
Statue of Liberty एक बार फिर वैश्विक चर्चा का विषय बन गया है। अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के सत्ता में लौटने के बाद अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और व्यापार नीति में बड़े बदलाव देखे जा रहे हैं। खास तौर पर यूरोपीय देशों और अमेरिका के बीच के संबंधों में तनाव गहराता जा रहा है। इसी पृष्ठभूमि में फ्रांस ने अमेरिका से Statue of Liberty को वापस लौटाने की मांग कर दी है, जिससे इस ऐतिहासिक प्रतिमा का इतिहास और महत्व एक बार फिर चर्चा में आ गया है।
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Statue of Liberty महज़ एक तांबे की मूर्ति नहीं है, यह एक विचार है—आज़ादी का, लोकतंत्र का और मानवीय गरिमा का। फ्रांस द्वारा इसे अमेरिका को उपहार में देना दो राष्ट्रों के बीच साझा मूल्यों की पुष्टि थी। लेकिन आज जब इन मूल्यों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं, तो यह बहस जरूरी हो जाती है कि क्या अब भी अमेरिका इस विरासत का वास्तविक उत्तराधिकारी है?
फ्रांस ने क्यों उठाई प्रतिमा वापसी की मांग?
यूरोपीय संसद के सदस्य और फ्रांस की वामपंथी पार्टी के सह अध्यक्ष राफेल ग्लुक्समान (Raphaël Glucksmann) ने अमेरिका की मौजूदा विदेश नीति पर सवाल उठाते हुए कहा है कि अमेरिका अब Statue of Liberty जैसी ऐतिहासिक धरोहर के काबिल नहीं रह गया है। उनका कहना है कि अमेरिका की नीतियां अब आज़ादी और लोकतंत्र के मूल्यों से भटक चुकी हैं, जो इस प्रतिमा के मूल उद्देश्य के खिलाफ हैं।
राफेल ग्लुक्समान का बयान यूक्रेन युद्ध को लेकर आया है, जहां ट्रंप प्रशासन ने यूक्रेन को सैन्य सहायता देने से मना कर दिया है। यूरोपीय देश इस मामले में यूक्रेन के समर्थन में हैं, लेकिन अमेरिका की इस दूरी ने ट्रांस-अटलांटिक रिश्तों में दरार डाल दी है।
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Statue of Liberty: अमेरिका को फ्रांस से मिला आज़ादी का तोहफा
Statue of Liberty, जिसे हिंदी में ‘स्वतंत्रता की मूर्ति’ कहा जाता है, न्यूयॉर्क हार्बर में स्थित है और यह अमेरिका की पहचान बन चुकी है। लेकिन यह प्रतिमा मूलतः फ्रांस की ओर से अमेरिका को एक उपहार थी। वर्ष 1886 में अमेरिका की स्वतंत्रता की 100वीं वर्षगांठ के अवसर पर फ्रांस ने यह विशाल प्रतिमा भेंट की थी।
Statue of Liberty का डिज़ाइन प्रसिद्ध फ्रांसीसी मूर्तिकार फ्रेडरिक ऑगस्टे बार्थोल्डी (Frédéric Auguste Bartholdi) ने तैयार किया था, जबकि इसकी धातु संरचना इंजीनियर गुस्टाव आइफेल (Gustave Eiffel) ने बनाई थी, जो बाद में आइफेल टॉवर के लिए मशहूर हुए।
यह मूर्ति दोनों देशों के बीच लोकतांत्रिक मूल्यों और आज़ादी के प्रति साझा विश्वास का प्रतीक मानी जाती है। यह न्याय, समानता और स्वतंत्रता के वैश्विक विचार को दर्शाती है, और यही कारण है कि यह आज भी दुनियाभर के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बनी हुई है।
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इतना विशाल स्टैच्यू अमेरिका तक कैसे पहुंचा?
Statue of Liberty की कुल ऊंचाई 93 मीटर यानी करीब 305 फीट है। यह प्रतिमा मुख्यतः तांबे से बनी हुई है और इसके सिर पर सात किरणों वाला मुकुट है, जो दुनिया के सातों महाद्वीपों और सात महासागरों का प्रतिनिधित्व करता है। स्टैच्यू के पैरों में पड़ी टूटी हुई जंजीरें गुलामी से मुक्ति का प्रतीक हैं।
इतनी विशाल प्रतिमा को अमेरिका पहुंचाना किसी चमत्कार से कम नहीं था। इसे कुल 350 टुकड़ों में विभाजित कर 214 बक्सों में पैक किया गया था। फिर एक विशेष जहाज़ के ज़रिए इसे अमेरिका भेजा गया। न्यूयॉर्क हार्बर में 26 अक्टूबर 1886 को इस प्रतिमा का उद्घाटन हुआ, जिसे अमेरिका और फ्रांस के सहयोग का प्रतीक माना गया।
इसके निर्माण की लागत फ्रांस ने वहन की थी, जबकि अमेरिका ने इसके आधार (pedestal) के निर्माण के लिए फंड इकट्ठा किया था। यह उस दौर की एक अनोखी साझेदारी थी, जिसमें जनता ने भी चंदा देकर भागीदारी निभाई थी।
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आज के संदर्भ में Statue of Liberty का महत्व
आज जबकि वैश्विक राजनीति में ध्रुवीकरण तेजी से बढ़ रहा है और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं, Statue of Liberty जैसे प्रतीकों का महत्व और भी बढ़ गया है। यह न सिर्फ अमेरिका के लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक आदर्श बन चुका है।
फ्रांस की यह मांग कि Statue of Liberty को वापस किया जाए, सिर्फ एक राजनीतिक बयान नहीं बल्कि उस विचारधारा की पुनः पुष्टि है जिसमें आज़ादी, समानता और भाईचारे को सर्वोपरि माना जाता है। यह सवाल उठाता है कि क्या आज की वैश्विक राजनीति इन मूल्यों के अनुरूप है?