नाम बदलना अब आसान नहीं! इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, जानें क्यों नहीं है यह मौलिक अधिकार

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला, कहा – नाम बदलना कोई मौलिक अधिकार नहीं है। जानिए, क्यों अब नाम बदलवाने की प्रक्रिया होगी और भी मुश्किल और कौन-कौन से नए नियम बनाए गए हैं, जो आपकी राह में बनेंगे रोड़ा। पूरी जानकारी के लिए पढ़ें पूरी खबर

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Written byRohit Kumar

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नाम बदलना अब आसान नहीं! इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, जानें क्यों नहीं है यह मौलिक अधिकार
नाम बदलना अब आसान नहीं! इलाहाबाद हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, जानें क्यों नहीं है यह मौलिक अधिकार

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा है कि नाम परिवर्तन करना व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं है। यह प्रक्रिया केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों तथा नियमों के अधीन होगी। मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने इस फैसले के साथ ही एकल पीठ द्वारा दिए गए उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें नाम परिवर्तन को मौलिक अधिकार बताया गया था।

हाई कोर्ट का यह फैसला स्पष्ट करता है कि नाम परिवर्तन करना व्यक्ति का मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि यह नियमों और नीतियों के अनुसार होगा। यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका व्यापक सामाजिक प्रभाव भी होगा।

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शाहनवाज की याचिका पर सुनवाई

यह निर्णय याची शाहनवाज की उस याचिका से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने अपना नाम बदलकर मोहम्मद समीर राव करने की मांग की थी। यूपी बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक ने शाहनवाज के नाम परिवर्तन के प्रार्थनापत्र को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि नियमानुसार नाम परिवर्तन का आवेदन तीन साल के भीतर किया जाना चाहिए। एकल पीठ ने 25 मई 2023 को यूपी बोर्ड के इस आदेश को रद्द करते हुए नाम परिवर्तन को व्यक्ति का मौलिक अधिकार करार दिया था।

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एकल पीठ का तर्क और राज्य सरकार की अपील

एकल पीठ ने यूपी बोर्ड के नियम को मनमाना और असंवैधानिक बताते हुए कहा था कि अपनी पसंद का नाम रखना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 के तहत संरक्षित है। पीठ ने शाहनवाज का नाम बदलकर मोहम्मद समीर राव करने और उसके सभी प्रमाणपत्रों, ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट और आधार कार्ड में नया नाम दर्ज करने का आदेश दिया था। इस आदेश को प्रदेश सरकार ने विशेष अपील के माध्यम से चुनौती दी।

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अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता की दलील

अपर मुख्य स्थाई अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने कोर्ट में तर्क दिया कि मौलिक अधिकार पूरी तरह से निर्बाध नहीं होते। उन पर कुछ सुसंगत प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। नाम परिवर्तन की प्रक्रिया यूपी बोर्ड के 1921 एक्ट के अध्याय 12 के तहत संचालित होती है। इसके अनुसार, नाम परिवर्तन का आवेदन सात साल बाद स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह प्रावधान रेगुलेशन 7 के चैप्टर 3 में है।

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खंडपीठ का फैसला

खंडपीठ ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि एकल पीठ ने रेगुलेशन 40(सी) को मनमाना, असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाला घोषित किया था, जो न्यायिक पुनर्विलोकन की सीमा से बाहर है। खंडपीठ ने राज्य और केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय को इस संबंध में उचित वैधानिक और प्रशासनिक कार्ययोजना तैयार करने का निर्देश दिया है।

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नीतिगत मामला

खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि नाम परिवर्तन से संबंधित नियम बनाना राज्य और केंद्र सरकार की नीतियों का विषय है। अदालत ने यूपी बोर्ड के नियमों को रीड डाउन (कानून की शक्ति को सीमित करना) करते हुए असंवैधानिक घोषित किया, लेकिन यह भी कहा कि एकल पीठ को ऐसा आदेश पारित करने का अधिकार नहीं था।

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नाम परिवर्तन की प्रक्रिया

नाम परिवर्तन के लिए नियमानुसार आवेदन करना आवश्यक है। यूपी बोर्ड के 1921 एक्ट के तहत यह प्रक्रिया सात साल के भीतर पूरी होनी चाहिए। यह मामला सिर्फ याचिकाकर्ता शाहनवाज तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भविष्य में नाम परिवर्तन की मांग करने वाले सभी व्यक्तियों पर लागू होगा।

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सरकार को निर्देश

खंडपीठ ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया है कि वे नाम परिवर्तन की प्रक्रिया से संबंधित स्पष्ट, पारदर्शी और सुसंगत नीतियां बनाएं, ताकि भविष्य में इस तरह के विवादों से बचा जा सके।

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