चुपचाप आपका डेटा चुरा रही हैं वेबसाइट्स? मोबाइल से ऐसे करें सच्चाई का पर्दाफाश!

आप सोचते हैं कि आप इंटरनेट पर सुरक्षित हैं? हकीकत जानकर होश उड़ जाएंगे! कई वेबसाइट्स और ऐप्स चुपके से आपकी पर्सनल जानकारी चुरा रही हैं—लोकेशन से लेकर कॉन्टैक्ट्स तक। जानिए कैसे आपका मोबाइल आपकी जासूसी कर रहा है और किन तरीकों से आप इस डिजिटल जाल से खुद को बचा सकते हैं

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Written byRohit Kumar

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चुपचाप आपका डेटा चुरा रही हैं वेबसाइट्स? मोबाइल से ऐसे करें सच्चाई का पर्दाफाश!
चुपचाप आपका डेटा चुरा रही हैं वेबसाइट्स? मोबाइल से ऐसे करें सच्चाई का पर्दाफाश!

आज के डिजिटल युग में जहां हर काम मोबाइल और इंटरनेट के जरिए होता है, वहां डेटा की सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती बन गई है। हाल के कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि कई वेबसाइट्स और मोबाइल ऐप्स यूजर की जानकारी चुपचाप इकट्ठा कर रही हैं। यह डेटा चोरी न केवल यूजर की गोपनीयता (Privacy) का उल्लंघन है, बल्कि साइबर फ्रॉड और डिजिटल धोखाधड़ी का कारण भी बन सकता है।

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इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि वेबसाइट्स और ऐप्स कैसे आपकी जानकारी बिना आपकी जानकारी के चुरा रही हैं, साथ ही यह भी समझेंगे कि कैसे आप अपने मोबाइल फोन से इन पर नजर रख सकते हैं और इनका पर्दाफाश कर सकते हैं।

डेटा चोरी कैसे करती हैं वेबसाइट्स और ऐप्स?

जब कोई यूजर किसी वेबसाइट पर जाता है, तो वह सिर्फ वही जानकारी साझा करता है जो आवश्यक लगती है। लेकिन वेबसाइट्स की बैकग्राउंड टेक्नोलॉजी जैसे ट्रैकर्स, कुकीज (Cookies), और थर्ड-पार्टी स्क्रिप्ट्स कई बार उस सीमा से बाहर जाकर डेटा इकट्ठा करती हैं।

उदाहरण के लिए, जब आप किसी न्यूज साइट को पढ़ने जाते हैं, वह आपकी ब्राउज़िंग हिस्ट्री, लोकेशन, डिवाइस टाइप, और कई बार कीबोर्ड पर टाइप की गई चीजों को भी ट्रैक कर सकती है।

मोबाइल ऐप्स भी यही काम करते हैं। कई बार यूजर से बिना स्पष्ट अनुमति के कॉन्टैक्ट्स, कैमरा, माइक्रोफोन, और फाइल एक्सेस करने की परमिशन ले ली जाती है। ये जानकारी विज्ञापन कंपनियों, डेटा ब्रोकर या फिर साइबर अपराधियों तक पहुँचाई जा सकती है।

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आपके मोबाइल में छिपे होते हैं संकेत

डेटा चोरी होने के कई संकेत मोबाइल में छिपे होते हैं। जैसे मोबाइल का अचानक स्लो हो जाना, बैटरी जल्दी खत्म होना, अनचाही नोटिफिकेशन आना या फिर ऐप्स का बैकग्राउंड में अधिक डेटा यूज़ करना।

अगर आपने कभी देखा हो कि आपके फोन का इंटरनेट डेटा जल्दी खत्म हो रहा है, जबकि आप बहुत ज्यादा ब्राउज़िंग नहीं कर रहे, तो यह एक संकेत हो सकता है कि कोई ऐप आपकी जानकारी बैकग्राउंड में किसी सर्वर पर भेज रहा है।

ऐसे करें मोबाइल से वेबसाइट्स और ऐप्स की निगरानी

मोबाइल से इन गतिविधियों पर नजर रखना मुश्किल जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। एंड्रॉइड और iOS दोनों प्लेटफॉर्म्स पर कुछ तरीके हैं जिनसे आप डेटा एक्सेस का पता लगा सकते हैं:

1. ऐप परमिशन चेक करें:
सेटिंग्स में जाकर देखें कि कौन-सी ऐप्स कौन-कौन सी परमिशन ले रही हैं। अनावश्यक परमिशन को तुरंत हटा दें।

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2. डेटा यूसेज मॉनिटर करें:
सेटिंग्स में “Data Usage” सेक्शन में जाकर पता करें कि कौन-सी ऐप कितना डेटा यूज़ कर रही है, और किस समय कर रही है।

3. प्राइवेसी-फ्रेंडली ब्राउज़र इस्तेमाल करें:
Firefox Focus या DuckDuckGo जैसे ब्राउज़र आपके डेटा को ट्रैक होने से रोकते हैं।

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4. स्पाइवेयर डिटेक्शन ऐप्स इंस्टॉल करें:
Play Store पर कई ऐसे ऐप्स मौजूद हैं जो मोबाइल में छिपे स्पाइवेयर या ट्रैकर्स की पहचान कर सकते हैं।

5. VPN का उपयोग करें:
VPN यानी Virtual Private Network आपकी ब्राउज़िंग को एन्क्रिप्ट करता है और वेबसाइट्स को आपकी सही लोकेशन और डेटा एक्सेस से रोकता है।

सरकार और कानून क्या कहते हैं?

भारत सरकार ने हाल के वर्षों में डेटा सुरक्षा पर कड़े कानून लाने की कोशिश की है। डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल (DPDP Bill) के जरिए यह सुनिश्चित किया गया है कि कंपनियों को यूजर की अनुमति के बिना कोई भी व्यक्तिगत जानकारी इकट्ठा नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा, अगर कोई कंपनी डेटा लीक करती है या नियमों का उल्लंघन करती है, तो उस पर भारी जुर्माना लगाया जा सकता है।

यूजर की जिम्मेदारी भी जरूरी

कानून अपना काम करेंगे, लेकिन एक जिम्मेदार यूजर के तौर पर हमें भी सतर्क रहना चाहिए। हर ऐप या वेबसाइट पर साइन अप करते वक्त “Terms & Conditions” जरूर पढ़ें, ऐप को दी जा रही परमिशन को सावधानी से चुनें, और कोई भी संदेहास्पद एक्टिविटी नजर आए तो उसे तुरंत रोकें।

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भविष्य की राह: डेटा की नई दिशा

जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी आगे बढ़ रही है, डेटा सुरक्षा को लेकर भी नए समाधान सामने आ रहे हैं। Zero-knowledge encryption, Decentralized Data Storage, और Privacy-first ऐप्स जैसे विकल्प आने वाले समय में गेम चेंजर साबित हो सकते हैं।

साथ ही कंपनियों को भी अब पारदर्शिता (Transparency) की नीति अपनानी होगी, ताकि यूजर्स को भरोसा हो सके कि उनका डेटा सुरक्षित हाथों में है।

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