
ग्वालियर से आई एक महत्वपूर्ण खबर में मध्यप्रदेश हाईकोर्ट-MP High Court ने ‘दूसरी शादी’ को लेकर एक अहम निर्णय सुनाया है, जो वैवाहिक कानून की व्याख्या में मील का पत्थर साबित हो सकता है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि यदि पहला पति जीवित है और उससे विधिवत तलाक-Divorce नहीं लिया गया है, तो उस स्थिति में किया गया दूसरा विवाह कानूनी रूप से अमान्य होगा।
यह मामला ग्वालियर की कुटुंब न्यायालय से शुरू हुआ था, जहां एक महिला ने स्वयं को अपने मृतक पति की विधवा बताते हुए अनुकंपा नियुक्ति की मांग की थी। लेकिन मामला वहां खारिज हो गया और हाईकोर्ट में अपील दायर की गई, जिसे हाल ही में खारिज कर दिया गया है।
कुटुंब न्यायालय ने किया आवेदन खारिज, हाईकोर्ट ने दी मुहर
यह पूरा मामला विनय कुमार (परिवर्तित नाम), जो कि टेलीफोन इन्फॉर्मेशन विभाग में ड्राइवर पद पर कार्यरत थे, से जुड़ा है। उन्होंने पहली पत्नी के निधन के बाद जुलाई 2013 में दूसरा विवाह किया था। लेकिन विनय कुमार का भी कुछ समय बाद निधन हो गया। इसके बाद दूसरी पत्नी ने विभाग में Compassionate Appointment के लिए आवेदन किया, जिसे यह कहकर खारिज कर दिया गया कि वह विनय कुमार की वैधानिक पत्नी नहीं थीं।
महिला ने इसके विरुद्ध ग्वालियर की कुटुंब न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें दावा किया गया कि पहली पत्नी के निधन के बाद विनय कुमार ने उनसे वैध रूप से विवाह किया था। लेकिन न्यायालय ने उनका आवेदन यह कहते हुए खारिज कर दिया कि ऐसा कोई विवाह दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया गया जिससे विवाह की वैधता साबित हो सके।
हाईकोर्ट की दो जजों की बेंच ने अपील की खारिज
इस फैसले के खिलाफ जब महिला ने हाईकोर्ट में अपील की तो वहां भी उसे राहत नहीं मिली। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच (Division Bench) ने अपने फैसले में कहा कि जब तक पहला विवाह वैध रूप से समाप्त नहीं होता — यानी या तो तलाक हो या पहली पत्नी का निधन हो — तब तक किया गया दूसरा विवाह वैधानिक नहीं माना जा सकता।
कोर्ट ने यह भी कहा कि सामाजिक स्वीकृति और नॉमिनी बनाए जाने जैसे तर्क विवाह की वैधता सिद्ध करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। विवाह की वैधता का निर्धारण भारत के वैवाहिक कानूनों के तहत ही किया जा सकता है।
सामाजिक प्रथा बनाम वैधानिक मान्यता
महिला ने कोर्ट में यह भी तर्क दिया कि उनके समाज में ‘छोड़-छुट्टी’ की एक सांस्कृतिक प्रथा है, जिसके तहत पति-पत्नी आपसी सहमति से अलग हो जाते हैं और दूसरा विवाह कर लेते हैं। लेकिन हाईकोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया। अदालत ने कहा कि भारतीय वैवाहिक कानून (विशेष रूप से Hindu Marriage Act) के अंतर्गत ऐसी प्रथाएं मान्य नहीं होतीं जब तक कि उनका कानूनी आधार न हो।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि सामाजिक मान्यता या परंपराएं कानून के स्थान पर नहीं आ सकतीं। विवाह, तलाक या विधवा होने जैसी स्थितियों का निर्धारण केवल कानूनी दस्तावेजों और वैध प्रक्रिया से ही हो सकता है।
विभाग ने भी नकारा पत्नी का दावा
महिला ने यह भी कहा कि विनय कुमार ने अपने विभागीय दस्तावेजों में उन्हें नॉमिनी के रूप में दर्ज किया था। लेकिन विभाग ने उनका यह दावा स्वीकार नहीं किया और कहा कि Nominee Status किसी को वैवाहिक दर्जा नहीं देता। इस आधार पर अनुकंपा नियुक्ति के लिए दिया गया उनका आवेदन विभाग द्वारा ठुकरा दिया गया।
वैवाहिक कानूनों की गंभीरता और जागरूकता की ज़रूरत
यह फैसला एक बार फिर इस बात को रेखांकित करता है कि भारत में विवाह केवल एक सामाजिक अनुबंध नहीं बल्कि एक कानूनी बंधन भी है। यदि कोई व्यक्ति विवाह करता है तो उसे अपने पहले संबंध को वैध रूप से समाप्त करना जरूरी है, अन्यथा बाद में आने वाले सभी दावे और अधिकार खारिज हो सकते हैं।
दूसरी शादी का वैधानिक दर्जा तब तक मान्य नहीं हो सकता जब तक पहला विवाह विधिवत रूप से समाप्त न हो जाए। ऐसे मामलों में न्यायालयों ने हमेशा विधिक प्रक्रिया की प्राथमिकता दी है, न कि परंपरा या सामाजिक मान्यताओं को।