राजस्थान में अब कुलपति नहीं, होंगे ‘कुलगुरू’! भजनलाल सरकार का बड़ा फैसला विश्वविद्यालयों को लेकर

राजस्थान की विधानसभा में पास हुआ ऐतिहासिक संशोधन विधेयक, जिसने विश्वविद्यालयों की दुनिया में मचा दी हलचल। क्या 'कुलगुरु' का नया पदनाम केवल एक नाम बदलने की कवायद है या इसके पीछे छुपा है भारत की प्राचीन शिक्षा परंपरा को पुनर्जीवित करने का मिशन? जानिए इस फैसले के पीछे की पूरी कहानी और इसका असर शिक्षा व्यवस्था पर

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Written byRohit Kumar

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राजस्थान में अब कुलपति नहीं, होंगे 'कुलगुरू'! भजनलाल सरकार का बड़ा फैसला विश्वविद्यालयों को लेकर
राजस्थान में अब कुलपति नहीं, होंगे ‘कुलगुरू’! भजनलाल सरकार का बड़ा फैसला विश्वविद्यालयों को लेकर

राजस्थान सरकार ने राज्य के वित्त पोषित विश्वविद्यालयों में कुलपति (Vice Chancellor) और प्रतिकुलपति (Pro Vice Chancellor) के पदनामों में बदलाव कर उन्हें अब क्रमशः कुलगुरु और प्रतिकुलगुरु के रूप में संबोधित करने का निर्णय लिया है। यह बदलाव केवल शब्दों का नहीं बल्कि भारतीय शिक्षा प्रणाली के मूल्यों की पुनर्स्थापना की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया जा रहा है।

यह जानकारी राजस्थान के उप मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमचंद बैरवा ने गुरुवार को विधानसभा में ‘राजस्थान के विश्वविद्यालयों की विधियां (संशोधन) विधेयक, 2025’ पर चर्चा के दौरान दी।

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राजस्थान सरकार का यह निर्णय भारतीय शिक्षा व्यवस्था में एक सांस्कृतिक और वैचारिक बदलाव का संकेत है। ‘कुलपति’ को ‘कुलगुरु’ और ‘प्रतिकुलपति’ को ‘प्रतिकुलगुरु’ कहने का यह प्रयास एक नई सोच और दिशा की ओर संकेत करता है। आने वाले समय में यह बदलाव न केवल नामों में बल्कि शिक्षा के मूल्यों और दृष्टिकोण में भी स्पष्ट रूप से परिलक्षित होगा।

प्राचीन शिक्षा परंपराओं की पुनर्स्थापना की दिशा में कदम

डॉ. बैरवा ने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत प्राचीन काल में ज्ञान और शिक्षा का वैश्विक केंद्र रहा है। विक्रमशिला, तक्षशिला और नालंदा जैसे विश्वविद्यालयों में विश्वभर से विद्यार्थी अध्ययन करने आते थे। भारत की इसी गुरु-शिष्य परंपरा को पुनः जीवित करने के उद्देश्य से यह बदलाव किया गया है।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का यह निर्णय केवल औपचारिक प्रक्रिया नहीं बल्कि एक महान शिक्षा व्यवस्था की पुनर्स्थापना का प्रयास है। इस संशोधन से न केवल विश्वविद्यालयों की गरिमा में वृद्धि होगी, बल्कि इससे भारतीय शिक्षा प्रणाली को उसका पुराना गौरव भी प्राप्त होगा।

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“कुलपति” की जगह “कुलगुरु”: केवल शाब्दिक परिवर्तन नहीं

डॉ. बैरवा ने स्पष्ट किया कि ‘कुलपति’ शब्द प्रशासनिक और स्वामित्व सूचक है, जबकि ‘गुरु’ शब्द में विद्वता, आत्मीयता और मार्गदर्शन की भावना निहित होती है। इस निर्णय का उद्देश्य शिक्षा के गुणवत्ता और मानसिक दृष्टिकोण में सकारात्मक परिवर्तन लाना है।

उन्होंने कहा कि यह बदलाव भारतीय गुरुकुल प्रणाली की याद दिलाता है, जहां केवल पुस्तकीय ज्ञान ही नहीं बल्कि जीवन मूल्यों, आत्मसाक्षात्कार, नैतिकता, समाज सेवा और देशभक्ति की शिक्षा दी जाती थी।

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उप मुख्यमंत्री ने दी शिक्षा नीति 2020 की जानकारी

डॉ. बैरवा ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा लाई गई नई शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) का मुख्य उद्देश्य भारतीय ज्ञान परंपरा एवं कौशल आधारित शिक्षा को पुनः स्थापित करना है। यह नीति विद्यार्थियों के समग्र विकास, नवाचार और व्यावसायिक शिक्षा को बढ़ावा देने वाली है।

उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति न केवल आधुनिक विज्ञान और तकनीक को महत्व देती है, बल्कि भारतीय संस्कृति, मूल्यों और परंपराओं को भी शिक्षा का हिस्सा बनाती है। इससे युवा पीढ़ी को जड़ों से जोड़ने में मदद मिलेगी और भारत को फिर से विश्व गुरु बनाने की दिशा में यह एक मजबूत आधार बनेगा।

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राज्य सरकार कर रही है कॉलेज शिक्षकों की भर्ती

उप मुख्यमंत्री ने यह भी जानकारी दी कि राजस्थान सरकार द्वारा कॉलेज शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया लगातार जारी है। इससे वंचित वर्गों को शिक्षा के समान अवसर प्राप्त हो रहे हैं।

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का ध्येय है कि हर वर्ग के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध हो। इसके लिए नई नीतियां और ढांचागत सुधार किए जा रहे हैं।

औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली से मुक्ति की जरूरत

डॉ. बैरवा ने कहा कि भारत की प्राचीन शिक्षा प्रणाली को आक्रांताओं और पाश्चात्य शिक्षा नीति ने ध्वस्त किया। औपनिवेशिक मानसिकता के चलते शिक्षा प्रणाली में भारतीयता कम होती गई। अब समय आ गया है कि इस मानसिकता को बदला जाए और भारतीय शिक्षा को उसका प्राकृतिक स्वरूप वापस दिया जाए।

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भारतीय विश्वविद्यालयों के पुनरुत्थान की प्रक्रिया शुरू

डॉ. बैरवा के अनुसार, विश्वविद्यालयों के कुलपति को ‘कुलगुरु’ कहने का यह निर्णय एक प्रतीकात्मक लेकिन दूरगामी प्रभाव वाला कदम है। इससे विद्यार्थियों और शिक्षकों के बीच भावनात्मक जुड़ाव बढ़ेगा और शिक्षा प्रणाली में संवेदनशीलता एवं मूल्यों का समावेश होगा।

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