
हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर से भारी मात्रा में नकदी मिलने के मामले ने देश की न्यायिक व्यवस्था को एक बार फिर से सुर्खियों में ला दिया है। इस घटनाक्रम के बाद केंद्र सरकार National Judicial Appointments Commission-NJAC को लेकर नए सिरे से विचार कर रही है। यह वही कानून है जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में असंवैधानिक घोषित करते हुए रद्द कर दिया था, लेकिन अब इसके पुनर्जीवन की संभावनाएं दिखने लगी हैं।
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2014 में पारित हुआ था NJAC कानून
साल 2014 में केंद्र सरकार ने न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने के उद्देश्य से NJAC कानून पास किया था। इसका मकसद यह था कि जजों की नियुक्ति में केवल न्यायपालिका ही नहीं, बल्कि कार्यपालिका और समाज के प्रतिनिधियों की भी भूमिका हो। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में इस कानून को संविधान के खिलाफ बताते हुए खारिज कर दिया और पुराने कॉलेजियम सिस्टम को बहाल कर दिया।
क्या है NJAC और इसका गठन कैसे होता?
National Judicial Appointments Commission (NJAC) एक छह सदस्यीय समिति थी, जिसका गठन इस तरह से होना था:
- भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) – अध्यक्ष
- सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम जज
- भारत सरकार के कानून मंत्री
- दो प्रतिष्ठित व्यक्ति, जिनमें से एक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक या महिला हो सकती थीं
इस समिति का कार्य था सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति और ट्रांसफर के लिए योग्य उम्मीदवारों का चयन करना। इसके बाद राष्ट्रपति इन नामों को अंतिम मंजूरी देते।
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों किया NJAC को खारिज?
सुप्रीम कोर्ट ने 2015 में NJAC कानून को रद्द करते हुए कहा कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है। कोर्ट का मानना था कि कार्यपालिका और बाहरी सदस्यों की मौजूदगी से न्यायिक नियुक्तियों की निष्पक्षता प्रभावित हो सकती है। इसके साथ ही संविधान के अनुच्छेद 50 (न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच अलगाव) का हवाला भी दिया गया।
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कॉलेजियम सिस्टम: वर्तमान नियुक्ति प्रक्रिया
वर्तमान में देश में जजों की नियुक्ति कॉलेजियम सिस्टम के तहत होती है, जो 1993 से लागू है। इसमें सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम जजों की एक समिति जजों की नियुक्ति, ट्रांसफर और प्रमोशन की सिफारिश करती है।
सरकार इस सिफारिश को मानने के लिए बाध्य नहीं होती, लेकिन अगर कॉलेजियम दोबारा वही नाम भेजे, तो सामान्यतः सरकार को उसे स्वीकार करना होता है। इस सिस्टम पर कई बार पारदर्शिता की कमी और भाई-भतीजावाद के आरोप लगे हैं।
यशवंत वर्मा कांड ने फिर जगा दी बहस
दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर से नकदी मिलने के मामले ने न्यायिक प्रक्रिया की पारदर्शिता पर सवाल खड़े किए हैं। इसी संदर्भ में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में जेपी नड्डा और मल्लिकार्जुन खरगे के साथ मीटिंग की, जिसमें NJAC पर सीधे चर्चा नहीं हुई, लेकिन न्यायिक नियुक्तियों में सुधार की आवश्यकता को जरूर रेखांकित किया गया।
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विपक्ष की ओर से भी मिल सकता है समर्थन
इस बार स्थिति थोड़ी अलग है। जहां पहले NJAC को लेकर सरकार और विपक्ष आमने-सामने थे, वहीं अब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने 21 मार्च को NJAC पर सकारात्मक संकेत दिए। इससे यह संभावना बढ़ गई है कि यदि सरकार इस कानून को फिर से पेश करती है, तो उसे विपक्ष का साथ भी मिल सकता है।
ऑल पार्टी मीटिंग की संभावना
उपराष्ट्रपति धनखड़ जल्द ही इस मुद्दे पर ऑल पार्टी मीटिंग बुला सकते हैं, जिसमें न्यायपालिका की छवि को सुधारने और भ्रष्टाचार से बचाने के लिए नए सुझावों पर चर्चा की जा सकती है। यह मीटिंग इस दिशा में एक बड़ा कदम हो सकती है, जिससे NJAC जैसे कानून को दोबारा लागू करने की राह आसान हो।
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क्या NJAC की वापसी संभव है?
भले ही NJAC कानून पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज कर दिया गया हो, लेकिन मौजूदा परिस्थितियां इसकी वापसी की संभावना को बल दे रही हैं। सरकार इस मुद्दे को लेकर पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है, लेकिन संकेत यही मिल रहे हैं कि विकल्पों पर गंभीरता से विचार हो रहा है। यदि पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए पर्याप्त प्रावधान किए जाएं, तो NJAC का नया संस्करण फिर से सामने आ सकता है।