30 लाख लोगों को नहीं मिलेगा लोन! कहीं आपका नाम भी तो नहीं है इस ब्लैकलिस्ट में?

भारत में बैंक और वित्तीय संस्थानों ने सख्त नियमों के चलते 30 लाख गरीबों को कर्ज देना बंद कर दिया है। NPA बढ़ने से माइक्रोफाइनेंस सेक्टर में हड़कंप मच गया है। अब ये लोग महंगे ब्याज पर साहूकारों से कर्ज लेने को मजबूर हैं। जानिए कैसे यह संकट करोड़ों को औपचारिक वित्तीय सिस्टम से बाहर कर सकता है

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Written byRohit Kumar

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30 लाख लोगों को नहीं मिलेगा लोन! कहीं आपका नाम भी तो नहीं है इस ब्लैकलिस्ट में?
30 लाख लोगों को नहीं मिलेगा लोन! कहीं आपका नाम भी तो नहीं है इस ब्लैकलिस्ट में?

बैंकों और वित्तीय संस्थानों द्वारा कर्ज देने के नियमों को सख्त किए जाने के चलते पिछले नौ महीनों में करीब 30 लाख लोग औपचारिक कर्ज प्रणाली से बाहर हो चुके हैं। इन लोगों में अधिकांश वे हैं जो पहले से ही गरीब तबके से आते हैं और समय पर अपने ऋण (Loan) का भुगतान नहीं कर सके। बैंकों ने ऐसे ग्राहकों के लोन को बट्टे खाते में डाल दिया है, जिससे अब उन्हें भविष्य में किसी भी प्रकार का बैंक लोन मिलने की संभावना बेहद कम हो गई है।

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देश में गरीब और निम्न आय वर्ग के लिए बैंकिंग सेवाओं की पहुंच और कर्ज की सुविधा बेहद जरूरी है। यदि उन्हें समय पर सहायता नहीं मिली, तो वे अनौपचारिक और शोषणकारी लोन बाजार में फंस सकते हैं। सरकार और आरबीआई को संतुलन बनाकर ऐसी नीतियां बनानी होंगी जिससे बैंकों का जोखिम भी कम हो और आम नागरिकों की जरूरतें भी पूरी हों।

माइक्रोफाइनेंस सेक्टर में गिरावट, नए लोन पर रोक

माइक्रोफाइनेंस सेक्टर (Microfinance Sector) में 60 दिनों से ज्यादा समय से कर्ज न चुका पाने वालों और जिन पर ₹3,000 से अधिक की देनदारी है, उन्हें अब नए लोन नहीं दिए जा रहे हैं। इस पर जानकारी देते हुए माइक्रोफाइनेंस की स्व-नियामक संस्था सा-धन (Sa-Dhan) के कार्यकारी निदेशक जीजी मम्मन ने कहा कि डिफॉल्टरों को दोबारा कर्ज देने से मना कर दिया गया है।

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नए ग्राहक जुड़ रहे हैं लेकिन पुरानों की स्थिति गंभीर

हालांकि, हर साल कुछ नए ग्राहक कर्ज प्रणाली में जुड़ते हैं, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मौजूदा सख्ती जारी रही, तो भविष्य में और भी ज्यादा लोग औपचारिक कर्ज प्रणाली से बाहर हो सकते हैं। इससे खासकर गरीब और निम्न आय वर्ग के लोग अधिक प्रभावित होंगे।

दिसंबर 2024 तक कर्ज लेने वालों की संख्या में गिरावट

माइक्रोफाइनेंस कंपनियों, स्मॉल फाइनेंस बैंकों और एनबीएफसी (NBFC) से दिसंबर 2024 तक कर्ज लेने वालों की संख्या 8.4 करोड़ रह गई, जबकि वित्त वर्ष 2025 की शुरुआत में यह संख्या 8.7 करोड़ थी। यह दर्शाता है कि एक बड़ी संख्या में लोग कर्ज लेने के योग्य नहीं रहे।

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बढ़ते डिफॉल्ट से बैंकों को भारी नुकसान

माइक्रोफाइनेंस लोन में डिफॉल्ट की बढ़ती दर से कई बैंकों को तगड़ा झटका लगा है। इंडसइंड बैंक (IndusInd Bank) को माइक्रोफाइनेंस लोन में बढ़ते डिफॉल्ट के कारण तीसरी तिमाही में 40% तक मुनाफे में गिरावट का सामना करना पड़ा। वहीं, बंधन बैंक (Bandhan Bank) ने ₹1,266 करोड़ के कर्ज को बट्टे खाते में डाल दिया है, जिसका मतलब है कि इन लोन की वसूली की कोई उम्मीद नहीं है।

NPA में जबरदस्त बढ़ोतरी

दिसंबर 2024 तक माइक्रोफाइनेंस सेक्टर में खराब कर्ज यानी एनपीए (NPA) का स्तर 13% तक पहुंच गया है। 180 दिनों से ज्यादा समय से बकाया माइक्रो लोन की दर 11% हो गई है, जो पिछले साल 9% थी। इसका सीधा असर बैंकों और एनबीएफसी की आय पर पड़ रहा है।

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साहूकारों की ओर झुक रहे हैं कर्जदार

जो लोग अब बैंकों या वित्तीय संस्थानों से लोन नहीं ले पा रहे हैं, वे मजबूरी में साहूकारों से ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज ले रहे हैं। मुथूट माइक्रोफिन (Muthoot Microfin) के सीईओ सादफ सईद के अनुसार, “जो लोग औपचारिक वित्तीय प्रणाली से बाहर हो रहे हैं, वे अब महंगे ब्याज दरों पर कर्ज लेने को मजबूर हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और भी बिगड़ सकती है।”

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अवैध लेंडिंग पर लगाम जरूरी

वित्तीय जानकारों का कहना है कि सरकार को अब अवैध ऋणदाताओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इसके लिए ‘बैनिंग ऑफ अनरेगुलेटेड लेंडिंग एक्टिविटीज (BULA) बिल’ को जल्द से जल्द लागू करना जरूरी हो गया है। इससे गरीब और कमजोर वर्ग को अवैध और ऊंची ब्याज दरों वाले लोन से बचाया जा सकेगा।

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