IMF आखिर कहां से लाता है लोन देने के लिए पैसा? जानिए किन शर्तों पर मिलता है करोड़ों का कर्ज

जब कोई देश कर्ज में डूबता है, IMF उसकी आखिरी उम्मीद बनता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि IMF खुद अरबों डॉलर कहां से लाता है? किन शर्तों पर देता है इतना बड़ा लोन और क्या इसके पीछे कोई गुप्त एजेंडा है? पढ़िए इस रिपोर्ट में पूरी कहानी, जो आपके सोचने का नजरिया बदल देगी

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Written byRohit Kumar

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IMF आखिर कहां से लाता है लोन देने के लिए पैसा? जानिए किन शर्तों पर मिलता है करोड़ों का कर्ज
IMF आखिर कहां से लाता है लोन देने के लिए पैसा? जानिए किन शर्तों पर मिलता है करोड़ों का कर्ज

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी International Monetary Fund (IMF) दुनिया के उन संस्थानों में से एक है जो ज़रूरतमंद देशों को आर्थिक संकट से उबारने के लिए लोन (Loan) देता है। लेकिन अक्सर लोगों के मन में यह सवाल उठता है कि आखिर IMF इतना पैसा कहां से लाता है? किन शर्तों पर यह संस्था अरबों डॉलर का कर्ज देती है? और इसके पीछे की प्रक्रिया क्या है? इस लेख में हम इन्हीं सभी पहलुओं को विस्तार से समझने की कोशिश करेंगे।

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IMF के फंडिंग का स्रोत क्या है?

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IMF किसी भी सामान्य बैंक की तरह नहीं है जो खुद पैसा छापे या निजी निवेश से संचालित हो। इसके पास जो पैसा होता है, वह इसके सदस्य देशों के योगदान यानी “कोटा सब्सक्रिप्शन” (Quota Subscriptions) से आता है। IMF के 190 सदस्य देश हैं और हर देश अपनी आर्थिक हैसियत के हिसाब से IMF में योगदान करता है। यही योगदान तय करता है कि कोई देश IMF से कितना लोन ले सकता है और उसकी संस्था में कितनी मतदान शक्ति (Voting Power) होगी।

हर देश को एक निश्चित “कोटा” दिया जाता है, जो उसकी अर्थव्यवस्था के आकार, जीडीपी, विदेशी मुद्रा भंडार और व्यापार स्थिति के आधार पर तय होता है। उदाहरण के लिए, अमेरिका IMF का सबसे बड़ा शेयरधारक है और उसका कोटा सबसे ज्यादा है। भारत का भी इसमें महत्वपूर्ण योगदान है।

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IMF किस तरह देता है लोन?

IMF अपने सदस्य देशों को अलग-अलग कार्यक्रमों और योजनाओं के तहत लोन देता है। आमतौर पर जब कोई देश विदेशी मुद्रा संकट, भुगतान संतुलन (Balance of Payments) की समस्या या आर्थिक मंदी से जूझ रहा होता है, तब वह IMF से मदद मांगता है। IMF उस देश की आर्थिक स्थिति की गहन समीक्षा करता है और फिर एक आर्थिक सुधार कार्यक्रम (Reform Program) तय किया जाता है। इसके आधार पर उस देश को चरणबद्ध तरीके से कर्ज दिया जाता है।

ये कर्ज दीर्घकालिक और अल्पकालिक दोनों हो सकते हैं। इनमें कुछ लोकप्रिय कार्यक्रम हैं – स्टैंडबाय अरेंजमेंट (Stand-By Arrangement), एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (Extended Fund Facility) और रैपिड फाइनेंसिंग इंस्ट्रूमेंट (Rapid Financing Instrument)।

किन शर्तों पर मिलता है IMF से कर्ज?

IMF से कर्ज लेना आसान नहीं होता। इसके लिए देश को कई आर्थिक सुधार करने होते हैं। IMF यह सुनिश्चित करता है कि लोन का पैसा सही दिशा में इस्तेमाल हो और देश की अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक स्थायित्व मिले। इसके लिए वह कुछ अहम शर्तें रखता है:

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  1. सब्सिडी में कटौती: अक्सर IMF की मांग होती है कि सरकार ऊर्जा, खाद्य और कृषि जैसे क्षेत्रों में दी जाने वाली सब्सिडी को कम करे।
  2. कर सुधार: टैक्स कलेक्शन को बढ़ाने के लिए नए टैक्स लागू करना या मौजूदा ढांचे में सुधार करना।
  3. विनिवेश और निजीकरण: सरकारी कंपनियों को बेचने या उनका निजीकरण करने का सुझाव।
  4. मुद्रा अवमूल्यन (Currency Devaluation): देश की मुद्रा का मूल्य घटाने की सलाह ताकि निर्यात को बढ़ावा मिले।
  5. ब्याज दरों में बदलाव: महंगाई पर नियंत्रण के लिए ब्याज दरों में परिवर्तन करना।

इन शर्तों का उद्देश्य होता है कि देश अपनी वित्तीय स्थिति को बेहतर करे और भविष्य में किसी संकट की स्थिति से बचे।

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IMF का कर्ज और उसकी आलोचना

हालांकि IMF आर्थिक संकट से जूझ रहे देशों के लिए एक जीवन रेखा बनकर उभरा है, लेकिन इसकी नीतियों की कई बार आलोचना भी हुई है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि IMF की शर्तें इतनी कठोर होती हैं कि वे आम जनता पर बोझ डालती हैं। सब्सिडी में कटौती, टैक्स में बढ़ोतरी और निजीकरण जैसे कदम आम नागरिकों के लिए महंगे साबित होते हैं। इसके अलावा, कई बार कर्ज की रकम देश की वास्तविक जरूरतों को पूरा नहीं कर पाती।

IMF और भारत

भारत IMF का एक महत्वपूर्ण सदस्य है। अब तक भारत ने IMF से कई बार कर्ज लिया है, खासकर 1991 के आर्थिक संकट के समय जब भारत के पास सिर्फ कुछ हफ्तों के आयात लायक विदेशी मुद्रा बची थी। तब IMF की मदद से भारत ने आर्थिक उदारीकरण की दिशा में बड़े कदम उठाए, जो आज की भारतीय अर्थव्यवस्था की नींव बने।

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IMF का भविष्य और बदलता दृष्टिकोण

आज की वैश्विक अर्थव्यवस्था में IMF की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है, खासकर जब कई देश जलवायु परिवर्तन, महामारी और युद्ध जैसी आपदाओं से जूझ रहे हैं। IMF अब पारंपरिक कर्ज के अलावा नए मुद्दों पर भी ध्यान दे रहा है जैसे Climate Financing, Renewable Energy में निवेश और डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना।

IMF अब अधिक लचीला और मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश कर रहा है, ताकि उसकी मदद से आर्थिक सुधार जनहित के साथ संतुलित रह सके।

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