कंपनी है।
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कोर्ट का फैसला और हर्जाना
छह साल तक चली इस कानूनी लड़ाई के बाद अब अदालत ने WhatsApp के पक्ष में फैसला सुनाते हुए NSO Group को 170 मिलियन डॉलर यानी करीब 1400 करोड़ रुपये हर्जाने के तौर पर देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने माना कि NSO ग्रुप ने WhatsApp की सुरक्षा प्रणाली को भेदते हुए अवैध तरीके से यूजर्स की जासूसी की और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया।
NSO Group की सफाई
NSO Group ने कोर्ट के इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि उसकी तकनीक का इस्तेमाल केवल सरकारी एजेंसियां करती हैं और उसका उद्देश्य गंभीर अपराधों और आतंकवाद को रोकने में मदद करना है। कंपनी का दावा है कि उसने किसी की भी निजी जासूसी नहीं की और न ही उसने किसी व्यक्तिगत यूजर को निशाना बनाया है।
भारत में मामला क्यों हुआ था विवादित?
2019 में जब यह मामला सामने आया था, तब भारत में भी कई पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और वकीलों के फोन हैक किए जाने की बात सामने आई थी। WhatsApp ने खुलासा किया था कि भारतीय नागरिक भी पेगासस के निशाने पर थे। इसके बाद भारत सरकार से सवाल किए गए कि क्या उसने NSO Group की सेवाएं ली थीं, लेकिन इस पर कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं आई।
क्या वॉट्सऐप की सुरक्षा पर सवाल उठे?
इस पूरे विवाद के दौरान WhatsApp की end-to-end encryption प्रणाली को लेकर भी कई सवाल उठे थे। हालांकि कंपनी ने यह स्पष्ट किया कि पेगासस का हमला उनके प्लेटफॉर्म पर नहीं बल्कि मोबाइल डिवाइस के ऑपरेटिंग सिस्टम के जरिए हुआ था। इसके बावजूद WhatsApp ने अपनी सुरक्षा प्रणाली को और सशक्त करने के लिए अतिरिक्त कदम उठाए हैं।
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मुकदमे के असर और भविष्य की रणनीति
इस केस में मिली कानूनी जीत ने WhatsApp और अन्य टेक कंपनियों के लिए एक मजबूत उदाहरण पेश किया है कि साइबर सुरक्षा और यूजर्स की निजता के मामले में वे कितनी गंभीर हैं। यह मुकदमा तकनीकी कंपनियों और स्पाइवेयर डेवलपर्स के बीच जिम्मेदारी और जवाबदेही तय करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।