
बलूचिस्तान में मानवाधिकार उल्लंघनों के खिलाफ आवाज उठाने वाली सामाजिक कार्यकर्ता महरंग बलोच (Mehrang Baloch) का नाम आज पूरे पाकिस्तान में चर्चा का विषय बना हुआ है। पाकिस्तान सरकार और सेना के खिलाफ अपने मुखर रुख के चलते वह सुर्खियों में हैं। हाल ही में उनके नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) के लिए नामांकन की खबर सामने आने के बाद उनकी लोकप्रियता और बढ़ गई है। महरंग बलोच लंबे समय से बलूच लोगों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं और पाकिस्तान सरकार पर जबरन अपहरण, हत्या और दमनकारी नीतियों के गंभीर आरोप लगाती रही हैं।
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महरंग बलोच कौन हैं?
महरंग बलोच एक सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं, जो बलूचिस्तान में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। वह बलूच लोगों के जबरन अपहरण, गुमशुदगी, और बलूचिस्तान में सेना की दमनकारी नीतियों पर पाकिस्तान सरकार को कठघरे में खड़ा करती रही हैं। महरंग बलोच के नेतृत्व में कई विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं, जिनमें उन्होंने पाकिस्तान की सरकार और सेना द्वारा किए जा रहे दमन के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप की मांग की है।
पाकिस्तान सरकार और सेना से सीधी टकराव
महरंग बलोच पाकिस्तान सरकार और सेना पर गंभीर आरोप लगाती रही हैं। उनका कहना है कि बलूचिस्तान में हजारों लोगों को जबरन अगवा कर लिया गया है, जिनका अब तक कोई सुराग नहीं है। वह इसे बलूच लोगों के खिलाफ एक संगठित नरसंहार करार देती हैं। उन्होंने बलूचिस्तान के मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है, जिससे पाकिस्तान सरकार की मुश्किलें बढ़ गई हैं।
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नोबेल शांति पुरस्कार नामांकन की खबर कैसे आई सामने?
हाल ही में महरंग बलोच के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन की खबर सामने आई, जिससे पाकिस्तान सरकार में हलचल मच गई। हालांकि, अभी तक आधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन महरंग बलोच के समर्थकों और मानवाधिकार संगठनों का मानना है कि उनका नामांकन वैश्विक स्तर पर बलूचिस्तान के मुद्दे को उजागर करने में मदद करेगा।
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बलूचिस्तान में हिंसा और दमन की घटनाएं
बलूचिस्तान में हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाएं कोई नई नहीं हैं। पाकिस्तान सरकार पर लगातार आरोप लगते रहे हैं कि वह बलूच लोगों के विरोध को दबाने के लिए कड़े कदम उठा रही है। हाल ही में बलूचिस्तान में 41 लोगों की मौत के बाद वहां के हालात और बिगड़ गए हैं। पाकिस्तान सरकार और सेना पर आरोप है कि वे विरोधियों को दबाने के लिए क्रूर रणनीति अपना रही हैं।
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1971 वाला डर फिर हुआ ताजा
महरंग बलोच की बढ़ती लोकप्रियता और बलूचिस्तान में हिंसा के बढ़ते मामलों ने पाकिस्तान को 1971 के बांग्लादेश स्वतंत्रता संग्राम की याद दिला दी है। उस समय भी पाकिस्तान सरकार ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में दमनकारी नीतियां अपनाई थीं, जिसके परिणामस्वरूप देश का विभाजन हुआ था। बलूचिस्तान में हो रहे विरोध प्रदर्शनों को देखते हुए कई विशेषज्ञों का मानना है कि यदि हालात नहीं बदले तो पाकिस्तान के लिए यह बड़ा संकट बन सकता है।
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क्या बलूचिस्तान को अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिल सकता है?
महरंग बलोच की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती पहचान और उनके नोबेल शांति पुरस्कार के लिए संभावित नामांकन से बलूचिस्तान के मुद्दे को और बल मिलेगा। कई मानवाधिकार संगठन और कार्यकर्ता उनके समर्थन में आगे आ रहे हैं। यदि अंतरराष्ट्रीय समुदाय बलूचिस्तान के मुद्दे पर ध्यान देता है, तो यह पाकिस्तान के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।