
उत्तर प्रदेश में स्मार्ट मीटर लगाने का मुद्दा एक बार फिर चर्चा में है। हाल ही में विधानसभा सत्र के दौरान उत्तराखंड सरकार ने यह स्पष्ट किया कि राज्य के पर्वतीय क्षेत्रों और कुछ ग्रामीण इलाकों में स्मार्ट मीटर नहीं लगाए जाएंगे। इन इलाकों में स्मार्ट मीटर लगाने का निर्णय उस क्षेत्र में इंटरनेट कनेक्शन की कमी के कारण लिया गया है। यह सरकार का जवाब था विपक्षी दलों के विरोध के बीच, जो इस योजना का विरोध कर रहे थे और इसे आम जनता पर अतिरिक्त बोझ मान रहे थे। सरकार का कहना है कि यह कदम बिजली चोरी को रोकने और बिलिंग प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए उठाया गया है।
संसदीय कार्य मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने सदन में इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखते हुए कहा कि स्मार्ट मीटर एक देशव्यापी योजना के तहत लगाए जा रहे हैं, जिससे बिजली की खपत का पता रियल टाइम में चल सकेगा। इस योजना का उद्देश्य उन उपभोक्ताओं को स्मार्ट मीटर के माध्यम से अधिक पारदर्शी और सटीक बिलिंग प्रदान करना है, जिनके द्वारा बिजली का ज्यादा उपयोग किया जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि यह मीटर प्रीपेड नहीं होंगे, बल्कि पोस्ट पेड मोड में ही लगाए जाएंगे।
इस घोषणा के बाद विपक्षी दलों ने जोरदार विरोध किया। विपक्ष ने यह आरोप लगाया कि स्मार्ट मीटर की योजना गरीबों के लिए एक अतिरिक्त बोझ है और सरकार आम जनता पर इसे थोप रही है। विपक्ष ने कहा कि सरकार की यह योजना पूरी तरह से अव्यावहारिक है, खासकर उन इलाकों में जहां नेटवर्क की समस्या है और स्मार्ट मीटर का ठीक से इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कांग्रेस के नेता यशपाल आर्य ने आरोप लगाया कि सरकार ने अदाणी समूह को स्मार्ट मीटर लगाने का ठेका सौंपा है और इससे पहले जो मीटर लगाए गए थे, उनमें भ्रष्टाचार के आरोप भी सामने आए थे।
कांग्रेस विधायकों ने विधानसभा में इस मुद्दे पर नियम 310 के तहत चर्चा की मांग की थी, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने इसे नियम 58 के तहत सुनने की व्यवस्था दी। इस पर नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने सरकार पर हमला बोलते हुए कहा कि स्मार्ट मीटर लगाने के बाद कंपनियां जनता पर मनचाहा दबाव बनाएंगी। उन्होंने चेतावनी दी कि जिन क्षेत्रों में नेटवर्क नहीं होगा, वहां लोग स्मार्ट मीटर का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे, और यह योजना असफल साबित हो सकती है।
वहीं, कांग्रेस के विधायक तिलकराज बेहड़ ने कहा कि गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में स्मार्ट मीटर लगाने के लिए अलग-अलग कंपनियों को 2027 करोड़ रुपये का ठेका दिया गया है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि जिस कंपनी को यह ठेका दिया गया है, उसके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप पहले भी सामने आ चुके हैं और उसके अधिकारियों पर भी कार्रवाई की गई है।
सरकार ने हालांकि इस पर जवाब देते हुए कहा कि स्मार्ट मीटर लगाने से बिजली चोरी रुकेगी और बिलिंग की समस्या समाप्त हो जाएगी। मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने यह भी कहा कि कंपनी चयन प्रक्रिया पूरी पारदर्शिता से की गई है और सरकार इस योजना पर सोच-समझकर काम कर रही है।
कांग्रेस नेताओं ने इस मुद्दे पर विरोध जारी रखा और कई विधायक सदन से बाहर निकल गए। विपक्ष का कहना है कि यह योजना उत्तराखंड के लोगों के लिए केवल एक और बोझ बनेगी, जबकि सरकार ने इसे पारदर्शिता और सुधार का नाम दिया है।
इस बीच, सरकार ने यह भी कहा कि यह योजना लंबे समय में लोगों को अधिक सुविधा देने के लिए है, क्योंकि रियल टाइम मीटर रीडिंग से बिजली बिलों में सुधार होगा और आम जनता को अधिक सटीक बिल मिलेगा।
क्या स्मार्ट मीटर वास्तव में आम जनता के लिए फायदेमंद होंगे?
स्मार्ट मीटर की योजना पर होने वाले इस विवाद के बीच, यह सवाल उठता है कि क्या स्मार्ट मीटर वाकई में आम जनता के लिए लाभकारी होंगे या यह केवल एक और महंगा सरकारी प्रयोग साबित होगा? विपक्ष के आरोपों के बावजूद सरकार का कहना है कि यह योजना बिजली चोरी को रोकने में मददगार साबित होगी और इसके माध्यम से बिजली की खपत पर नियंत्रण रखने में सहायता मिलेगी।
अगर देखा जाए तो स्मार्ट मीटर आमतौर पर बिजली उपभोक्ताओं को रियल टाइम डेटा प्रदान करते हैं, जिससे वे अपनी खपत को बेहतर तरीके से समझ सकते हैं और बिलिंग में सुधार आ सकता है। लेकिन विपक्ष के आरोपों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, खासकर उन क्षेत्रों में जहां नेटवर्क की समस्या है।
इससे यह सवाल भी खड़ा होता है कि क्या यह योजना उन क्षेत्रों में सफल हो पाएगी जहां स्मार्ट मीटर का पूरा लाभ नहीं उठाया जा सकता।