Supreme Court Decision: क्या वसीयत या मुख्तारनामे से मिलेगा प्रॉपर्टी का मालिकाना हक, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

अगर आप भी किसी की वसीयत या पावर ऑफ अटॉर्नी के सहारे संपत्ति के मालिक बनने का सपना देख रहे हैं, तो सावधान हो जाइए! सुप्रीम कोर्ट ने दिया है ऐसा फैसला जो बदल देगा प्रॉपर्टी ट्रांसफर का पूरा खेल। जानिए अब किन दस्तावेजों से ही मिलेगा कानूनी मालिकाना हक, वरना हो सकते हैं बेघर

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Written byRohit Kumar

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Supreme Court Decision: क्या वसीयत या मुख्तारनामे से मिलेगा प्रॉपर्टी का मालिकाना हक, सुप्रीम कोर्ट का फैसला
Supreme Court Decision: क्या वसीयत या मुख्तारनामे से मिलेगा प्रॉपर्टी का मालिकाना हक, सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अचल संपत्ति (Immovable Property) के मालिकाना हक को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है, जिससे वसीयत (Will) और पावर ऑफ अटॉर्नी (Power of Attorney) से संपत्ति के स्वामित्व (Ownership) के दावे को खारिज कर दिया गया है। यह फैसला संपत्ति के लेन-देन से जुड़े मामलों में गहरा असर डालने वाला है, खासकर उन लोगों के लिए जो बिना रजिस्टर्ड डीड (Registered Deed) के केवल वसीयत या मुख्तारनामा के आधार पर संपत्ति पर दावा करते हैं।

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वसीयत और Power of Attorney नहीं हैं स्वामित्व के दस्तावेज

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सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस पंकज मिथल की पीठ ने घनश्याम बनाम योगेंद्र राठी केस में यह फैसला सुनाते हुए साफ किया कि वसीयत (Will) और जनरल पावर ऑफ अटॉर्नी (GPA) को किसी भी अचल संपत्ति में स्वामित्व देने वाले दस्तावेज के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती।

कोर्ट ने कहा कि यदि कोई व्यक्ति केवल वसीयत या पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर किसी संपत्ति पर हक जताता है, तो यह कानूनी रूप से मान्य नहीं होगा जब तक कि वह रजिस्टर्ड डीड से संपत्ति का स्थानांतरण (Transfer) न हुआ हो।

वसीयत मृत्यु के बाद ही होती है प्रभावी

अदालत ने इस बात पर भी जोर दिया कि वसीयत (Will) तब तक प्रभावी नहीं होती जब तक उसे बनाने वाला व्यक्ति जीवित है। वसीयत केवल मृत्यु के बाद प्रभाव में आती है और जब तक वसीयतकर्ता जीवित है, तब तक उससे किसी को भी स्वामित्व प्राप्त नहीं होता।

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इसलिए यदि किसी व्यक्ति ने अपने जीवनकाल में वसीयत बनाई है, तो वह उसके जीवित रहते किसी को भी कानूनी स्वामित्व नहीं देती।

पावर ऑफ अटॉर्नी का निष्पादन अनिवार्य

फैसले में यह भी कहा गया कि यदि मुख्तारनामा यानी Power of Attorney के धारक ने उसका उपयोग करते हुए कोई रजिस्टर्ड दस्तावेज निष्पादित नहीं किया है, तो वह Power of Attorney व्यर्थ हो जाती है। बिना निष्पादन (Execution) के यह कोई कानूनी हक नहीं देती।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी भी राज्य या उच्च न्यायालय में यदि कोई प्रथा है जहां वसीयत या पावर ऑफ अटॉर्नी को स्वामित्व दस्तावेज के रूप में माना जाता है, तो वह प्रथा कानून के खिलाफ है और इसे जारी नहीं रखा जा सकता।

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Registered Deed ही है वैध तरीका

कोर्ट ने 2009 के प्रसिद्ध केस सूरज लैंप एंड इंडस्ट्रीज प्रा. लि. बनाम हरियाणा राज्य के फैसले का हवाला देते हुए दोहराया कि अचल संपत्ति का ट्रांसफर केवल Registered Conveyance Deed के जरिए ही वैध है।

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल बिक्री समझौता (Agreement to Sale), पावर ऑफ अटॉर्नी (Power of Attorney) या वसीयत (Will) के आधार पर अचल संपत्ति को किसी दूसरे के नाम ट्रांसफर नहीं किया जा सकता।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में Power of Attorney पर लगी रोक हटेगी

उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में पावर ऑफ अटॉर्नी के दुरुपयोग को लेकर कड़ा रुख अपनाया था, खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां पिछले पांच वर्षों में एक लाख से अधिक पॉवर ऑफ अटॉर्नी रजिस्टर्ड हुईं।

स्टांप एवं पंजीयन राज्यमंत्री रवीन्द्र जायसवाल के अनुसार, इनमें से अधिकांश मामलों में अचल संपत्ति को बेचने का अधिकार दिया गया, जिससे स्टांप ड्यूटी की बड़े पैमाने पर चोरी हुई। लेकिन अब सर्वोच्च न्यायालय के फैसले और नई अधिसूचना के आने के बाद इस पर लगी रोक हटाई जा सकती है।

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कोर्ट के फैसले से संपत्ति बाजार में पारदर्शिता बढ़ेगी

यह फैसला उन लोगों के लिए चेतावनी है जो अनरजिस्टर्ड दस्तावेजों के आधार पर संपत्ति की खरीद-फरोख्त करते हैं। अब केवल वही व्यक्ति संपत्ति का मालिक माना जाएगा, जिसके पास वैध Registered Deed है।

इससे न केवल संपत्ति लेन-देन में पारदर्शिता आएगी बल्कि फर्जीवाड़े और धोखाधड़ी पर भी रोक लगेगी।

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