
भारतीय संस्कृति में हर त्योहार का एक विशिष्ट महत्व है, और फाल्गुन महीने में मनाया जाने वाला होली उत्सव भी इससे अछूता नहीं है। इस बार होली 2025 को लेकर तिथियों में संशय बना हुआ है। राष्ट्रीय ब्राह्मण महासंघ के विद्वत परिषद के प्रदेश अध्यक्ष पंडित आचार्य राकेश मिश्रा ने स्पष्ट किया है कि इस साल होलिका दहन 13 मार्च की रात को होगा, जबकि रंगों की होली 15 मार्च को मनाई जाएगी।
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होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
पंडित आचार्य राकेश मिश्रा के अनुसार, पंचांग के आधार पर होलिका दहन पूर्णिमा तिथि को किया जाता है। इस वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे से प्रारंभ होकर 14 मार्च को 11:11 बजे तक रहेगी।
13 मार्च को भद्रा का प्रभाव रहेगा, जो रात्रि 10:37 बजे समाप्त होगा। इसके बाद रात 10:38 बजे से 11:26 बजे तक का समय होलिका दहन के लिए सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
होली कब खेली जाएगी?
होली का पर्व होलिका दहन के अगले दिन मनाया जाता है, लेकिन इस बार तिथियों के संयोग को देखते हुए, धुलंडी 15 मार्च, शनिवार को मनाई जाएगी। पंडित आचार्य के अनुसार, रंगों का यह पर्व धार्मिक दृष्टि से 15 मार्च को ही उचित होगा।
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बदल रही होली की परंपराएं, खो रही फाग की मिठास
गांवों में अब फाग गीतों की गूंज कम सुनाई देने लगी है। पारंपरिक लोकगीतों की जगह अब फिल्मी और अश्लील गीतों ने ले ली है। पहले होली के अवसर पर “होली खेले रघुवीरा अवध में…” जैसे भजन गूंजते थे, लेकिन अब इनकी जगह कुछ अलग ही माहौल देखने को मिल रहा है।
होलिका दहन की पुरानी परंपरा विलुप्त होती जा रही
करीब दो-ढाई दशक पहले गांवों में बसंत पंचमी से ही होलिका दहन की तैयारियां शुरू हो जाती थीं। गांव के बुजुर्ग और युवा मिलकर नए बांस गाड़ते थे और पारंपरिक गीतों के साथ होली की शुरुआत होती थी। 40 दिनों तक लगातार ढोलक की थाप और फाग गीतों से माहौल सराबोर रहता था।
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लेकिन अब समय बदल गया है। होलिका दहन का आयोजन भी मात्र औपचारिकता बनकर रह गया है। पहले जहां पुआल, गोबर के उपले, पुरानी खरही और बगीचे के सूखे पत्ते जमा किए जाते थे, अब वैसी उत्सुकता देखने को नहीं मिलती।
मिट्टी और धूल से लेकर कपड़ा फाड़ होली तक का बदलाव
पहले होली में धूल और कीचड़ की परंपरा थी, फिर इसे रंगों ने जगह दी, लेकिन अब कपड़ा फाड़ होली जैसी नई परंपराएं जन्म ले रही हैं। आधुनिकता के बढ़ते प्रभाव के कारण अब गांवों में भी होली का उत्साह धीरे-धीरे फीका पड़ता जा रहा है।
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आधुनिकता के आगे होली की पुरानी उमंग फीकी
गांवों में पहले दिनभर होली के रंगों में सराबोर लोग शाम को आपस में गले मिलते थे, लेकिन अब इसका स्वरूप बदल गया है। रिश्तों में बढ़ती औपचारिकता और बदलते सामाजिक परिवेश के कारण अब होली भी बस एक त्योहार भर रह गई है।