क्या नाती-नातिन को मिलती है नाना-नानी की संपत्ति? जानिए कानून क्या कहता है आपके अधिकारों पर

अगर नाना-नानी की करोड़ों की प्रॉपर्टी पर आपका भी दावा बनता है, तो ये खबर आपके लिए है! जानिए सेल्फ-एक्वायर्ड और पुश्तैनी संपत्ति में नाती-नातिन का अधिकार, और कैसे बिना वसीयत के भी बन सकते हैं आप कानूनी वारिस!

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Written byRohit Kumar

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क्या नाती-नातिन को मिलती है नाना-नानी की संपत्ति? जानिए कानून क्या कहता है आपके अधिकारों पर
क्या नाती-नातिन को मिलती है नाना-नानी की संपत्ति? जानिए कानून क्या कहता है आपके अधिकारों पर

भारत में “नाना-नानी की संपत्ति में नाती-नातिन का हक” (Right of Grandchildren in Maternal Grandparents’ Property) को लेकर अक्सर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। जब बात परिवार की संपत्ति की आती है और विशेषकर तब जब नाना-नानी के पास अच्छी-खासी प्रॉपर्टी हो, तो सवाल उठता है कि क्या नाती या नातिन को उसमें कोई कानूनी अधिकार मिलता है? कई बार माता-पिता या अन्य रिश्तेदार भी इस विषय में स्पष्ट जानकारी नहीं देते, जिससे उलझन और बढ़ जाती है। ऐसे में ज़रूरी है कि इस मुद्दे पर स्पष्ट और सही जानकारी हो। इस रिपोर्ट में हम इसी विषय पर विस्तृत जानकारी दे रहे हैं ताकि आप इस मुद्दे पर सही निर्णय ले सकें।

प्रॉपर्टी कितने प्रकार की होती है? जानिए कानूनी वर्गीकरण

भारतीय कानून, खासकर हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956 के तहत प्रॉपर्टी को दो मुख्य श्रेणियों में बांटा गया है – एनसेस्टरल प्रॉपर्टी (Pushtaini Sampatti) और सेल्फ-एक्वायर्ड प्रॉपर्टी (Self-Acquired Property)।

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एनसेस्टरल प्रॉपर्टी वह संपत्ति होती है जो चार पीढ़ियों से बिना किसी बंटवारे के मेल लाइन यानी पुरुष वंश में चली आ रही हो। यह संपत्ति स्वचालित रूप से अगली पीढ़ियों में ट्रांसफर होती रहती है।

दूसरी तरफ, सेल्फ-एक्वायर्ड प्रॉपर्टी वह होती है जिसे व्यक्ति ने खुद की कमाई, किसी गिफ्ट, दान या वसीयत के जरिए अर्जित किया हो। इस पर मालिक को पूरा अधिकार होता है और वह अपनी मर्जी से इसे किसी को भी दे सकता है।

नाना-नानी की सेल्फ-एक्वायर्ड संपत्ति में क्या नाती को मिल सकता है हिस्सा?

हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956 के अनुसार, अगर नाना-नानी की संपत्ति सेल्फ-एक्वायर्ड है, तो वे कानूनी रूप से स्वतंत्र हैं कि वे उसे जिसे चाहें, दे सकते हैं। यानी नाती या नातिन का इस पर स्वतः कोई अधिकार नहीं बनता।

लेकिन यदि नाना-नानी ने अपनी संपत्ति के लिए कोई वसीयत (Will) नहीं बनाई है और उनकी मृत्यु हो जाती है, तो यह संपत्ति उनके कानूनी उत्तराधिकारियों में बांटी जाती है। इस स्थिति में यदि आपकी मां जीवित हैं, तो उन्हें संपत्ति में हिस्सा मिलेगा। और अगर मां की मृत्यु हो चुकी है, तो आप यानी नाती या नातिन उनके उत्तराधिकारी बन सकते हैं।

अगर संपत्ति पुश्तैनी हो तो क्या नियम बदल जाते हैं?

यदि संपत्ति एनसेस्टरल है, यानी पुश्तैनी संपत्ति है, तो नाती और नातिन को उस पर अधिकार मिल सकता है। पुश्तैनी संपत्ति के मामले में मालिक अपनी मर्जी से किसी को उससे बाहर नहीं कर सकता।

यह संपत्ति सर्वाइवरशिप राइट्स (Survivorship Rights) के तहत अगली पीढ़ी को स्वतः ट्रांसफर होती रहती है। यानी अगर आपकी मां अपने माता-पिता की इकलौती संतान थीं, तो उन्हें पूरा हिस्सा मिलेगा और उस हिस्से की आप कानूनी रूप से वारिस होंगे।

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क्या मां की स्थिति इस हक पर असर डालती है?

जी हां, मां की स्थिति भी इस अधिकार पर असर डालती है। अगर आपकी मां अपने पिता यानी नाना पर आर्थिक रूप से निर्भर थीं या कमाने में सक्षम नहीं थीं, तो भी नाती या नातिन के हक की संभावना बढ़ जाती है।

साथ ही, यदि आपकी मां की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन वह नाना-नानी की वैध उत्तराधिकारी थीं, तो उनकी जगह पर आप कानूनी वारिस बन सकते हैं। इस स्थिति में आपको अपने हिस्से का दावा करने का अधिकार प्राप्त होता है।

वसीयत (Will) की भूमिका कितनी अहम है?

किसी भी संपत्ति के बंटवारे में वसीयत की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है। अगर नाना-नानी ने अपनी प्रॉपर्टी को लेकर वसीयत बनाई है और उसमें नाती या नातिन का नाम शामिल किया है, तो वह व्यक्ति संपत्ति का कानूनी हकदार बन जाता है।

लेकिन अगर वसीयत मौजूद नहीं है, तो फिर संपत्ति हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956 के अनुसार ही बांटी जाएगी। इस एक्ट के तहत नाना-नानी की संपत्ति पहले उनकी संतानों में बांटी जाती है और फिर उन संतानों के बच्चों में, यदि संतान का निधन हो चुका हो।

आखिर में क्या करना चाहिए?

यदि आप नाती या नातिन हैं और नाना-नानी की संपत्ति में अपना कानूनी अधिकार जानना चाहते हैं, तो सबसे पहले यह स्पष्ट करें कि संपत्ति सेल्फ-एक्वायर्ड है या पुश्तैनी।

फिर यह जांचें कि क्या कोई वसीयत मौजूद है। अगर नहीं, तो फिर आपको कानून के अनुसार अपनी मां की स्थिति के आधार पर उत्तराधिकारी बनने का अधिकार हो सकता है। ऐसे मामलों में किसी योग्य वकील से सलाह लेना भी आवश्यक हो जाता है ताकि कानूनी प्रक्रिया सुचारु रूप से पूरी की जा सके।

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