क्या पाकिस्तान टूटने वाला है? पाकिस्तानी मौलाना ने किया चौंकाने वाला दावा 1971 जैसी तबाही तय!

पाकिस्तान में मौलाना फजलुर रहमान ने बलूचिस्तान के जिलों के स्वतंत्र होने की चेतावनी दी है। उन्होंने 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के अलग होने का उदाहरण देते हुए कहा कि देश में फिर से ऐसी ही स्थिति बन रही है। कुर्रम में हिंसा भड़कने से सुरक्षा हालात और बिगड़ चुके हैं। पाकिस्तान सरकार पर नियंत्रण की कमी और एस्टैब्लिशमेंट की बढ़ती शक्ति इस संकट को और गहरा कर रही है। यदि सरकार ने समय रहते उचित कदम नहीं उठाए, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

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Written byRohit Kumar

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क्या पाकिस्तान टूटने वाला है? पाकिस्तानी मौलाना ने किया चौंकाने वाला दावा 1971 जैसी तबाही तय!
पाकिस्तानी मौलाना ने किया चौंकाने वाला दावा

पाकिस्तान में राजनीतिक और सुरक्षा स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही है, और इस बार यह संकट बलूचिस्तान में अलगाववादी गतिविधियों के कारण और गहराता दिख रहा है। हाल ही में पाकिस्तान के इस्लामिक धर्मगुरु और सांसद मौलाना फजलुर रहमान ने एक सनसनीखेज बयान दिया, जिसमें उन्होंने चेतावनी दी कि बलूचिस्तान के पांच से सात जिले स्वतंत्रता की घोषणा कर सकते हैं। उन्होंने 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के अलग होकर बांग्लादेश बनने की घटना का हवाला देते हुए कहा कि पाकिस्तान में अब भी वैसी ही परिस्थितियां बन रही हैं।

मौलाना फजलुर रहमान ने पाकिस्तान की नेशनल असेंबली (NA) में खुलासा किया कि यदि बलूचिस्तान के जिले स्वतंत्रता की घोषणा करते हैं, तो संयुक्त राष्ट्र (UN) उनकी स्वतंत्रता को मान्यता दे सकता है। इसके साथ ही, उन्होंने पाकिस्तान की सेना पर भी निशाना साधते हुए कहा कि कुछ ताकतवर लोग बंद कमरों में फैसले करते हैं, जिन्हें सरकार को मानना पड़ता है।

कुर्रम में फिर भड़की हिंसा, सुरक्षा हालात बिगड़े

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मौलाना फजलुर रहमान का यह बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र कुर्रम में हिंसा एक बार फिर भड़क गई है। यह इलाका दशकों से शिया-सुन्नी संघर्ष का केंद्र रहा है। नवंबर में शुरू हुई ताजा लड़ाई में अब तक 150 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।

कुर्रम, जो अफगानिस्तान की सीमा से सटा हुआ एक पहाड़ी क्षेत्र है, पूरी तरह से हिंसक गुटों के कब्जे में आ चुका है। यहां भारी हथियारों से लैस लड़ाकों की झड़पों ने हालात को और भी गंभीर बना दिया है। स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों द्वारा कई बार संघर्ष विराम (Ceasefire) की कोशिश की गई, लेकिन हर बार यह नाकाम रही। इस क्षेत्र में बढ़ती हिंसा पाकिस्तान की सुरक्षा रणनीति की कमजोरी को दर्शाती है।

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पहले भी दी थी चेतावनी

यह पहली बार नहीं है जब मौलाना फजलुर रहमान ने पाकिस्तान की सुरक्षा और संप्रभुता को लेकर गंभीर चिंता व्यक्त की है। जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के प्रमुख रहमान ने पिछले महीने कहा था कि पाकिस्तान सरकार ने खैबर पख्तूनख्वा और बलूचिस्तान पर अपना नियंत्रण लगभग खो दिया है। इसके कारण बीते दो दशकों में इन क्षेत्रों से बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है।

पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने सभी हितधारकों से समाधान खोजने की अपील की थी और चेतावनी दी थी कि यदि इस संकट का समाधान नहीं हुआ तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। उनका कहना था कि जहां भी शासन कमजोर होता है, वहां भौगोलिक अस्थिरता (Geopolitical Instability) पैदा होती है। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान की नीति से जुड़े सभी महत्वपूर्ण फैसले बंद कमरों में होते हैं, जिनमें जनता और निर्वाचित सरकार की कोई भूमिका नहीं होती।

पाकिस्तानी प्रधानमंत्री पर निशाना

मौलाना फजलुर रहमान ने नेशनल असेंबली में प्रधानमंत्री की भूमिका पर सवाल उठाते हुए कहा कि यदि वह प्रधानमंत्री से पूछें कि बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा और कबायली इलाकों में क्या हो रहा है, तो शायद उन्हें इसका कोई जवाब ही न मिले। उन्होंने इशारों-इशारों में कहा कि पाकिस्तान में कोई भी सिविलियन सरकार का वास्तविक नियंत्रण नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि पाकिस्तान में असल शक्ति एस्टैब्लिशमेंट (Establishment) के पास है, जो बंद कमरों में निर्णय लेते हैं और सरकार को केवल उन पर मुहर लगानी होती है।

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