
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था में बड़ा बदलाव करते हुए उपवर्गीकरण (sub-classification) और क्रीमी लेयर (creamy layer) की पहचान के अधिकार को मान्यता दी है। यह ऐतिहासिक फैसला 6-1 के बहुमत से गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट की सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सुनाया। इस फैसले से राज्यों को एससी-एसटी वर्ग के भीतर उपवर्गीकरण करने का अधिकार मिल गया है ताकि आरक्षण का लाभ सबसे जरूरतमंद तक पहुंचे।
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ईवी चिनैया का फैसला पलटा
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के पांच न्यायाधीशों के ईवी चिनैया मामले में दिए गए फैसले को पलट दिया है। चिनैया फैसले में कहा गया था कि एससी और एसटी वर्ग का उपवर्गीकरण नहीं किया जा सकता क्योंकि यह एक समान समूह हैं। लेकिन नए फैसले में संविधान पीठ ने कहा कि एससी-एसटी में उपवर्गीकरण करना न केवल संवैधानिक है, बल्कि समानता के अधिकार (Article 14) और सरकारी नौकरियों में आरक्षण (Article 16(4)) के तहत संभव है, बशर्ते कि उपवर्गीकरण तर्कसंगत सिद्धांतों पर आधारित हो।
पंजाब मामले से जुड़ा था मुख्य विवाद
इस मामले की जड़ पंजाब का एक मामला था, जहां एससी समुदाय के लिए आरक्षित सीटों में से 50% सीटें वाल्मीकि और मजहबी सिखों के लिए आरक्षित कर दी गई थीं। इस फैसले को पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। इस पर विचार करते हुए सात न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट किया कि एससी-एसटी के उपवर्गीकरण की अनुमति संविधान के अनुरूप है।
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क्रीमी लेयर की पहचान पर जोर
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस मनोज मिश्रा ने इस फैसले में जोर दिया कि आरक्षण का वास्तविक लाभ सबसे जरूरतमंदों तक पहुंचे। इसके लिए उन्होंने एससी-एसटी में क्रीमी लेयर की पहचान करने की नीति बनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि संविधान राज्य को उपवर्गीकरण करने का अधिकार देता है ताकि एससी-एसटी के भीतर ज्यादा वंचित और जरूरतमंद समूहों को आरक्षण का लाभ मिल सके।
अन्य न्यायाधीशों की राय
जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, पंकज मित्तल और सतीश चंद्र शर्मा ने भी मुख्य फैसले से सहमति जताते हुए क्रीमी लेयर की पहचान को महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि क्रीमी लेयर की पहचान के मानक अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) से भिन्न होने चाहिए। जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने हालांकि बहुमत से असहमति जताते हुए कहा कि एससी-एसटी का उपवर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 341 और 342 के खिलाफ है, जो कि अनुसूचित जातियों और जनजातियों की सूची में बदलाव का अधिकार केवल संसद को देता है।
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सभी सीटों का उपवर्गीकरण नहीं संभव
फैसले में स्पष्ट किया गया कि राज्यों को उपवर्गीकरण का अधिकार तो है, लेकिन वे 100% सीटें किसी एक उपवर्ग को आरक्षित नहीं कर सकते। इसका मतलब है कि उपवर्गीकरण का लाभ सभी उपवर्गों तक समान रूप से पहुंचना चाहिए।
फैसले का महत्व
यह फैसला सामाजिक न्याय और समानता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। इससे एससी-एसटी वर्ग के भीतर ज्यादा जरूरतमंद समूहों को आरक्षण का वास्तविक लाभ मिल सकेगा। साथ ही, यह राज्यों को अधिक अधिकार और लचीलापन प्रदान करता है, जिससे वे अपने क्षेत्र की सामाजिक संरचना के आधार पर नीतियाँ बना सकें।