
बीमा कंपनियों, अस्पतालों, स्कूलों और अन्य जनोपयोगी सेवाओं से जुड़ी मनमानी और विवादों के निपटारे के लिए स्थायी लोक अदालत (Permanent Lok Adalat) एक सस्ता और सुगम विकल्प है। यहां वाद दायर करने के लिए न तो वकील की आवश्यकता होती है और न ही कोर्ट फीस का बोझ उठाना पड़ता है। एक साधारण प्रार्थना पत्र के माध्यम से ही विवाद का निस्तारण संभव है।
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ग्रेटर नोएडा में स्थायी लोक अदालत की स्थिति
ग्रेटर नोएडा के सूरजपुर स्थित जिला कोर्ट में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की बिल्डिंग में स्थायी लोक अदालत स्थापित है। इसके चेयरमैन पूर्व जिला जज प्रमोद कुमार शर्मा हैं, जबकि कुमकुम नागर और बिब्बन शर्मा सदस्य के रूप में कार्यरत हैं। वर्तमान में स्थायी लोक अदालत में 50 से अधिक मुकदमों के निस्तारण की प्रक्रिया चल रही है।
कानूनी पचड़ों से राहत का माध्यम
स्थायी लोक अदालत के चेयरमैन प्रमोद कुमार शर्मा ने बताया कि आम जनता में अदालतों को लेकर एक आम भ्रांति है कि कानूनी प्रक्रिया में पड़ने से वर्षों तक समय बर्बाद हो जाता है और समय पर राहत नहीं मिलती। यही कारण है कि लोग अपने अधिकारों पर चोट सहते हुए भी अदालत का रुख नहीं करते। लेकिन, विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम की धारा-22 के तहत स्थायी लोक अदालतों की स्थापना की गई है, जहां जनोपयोगी सेवाओं से जुड़े विवादों का त्वरित निस्तारण किया जाता है।
प्रकरण दायर करने की प्रक्रिया
कोई भी व्यक्ति जनोपयोगी सेवाओं से जुड़े विवाद के निपटारे के लिए स्थायी लोक अदालत में एक साधारण कागज पर प्रार्थना पत्र देकर न्याय मांग सकता है। प्रार्थना पत्र में विवाद से संबंधित सभी आवश्यक विवरण और प्रार्थी का संपूर्ण विवरण देना अनिवार्य है। अदालत के अध्यक्ष और सदस्य इस प्रार्थना पत्र पर सुनवाई करते हैं।
किन मामलों का निपटारा होता है
स्थायी लोक अदालत में परिवहन सेवा (वायु, सड़क, जल मार्ग से यात्रियों व माल की ढुलाई), डाक और दूरभाष सेवा, बिजली और जलापूर्ति सेवा, सार्वजनिक स्वच्छता, अस्पताल और औषधालय की सेवाएं, शैक्षणिक संस्थान, बीमा सेवा (जीवन बीमा और सामान्य बीमा), रियल एस्टेट से जुड़े मामलों जैसे विवादों का निपटारा किया जाता है।
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हालांकि, पहले से न्यायालयों में चल रहे या विचाराधीन प्रकरण, ऐसे आपराधिक मामले जिनमें समझौता नहीं हो सकता और एक करोड़ रुपये से अधिक मूल्य की संपत्ति से जुड़े मामलों में स्थायी लोक अदालत में प्रार्थना पत्र नहीं दिया जा सकता।
विवाद निपटाने की प्रक्रिया
स्थायी लोक अदालत का उद्देश्य विवादों को सुलह और बातचीत के माध्यम से सौहार्द्रपूर्ण तरीके से निपटाना है। यदि सुलह से मामला हल नहीं होता, तो अदालत दोनों पक्षों के जवाब, दस्तावेज और अन्य उपलब्ध सामग्री के आधार पर निर्णय सुनाती है। अदालत सिविल प्रक्रिया संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम से बाध्य नहीं है।
स्थायी लोक अदालत से मिलने वाले फायदे
स्थायी लोक अदालत द्वारा किए गए निर्णय अंतिम होते हैं और सभी पक्षकारों पर बाध्यकारी होते हैं। इन निर्णयों के खिलाफ केवल हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ही अपील की जा सकती है।
अदालत का निर्णय सिविल न्यायालय की डिक्री माना जाता है, जिसे किसी भी मूल वाद, आवेदन या निष्पादन कार्रवाइयों में प्रश्नगत नहीं किया जा सकता। अदालत अपने निर्णय के पालन और निष्पादन के लिए क्षेत्रीय अधिकारिता रखने वाले न्यायालय को आदेश भेज सकती है, जो इसे स्वयं द्वारा पारित आदेश की तरह लागू करता है।
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स्थायी लोक अदालत में प्रार्थना पत्र दाखिल करने पर कोई शुल्क या कोर्ट फीस नहीं लगती। एक बार अर्जी दाखिल करने के बाद, उसी विवाद को लेकर नियमित न्यायालय में कार्रवाई नहीं की जा सकती।