मुगल भी कांप उठते थे इसे देखकर! महिलाओं का ये रहस्यमयी गहना जिसे पहनने से कोई नहीं आता था पास

क्या आप जानते हैं कि राजस्थान की महिलाएं एक खास ताबीज पहनती थीं, जिसे देखकर मुग़ल तक डर जाते थे? जानिए ढोलना ताबीज का राज, इसका इतिहास और क्यों आज भी कई परिवार इस परंपरा को निभा रहे हैं

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Written byRohit Kumar

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मुगल भी कांप उठते थे इसे देखकर! महिलाओं का ये रहस्यमयी गहना जिसे पहनने से कोई नहीं आता था पास
मुगल भी कांप उठते थे इसे देखकर! महिलाओं का ये रहस्यमयी गहना जिसे पहनने से कोई नहीं आता था पास

राजस्थान में मुग़लों के समय से चली आ रही परंपराओं में से एक घूंघट की प्रथा रही है, जिसे महिलाओं को बाहरी खतरों से बचाने के लिए अपनाया गया था। यह प्रथा आज भी राजस्थान की सांस्कृतिक पहचान का अहम हिस्सा बनी हुई है। इसके अलावा, एक और महत्वपूर्ण उपाय जिसे महिलाओं की सुरक्षा के लिए अपनाया जाता था, वह था ढोलना ताबीज। कहा जाता है कि यह ताबीज मुग़ल आक्रमणकारियों से महिलाओं की रक्षा करने में सहायक होता था।

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राजस्थान में घूंघट प्रथा और ढोलना ताबीज जैसी परंपराएं सदियों से चली आ रही हैं। यह न केवल सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं, बल्कि ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से भी इनका विशेष महत्व है। आधुनिकता के बावजूद, यह परंपरा आज भी कई परिवारों में देखी जाती है। ढोलना ताबीज का मुख्य उद्देश्य सुरक्षा प्रदान करना और विवाहिता महिलाओं की पहचान को दर्शाना रहा है। यह राजस्थान की संस्कृति का एक अनूठा हिस्सा बना हुआ है।

ढोलना ताबीज की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता

ढोलना ताबीज एक विशेष प्रकार का ताबीज होता था, जिसमें सूअर के बाल भरे होते थे। इस्लाम में सूअर को नापाक माना जाता है, जिसके चलते मुग़ल आक्रमणकारी इसे छूने से भी कतराते थे। यही कारण था कि इस ताबीज को पहनने वाली महिलाएं सुरक्षित मानी जाती थीं। इस ताबीज का उपयोग विवाह के समय किया जाता था, जिससे यह विवाहिता महिलाओं की पहचान का भी प्रतीक बन गया।

ढोलना की विशेषताएं और उपयोग

ढोलना ताबीज को मुख्य रूप से विवाह के समय पहना जाता था। इसे लाल धागे में बांधकर गले में पहना जाता था और इसे दुल्हन को दूल्हे का बड़ा भाई या जेठ प्रदान करता था। यह न केवल सुरक्षा का प्रतीक था, बल्कि इसे राजस्थानी विवाह परंपरा का अभिन्न हिस्सा (integral part of Rajasthani weddings) भी माना जाता था। विवाह के अलावा इसे अन्य मांगलिक अवसरों में भी पहना जाता था।

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ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व

ढोलना ताबीज का उल्लेख प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है। आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा लिखित ‘सौंदर्य लहरी’ में भी ढोलना और मंगलसूत्र के महत्व को दर्शाया गया है। इससे यह स्पष्ट होता है कि ये गहने न केवल सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से भी इनका खास महत्व रहा है।

राजस्थान में आज भी प्रचलित ढोलना की परंपरा

समय बदलने के बावजूद राजस्थान में आज भी कई परिवारों में यह परंपरा जीवित है। ग्रामीण इलाकों में विवाह के दौरान ढोलना ताबीज पहनाने की प्रथा आज भी देखी जा सकती है। आधुनिकता के बावजूद, पारंपरिक रीति-रिवाजों को निभाने में लोगों की आस्था बनी हुई है। यह ताबीज न केवल एक पुरानी प्रथा का अनुसरण है, बल्कि इसे महिलाओं की सुरक्षा और शुभता से भी जोड़ा जाता है।

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राजस्थान की सांस्कृतिक पहचान में ढोलना का योगदान

राजस्थान की संस्कृति अपने अनोखे परंपराओं और रीति-रिवाजों के लिए जानी जाती है। ढोलना ताबीज न केवल एक गहना है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक भी है। यह महिलाओं की सुरक्षा और विवाहिता होने का प्रतीक है, जिसे समाज में विशेष मान्यता दी जाती रही है।

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