
इंदौर (Indore) हाईकोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए निजी बैंक द्वारा लोन न चुका पाने की स्थिति में ज़ब्त किए गए मकानों को लेकर महत्वपूर्ण निर्देश जारी किए हैं। कोर्ट ने इस मामले में मकान मालिकों को हुई असुविधा को गंभीरता से लेते हुए ज़िम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई के आदेश भी दिए हैं।
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इंदौर हाईकोर्ट (Indore High Court) का यह फैसला उन सभी लोनधारकों के लिए राहतभरी खबर है जो बैंकों की मनमानी का शिकार होते हैं। न्यायालय ने इस मामले में अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का जो आदेश दिया है, वह अन्य मामलों में भी एक मिसाल बनेगा और प्रशासन को अपनी जवाबदेही समझने के लिए मजबूर करेगा।
लोन न चुकाने पर बैंक ने किया ज़ब्ती का आदेश
मामला मध्यप्रदेश के इंदौर जिले के देवपालपुर क्षेत्र से जुड़ा है। यहां के एक निवासी ने एयू हाउसिंग फाइनेंस बैंक (AU Housing Finance Bank) से प्लॉट खरीदने के लिए लोन लिया था। लेकिन कुछ किस्तें न चुका पाने की स्थिति में बैंक ने SDM कोर्ट में मामला दर्ज कर प्लॉट ज़ब्त करने का आदेश ले लिया। बैंक का दावा है कि उन्होंने कई बार लोनधारक को नोटिस भेजे, लेकिन जब भुगतान नहीं हुआ तो उन्हें मजबूरन यह कदम उठाना पड़ा।
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प्लॉट की बजाय मकान पर किया कब्ज़ा
मामले ने तब तूल पकड़ लिया जब बैंक अधिकारियों और स्थानीय प्रशासन ने आदेश की अवहेलना करते हुए प्लॉट की बजाय लोनधारक के मकान पर कब्ज़ा कर लिया। यही नहीं, पीड़ित परिवार को घर से निकालकर उनके सामान को भी बाहर निकालने की अनुमति नहीं दी गई। पीड़ित की 10वीं कक्षा में पढ़ने वाली बेटी को भी जबरन घर से निकाल दिया गया और मकान को सील कर दिया गया।
हाईकोर्ट का सख्त रुख, तुरंत मकान लौटाने का आदेश
इस अन्याय के खिलाफ पीड़ित परिवार ने इंदौर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। न्यायाधीश विवेक रूसिया ने मामले की गंभीरता को समझते हुए इसे अवैध करार दिया और तुरंत मकान को पीड़ित परिवार को लौटाने का आदेश दिया।
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अधिकारियों पर होगी आपराधिक कार्रवाई
हाईकोर्ट ने इस मामले में केवल मकान वापस लौटाने का आदेश ही नहीं दिया, बल्कि ज़िम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई करने के भी निर्देश दिए हैं। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि इस तरह की घटनाएं आम नागरिकों के अधिकारों का हनन करती हैं और प्रशासन को अपनी ज़िम्मेदारी समझनी चाहिए।
बैंक की लापरवाही या प्रशासन की गलती?
इस मामले में सवाल उठता है कि गलती बैंक की थी या प्रशासन की? SDM कोर्ट ने सिर्फ प्लॉट ज़ब्त करने का आदेश दिया था, फिर मकान पर कब्ज़ा क्यों किया गया? इस तरह के मामलों में यह स्पष्ट होता है कि लोन देने वाले वित्तीय संस्थानों और प्रशासन के बीच तालमेल की कमी आम नागरिकों के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर सकती है।
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भविष्य के लिए क्या सबक?
इस घटना से यह सबक मिलता है कि:
- बैंकों और प्रशासन को कानूनी प्रक्रियाओं का सख्ती से पालन करना चाहिए।
- लोनधारकों को अपने भुगतान को लेकर सतर्क रहना चाहिए और बैंक के नोटिस का जवाब देना चाहिए।
- यदि किसी भी स्तर पर गलत कार्रवाई हो रही हो, तो नागरिकों को न्यायालय की शरण में जाने से हिचकना नहीं चाहिए।