
हाल ही में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर मोती राम जाट को दिल्ली से गिरफ्तार किया है। आरोप है कि वह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के संपर्क में था और भारत की संवेदनशील जानकारियां साझा कर रहा था। बताया गया कि वह पहले कश्मीर के पहलगाम में तैनात था और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसी गोपनीय जानकारी भी उसके पास थी।
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कैसे पकड़े जाते हैं अंदरूनी जासूस?
सेना और अर्धसैनिक बलों में जासूसी गतिविधियों की निगरानी के लिए विशेष साइबर सेल और खुफिया इकाइयाँ होती हैं। ये इकाइयाँ जवानों की सोशल मीडिया गतिविधियों, कॉल रिकॉर्ड्स और संदिग्ध व्यवहार पर नजर रखती हैं। जैसे ही किसी जवान की गतिविधि संदिग्ध पाई जाती है, उसके फोन और डिजिटल संचार की जांच की जाती है। यदि पर्याप्त सबूत मिलते हैं, तो उसे सेना की पुलिस द्वारा हिरासत में लिया जाता है और आगे की जांच के लिए NIA जैसी एजेंसियों को सौंपा जाता है।
गद्दारी की सजा: क्या कहता है कानून?
भारतीय सेना में गद्दारी को अत्यंत गंभीर अपराध माना जाता है। इस पर विभिन्न कानूनों के तहत सख्त सजा का प्रावधान है:
- भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 121: भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने या उसकी तैयारी करने पर मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा।
- भारतीय सेना अधिनियम 1950 की धारा 34 और 52: दुश्मन से सांठगांठ, आत्मसमर्पण या गोपनीय जानकारी साझा करने पर मृत्युदंड या आजीवन कारावास।
- आधिकारिक गुप्त जानकारी अधिनियम 1923: गोपनीय जानकारी लीक करने पर कठोर सजा।
- भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराएँ 147, 148, 152: देशद्रोह और जासूसी के मामलों में कम से कम 3 साल की सजा से लेकर आजीवन कारावास तक।
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कोर्ट मार्शल और अन्य अनुशासनात्मक कार्रवाई
जब किसी सैनिक पर गद्दारी का आरोप लगता है, तो सबसे पहले ‘कोर्ट ऑफ इंक्वायरी’ (CoI) गठित की जाती है, जो मामले की जांच करती है। यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो ‘जनरल कोर्ट मार्शल’ की प्रक्रिया शुरू होती है। इस प्रक्रिया में आरोपी को सजा सुनाई जाती है, जो मृत्युदंड से लेकर आजीवन कारावास तक हो सकती है। इसके अलावा, आरोपी को सेवा से बर्खास्त कर दिया जाता है, और उसकी पेंशन व अन्य सुविधाएँ समाप्त कर दी जाती हैं।
सोशल मीडिया: नया खतरा
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जासूसी के नए माध्यम बन गए हैं। कई मामलों में देखा गया है कि दुश्मन देश के एजेंट सोशल मीडिया के जरिए जवानों से संपर्क साधते हैं और उन्हें लालच देकर गोपनीय जानकारी हासिल करते हैं। इसलिए सेना में सोशल मीडिया की गतिविधियों पर विशेष निगरानी रखी जाती है।